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नर जनन तन्त्र या पुरुष के जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए।

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नर जनन अंगों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँट सकते हैं।

1. मुख्य जनन अंग इन अंगों में युग्मकों का निर्माण होता हैं।

(i) वृषण (Testis) वृषण एक जोड़ी होते हैं। ये उदर गुहा से बाहर वृषण कोष (Scrotal sac) में स्थित होते हैं। वृषण लगभग 4-5 सेमी लम्बा 2,5 सेमी चौड़ा व 3 सेमी मोटा होता है। वृषण अनेक कुण्डलित नलिकाओं के बने होते हैं, जो शुक्रजनन नलिकाएँ कहलाती हैं। शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुओं का निर्माण होता है।

2. सहायक जनन अंग ये अंग जनन की प्रक्रिया में सहायक अंग होते हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित हैं।

(i) अधिवृषण (Epididymis) ये लगभग 6 मीटर लम्बी, पतली तथा अत्यधिक कुण्डलित नलिका होती है, जो वृषण के अग्र पश्च तथा भीतरी भाग को ढकने में सहायक हैं। यह अति कुण्डलित होकर लगभग 4 सेमी लम्बी, चपटी, कोमा के आकार की संरचना बनाती हैं।
एपीडिडाइमिस में शुक्राणु का संग्रहण व परिपक्वन होता है। एपीडिडाइमिस के तीन भाग होते हैं-शीर्ष एपीडिडाइमिस (Caput epididymis), मध्य भाग या एपौडिडाइमिस काय (Corpus epididymis) तथा पुच्छ एपीडिडाइमिस (Cauda epididymis) से एक शुक्रवाहिनी निकलकर वृषण नाल से होती हुई उदरगुहा में प्रवेश करते हुए मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती हैं।

(ii) शुक्रवाहिनी (Vas deferens) एपोडिडाइमिस से एक शुक्रवाहिनी निकलकर वृषण नाल से होती हुई उदरगुहा में प्रवेश करते हुए मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती है।

(iii) शुक्राशय (Serminal vesicle) यह एक द्विपालित थैलीनुमा ग्रन्थिल संरचना होती है। इससे चिपचिपा द्रव स्रावित होता है, जो वीर्य का मुख्य भाग बनाता है तथा शुक्राणुओं का पोषण करता हैं।

(iv) शिश्न (Penis) यह मैथुन अंग है। यह वृषण कोषों के मध्य स्थित होता है। शिश्न के मध्य मूत्रमार्ग (Urethra) गुजरता है, जो शिश्न के अग्र छोर पर खुलता है। मूत्रमार्ग द्वारा ही वीर्य के साथ शुक्राणु बाहर निकलते हैं।

3. सहायक जनन ग्रन्थियाँ इन ग्रन्थियों का स्रावण जनन प्रक्रिया में सहायक है। वर्णन निम्नलिखित हैं।

(i) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland) यह ग्रन्थि मूत्रमार्ग के अधर तल पर स्थित होती है। यह अनेक पिण्डों (Lobules) की बनी होती है। इस ग्रन्थि से हल्का क्षारीय तरल स्रावित होता है। यह मूत्रमार्ग की अम्लीयता को नष्ट करता है, जिससे शुक्राणु सक्रिय बने रहते हैं।

(ii) काउपर्स ग्रन्थियाँ (Cowper’s glands) ये एक जोड़ी ग्रन्थियाँ होती हैं तथा मूत्रमार्ग के दाएँ व बाएँ ओर स्थित होती हैं। काउपर्स ग्रन्थियाँ मैथुन से पहले एक क्षारीय एवं चिकने द्रव का स्रावण करती हैं। यह मूत्रमार्ग की अम्लता को समाप्त करता है तथा योनि मार्ग को चिकना बनाकर मैथुन में सहायक है।

(iii) पेरीनियल ग्रन्थियाँ (Perineal glands) एक जोड़ी ग्रन्थियाँ मलाशय के पास स्थित होती हैं। इनसे स्रावित रसायन विशेष गन्ध प्रदान करता है।

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