हल सबसे पहले हम साम्यावस्था में स्प्रिंग का तनाव ज्ञात करते हैं। घिरनी की घूर्णन साम्यावस्था के लिए घिरनी के दोनों ओर की डोरियों में तनाव समान होना चाहिए। केवल तभी घिरनी पर बल आघूर्ण शून्य होगा
मान ले कि तनाव T है। स्प्रिंग में भी तनाव उतना ही होगा जितना डोरी में है। अतः साम्यावस्था के लिए स्प्रिंग की लंबाई में वृद्धि `Y=T/k`
घिरनी की स्थानांतरीय साम्यावस्था के लिए,
`2T=mg" या "2ky=mg" या "(mg)/(2k)`
अतः, जब घिरनी साम्यावस्था में होती है, उस समय स्प्रिंग अपनी स्वाभाविक लंबाई वाली स्थिति से `(mg)/(2k)` लंबाई नीचे रहता है।
अब मान ले कि किसी क्षण घिरनी का केंद्र साम्यावस्था रो नीचे को ओर दूरी । पर है। ऐसी स्थिति में डोरी + स्प्रिग की कुत लबाई में वृद्धि 2x है (घिरनी की दायी और तथा बाया और x)। चूंकि डोरी की लंबाई रिथर है, अतः स्प्रिंग की लंबाई में वृद्धि 2x है। इस क्षण निकाय की ऊर्जा है
`U=1/2Iomega^2+1/2mv^2-mgx+1/2k((mg)/(2k)+2x)^2`
`=1/2(1/r^2+m)v^2+(m^2g^2)/(8k)+2kx^2`
चूकि इस पूरी संहति में कहीं भी ऊर्जा का क्षय नहीं हो रहा है,
`(dV)/(dt)=0`
अतः `0=(1/r^2+m)v(dv)/(dt)+4kxv`
या `(dv)=-(4kx)/((1/r^2+m))`
`a=-omega^2x,omega^2=(4k)/((I/r^2+m))`
घिरनी का द्रव्यमान केंद्र एक सरल आवर्त गति करता है जिसका आवर्तकाल,
`T=2pisqrt((I/r^2+m)//(4k))`