उपकरण - F = तंतु, B = विद्युत स्त्रोत D = संसूचक , S = वृत्तीय स्केल ।
2. सिद्धांत - यह प्रयोग विवर्तन की घटना पर आधारित है ।
3. प्रयोग विधि - इस प्रयोग में तंतु F को विद्युत स्त्रोत B से गर्म किया जाता है, अतः इससे इलेक्ट्रॉन निकलते हैं। इल्केट्रॉनों का यह पुँज G से होकर गुजरता है तथा निकिल क्रिस्टल C पर पड़ता है, तब वह सभी दिशाओं में विवर्तित हो जाता है जो एक संसूचक एक फैराडे सिलिण्डर होता है, जो गैल्वेनोमीटर के द्वारा जुड़ा रहता है ।
(वृत्तीय स्केल S के विभिन्न स्थितियों पर संसूचक D को रखा जाता है। प्रत्येक स्थिति पर विवर्तित इलेक्ट्रॉन पुँज की तीव्रता I का मैं किया जता है । यदि क्रिस्टलन C पर आपतित इलेक्ट्रॉन पुँज और D की और विवर्तित इलेक्ट्रॉन पुँज के बीच का कोण `phi` हो, तो विभिन्न मानों के लिए I और `phi` के बीच ग्राफ खींचा जा सकता है । इस प्रयोग को व् का मान बढ़ाते हुए दुहराया जाता है ।
निष्कर्ष ग्राफ से यह स्पष्ट है कि 40 वोल्ट पर, एक चिकना वक्र प्राप्त होता है। धीरे - धीरे विभव के मान बढ़ाने पर 44 वोल्ट पर सबसे अधिकतम होता है और इसके आगे त्वरित वोल्टेज का मान और बढ़ाने पर, फुलाव घटने लगता है, अर्थात `phi=50^(@)` और `V=54` वाल्ट पर इलेक्ट्रॉन पुँज का विवर्तन अधिक शक्तिशाली होता है, अतः यह कह सकते हैं कि इलेक्ट्रॉन पुँज तरंग के समान व्यवहार करता है तथा निकल क्रिस्टलक विवर्तन ग्रेंटिंग के रूप में कार्य करता है।