ट्रांसफॉर्मर के द्वितीयक कुण्डली से प्राप्त ऊर्जा, प्राथमिक कुण्डली को दी गई ऊर्जा से कुछ कम होती है क्योकि कुछ-न-कुछ ऊर्जा हानि होती है ऊर्जा हानि निम्नलिखित चार रूपों में होती है -
1. ताम्र हानि - आदर्श ट्रांसफॉर्मर के कुण्डलियो का प्रतिरोध होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता है । प्राथमिक कुण्डली को दी गई ऊर्जा का कुछ भाग उसके तार में उष्मा के रूप में (प्रतिरोध होने के कारण) व्यय हो जाता है इसे ताम्र हानि कहते है इसे कम करने के लिए उच्चायी ट्रांसफरमर के प्राथमिक कुण्डली एवं अपचायी ट्रांसफॉर्मर के द्वितीयक कुण्डली के तार को मोटा लिया जाता है ।
2. शैथिल्य हानि - ऊर्जा का कुछ भाग लोहे के क्रोड को बार - बार चुंबकित तथा विचुम्बकित करने में उष्मा के रूप में नष्ट हो जाता है इसे शैथिल्य हानि कहते है इसे कम करने के लिए क्रोड को नरम लोहे का लिया जाता है क्योकि इसके शैथिल्य वक्र का क्षेत्रफल कम होता है ।
3. लौह हानि - ऊर्जा का कुछ भाग क्रोड में उत्पन्न भँवर धाराओं के कारण उष्मा के रूप में नष्ट हो जाता है इसे लौह हानि कहते है इसे कम करने के लिए पटलित लेते है तथा उसमे विधुतरोधी पदार्थ जैसे वार्निश का पेंट करते है ।
4. चुम्बकीय फ्लक्स क्षरण के कारण हानि - प्राथमिक कुण्डली का फ्लक्स पूर्ण से द्वितीयक कुण्डलीको प्राथमिक कुण्डली के ऊपर लपेटा जाता है ।