लेंज का नियम-इस नियम के अनुसार, विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण की प्रत्येक अवस्था में प्रेरित विद्युत् धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है जिसके कारण वह स्वयं उत्पन्न हुई है। इस नियम की सहायता से प्रेरित धारा की दिशा निम्नानुसार ज्ञात की जा सकती है-
(i) जब चुम्बक के N- ध्रुव को कुण्डली के पास लाते हैं तो कुण्डली में प्रेरित विद्युत् धारा उत्पन्न हो जाती है। इस प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होगी कि वह चुम्बक के N-ध्रुव को कुण्डली के पास लाने का विरोध कर सके। यह तभी सम्भव है जब चुम्बक की ओर का कुण्डली का तल N-ध्रुव की भाँति कार्य करें। अतः कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा वामावर्त होगी। [चित्र (a)]
(ii) जब चुम्बक के N-ध्रुव को कुण्डली से दूर लाते जाते हैं तो पुनः कुण्डली में विद्युत् धारा प्रेरित हो जाती है। इस प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होगी कि वह चुम्बक के दूर जाने का विरोध कर सके। यह तभी सम्भव है जब चुम्बक की ओर का कुण्डली का तल S-ध्रुव की भाँति कार्य करे, अत: कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा दक्षिणावर्त होगी। [चित्र (b)]