(1) मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों, तू जसुमति कब जायो।।
कहा करौं इहि रिस के मारें, खेलन हौं नहिं जात।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरो तात।।
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।
चुंटकी दै-दै ग्वाल नचावत, हँसत सबै मुसकात।।
तू मोहीं को मारन सीखी, दाउहिं कबहुँ न खीझै।
मोहन मुख रिस - की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।
सुनहु कान, बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।
सूर स्याम मोंहि गोधन की सौं, हौं माता तू पूत।।