मानलो किसी परिनालिका की लम्बाई।, त्रिज्या तथा उसकी प्रति एकांक लम्बाई पर फेरों की संख्या n है तब परिनालिका में कुल फेरों की संख्या N = nl तथा उसके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल `A = pir^(2)` होगा।
यदि परिनालिका में I धारा प्रवाहित हो रही हो, तो परिनालिका के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता `B = mu_(0)nI`, जहाँ, `mu_(0)` निर्वात की चुम्बकशीलता है।
यदि त्रिज्या की तुलना में परिनालिका की लम्बाई बहुत अधिक (I `gtgt`r) हो, तो उसके अन्दर प्रत्येक बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता को एकसमान माना जा सकता है।
अत: परिनालिका से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स `phi`= NBA
या `phi=nlmu_(0)nIA=mu_(0)n^(2)lIA`
परन्तु स्वप्रेरकत्व `L=(phi)/I`
`thereforeL=(mu_(0)n^(2)lIa)/I` ....(1)
या `L=mu_(0)(N/l)^(2)lA,(becauseN=nl)`
या `L=mu_(0)(N^(2)A)/l` .....(2)
यदि परिनालिका के अन्दर क्रोड की चुम्बकशीलता `mu` हो, तो `L =(muN^(2)A)/l` ....(3)
यही लम्बी परिनालिका के स्वप्रेरकत्व के लिए व्यंजक है।
समी। (3) से स्पष्ट है कि किसी परिनालिका का स्वप्रेरकत्व निम्न बातों पर निर्भर करता है-
(i) परिनालिका के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर (अर्थात् त्रिज्या पर) - परिनालिका के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल बढ़ाने पर उसका स्वप्रेरकत्व बढ़ जाता है।
(ii) फेरों की संख्या पर-परिनालिका में फेरों की संख्या बढ़ाने पर उसका स्वप्रेरकत्व बढ़ जाता है।
(iii) परिनालिका की लम्बाई पर-परिनालिका की लम्बाई बढ़ाने पर उसका स्वप्रेरकत्व कम हो जाता है।
(iv) परिनालिका के क्रोड की चुम्बकशीलता पर -परिनालिका के अन्दर अधिक चुम्बकशीलता का क्रोड रखने पर उसका स्वप्रेरकत्व बढ़ जाता है । यही कारण है कि नर्म लोहे कि क्रोड वाली परिनालिका का स्वप्रेरकत्व वायु क्रोड वाली परिनालिका के स्वप्रेरकत्व से अधिक होता है।
त्रिज्या के पद में समी. (3) को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है-
`L=(mu_(0)N^(2)pir^(2))/l`