(a) चूँकि प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु के आकार से बहुत अधिक है तथा प्रतिबिम्ब व वस्तु के कोणीय आकार समान है| एक अति उच्च आर्वधित काँच के द्वारा स्पष्ट दृष्टि के न्यूनतम दूरी (25 सेमीo ) से कम दूरी पर प्रतिबिम को स्पष्ट देखा जा सकता है| जैसे ही वस्तु की दूरी घटती है वैसे ही कोणीय आकार बढ़ता है|
(b) हाँ, कोणीय आवर्धन परिवर्तित होता है | जैसे ही आर्वधक काँच के बीच की दूरी बढ़ती है वैसे ही कोणीय आर्वधन घटता है|
(c ) हम ऐसा लेन्स सुगमता से नहीं बना सकते है ,जिसकी फोकस दूरी अति अल्प हो |
(d) नेत्रिका लेन्स की फोकस दूरी `((25)/(f_(e ))+1)` है |
चूँकि `f_(e )` अल्प है, अतः कोणीय आवर्धन उच्च होगा| पुनः अभिदृश्यक लेन्स का आर्वधन `(upsilon)/(u)` होगा | जैसे ही वस्तु अभिदृश्यक लेन्स के फोकस तल में लायी जाती है ,`u~~f_(0)`. आवर्धन `((upsilon)/(f_(0)))`बढ़ाने हेतु `f_(0)` अल्प होना चाहिए | ,
अतः `f_(0)` तथा `f_(e )` दोनों अल्प है |
(e ) जब हम अपनी आँखे संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अतिसमीप रखते है तब हम पर्याप्त मात्रा में आपतित किरणों को ग्रहण नहीं कर पाते क्योकि दृष्टि-योग्य क्षेत्र घट जाता है | अतः प्रतिबिम्ब की स्पष्टता धुधंली हो जाती है|
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा वस्तु को स्पष्ट देखने के लिए आँखे नेत्रिका से सती होनी चाहिए|