रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद आज ईद आयी है । ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं । लडके सबसे ज़्यादा प्रसन्न हैं । हामिद भी ज़्यादा प्रसन्न है । वह भोली सूरत का चार – पाँच साल का दुबला – पतला लडका है । उसके माँ – बाप दोनों चल बसे ।
हामिद अपनी बूढी दादी अमीना के लालन – पोषण में रहता है । ईद का दिन होने के नाते हामिद आज बहुत प्रसन्न है । आज वह मेले के साथ ईदगाह जाना चाहता है । उसके पैरों में जूते तक नहीं । तीन कोस पैदल ही चलना पडता है । इसलिए दादी अमीना को बडा दुख हुआ ।
हामिद कैसा ठहर सकता है । वह ईदगाह की ओर चल पडा । उसके जेब में केवल तीन पैसे हैं । नमाज़ खत्म हो गयी । लोग आपस में गले मिल रहे हैं। सब मिठाई और खिलौनों के दूकानों पर धावा करने लगे।
हामिद के दोस्त मिठाइयाँ और खिलौने खरीदते उसे ललचाने पर भी वह चुप रह गया । उसके पास केवल तीन ही पैसे हैं । वह लोहे की चीज़ों के दुकान के पास ठहर जाता है । उसे ख्याल आता है कि दादी के पास चिमटा नहीं है । तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाते हैं |
अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे-तो वह कितनी प्रसन्न होगी ? यह सोचकर हामिद तीन पैसों से चिमटा खरीदकर दादी को देने तैयार होता है । हामिद के दोस्तों ने उसका मज़ाक किया ।
अमीना चिमटा देखकर हामिद के त्याग, सद्भाव और विवेक पर मुग्ध हो जाती है । वह प्रेम से गदगद हो जाती है । वह हामिद को दुआएँ देती है।