अन्योन्य प्रेरकत्व-पहली परिभाषा-यदि प्राथमिक कुण्डली में धारा I प्रवाहित करने से द्वितीयक कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स `phi` हो, तो
`phipropI`
या `phi=MI`
जहाँ, M एक नियतांक है, जो दोनों कुण्डलियों में फेरों की संख्या, द्वितीय कुण्डली के क्षेत्रफल तथा माध्यम पर निर्भर करता है। इसे दोनों कुंडलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व या अन्योन्य प्रेरण गुणांक कहते है।
यदि I = 1 हो, तो समी. (1) से,
`phi=M`
अत: किन्हीं दो कुण्डलियों के अन्योन्य प्रेरकत्व का आंकिक मान द्वितीयक कुण्डली से बद्ध उस चुम्बकीय फ्लक्स के बराबर होता है, जो उस समय उत्पन्न होता है जब प्राथमिक कुण्डली में एकांक धारा प्रवाहित की जाती है।
दूसरी परिभाषा - अब यदि कुंडली में बहने वाली धारा के मान में परिवर्तन किया जाये तो द्धितीयक कुंडली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में भी परिवर्तन होगा। अत: फैराडे के विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण के द्वितीय नियम से,
प्रेरित विद्युत् वाहक बल `e=(dphi)/(dt)`
या `e=-(d(MI))/(dt)` [(समी. (1) से]
या `e=-M(dI)/(dt)` ...(2)
यदि `(dI)/(dt)=1` हो, तो समी. (2) से,
e=-M
अतः दो कुण्डलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व आंकिक रूप से द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित उस विद्युत वाहक बल के बराबर होता है जो प्राथमिक कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर इकाई होने पर उत्पन्न होता है।
मात्रक-SI पद्धति में अन्योन्य प्रेरकत्व का मात्रक हेनरी है।
विमीय सूत्र-अन्योन्य प्रेरकत्व = `[ML^(2)T^(-2)A^(-2)]`.
अन्योन्य प्रेरकत्व की निर्भरता-अन्योन्य प्रेरकत्व निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
(a) दोनों कुण्डलियों में फेरों की संख्या पर-फेरों की संख्या अधिक होने पर अन्योन्य प्रेरकत्व का मान अधिक होता है।
(b) कुण्डलियों के अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल पर-कुण्डलियों के अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल अधिक होने पर अन्योन्य प्रेरकत्व का मान अधिक होता है।
(c) क्रोड के पदार्थ पर-वायु क्रोड को अपेक्षा नर्म लोहे का क्रोड होने पर अन्योन्य प्रेरकत्व का मान अधिक होता है।