कवइत्री कहती है कि मुझे राम नाम रूपी रत्न की पूँजी मिली। मुझे यह पूँजी सद्गुरु के द्वारा तथा उनकी कृपा से मिली। यह पूँजी मेरे कई जन्मों के लिए भी पर्याप्त है। इसे प्राप्त करने के लिए मैंने जगं के सांसारिक वैभवों को खो दिया।
मेरी पूँजी ऐसी है कि इसे खर्च करने पर भी खर्च नहीं होती, कोई चोर भी इसे नहीं चुरा सकता। यह हर दिन 1¼ (सवाये) मूल्य की होती है।
कवइत्री और कहती है कि मेरी नाव जो है वह सत्य की है। इसे खेने वाला सद्गुरु है। मैं उसकी कृपा से भव सागर को पार करती हूँ। मेरा भगवान तो श्रीकृष्ण (गिरिधर नागर) है। मैं हर्ष के साथ उसके यश गाती हूँ।