एनी बेसेण्ट भारत की तत्कालीन शिक्षा प्रणाली से बहुत असन्तुष्ट थीं और उन्होंने उसकी कटु आलोचना भी की। उन्होंने प्रचलित शिक्षा को एकांगी और अव्यावहारिक बताते हुए कहा-“आजकल भारत में शिक्षा का उद्देश्य उपाधि प्राप्त करना है। शिक्षा तब असफल होती है, जब कि बहुत से असंयुक्त तथ्यों के द्वारा बालक का मस्तिष्क भर दिया जाता है और इन तथ्यों को उसके मस्तिष्क में इस प्रकार डाला जाता है, मानो रद्दी की टोकरी में फालतू कागज फेंके जा रहे हों और फिर उन्हें परीक्षा के कमरे में उलटकर टोकरी खाली कर देनी है।”
शिक्षा का अर्थ
एनी बेसेण्ट ने शिक्षा की परिभाषा देते हुए कहा है-“शिक्षा का अर्थ है बालक की प्रकृति के प्रत्येक पक्ष में उसकी सभी आन्तरिक क्षमताओं को बाहर प्रकट करना, उसमें प्रत्येक बौद्धिक व नैतिक शक्ति का विकास करना, उसे शारीरिक, संवेगात्मक, मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाना ताकि विद्यालय की अवधि के अन्त में वह एक उपयोगी देशभक्त और ऐसा पवित्र व्यक्ति बन सके जो अपना और अपने चारों ओर के लोगों का आदर करता है।”
एनी बेसेण्ट के अनुसार, शिक्षा और संस्कृति में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इनके अनुसार जन्मजात शक्तियों या क्षमताओं का बाह्य प्रकाशन एवं प्रशिक्षण ही शिक्षा है। ये शक्तियाँ बालक को पूर्व जन्म से प्राप्त होती हैं। एनी बेसेण्ट के अनुसार, “शिक्षा एक ऐसी सांस्कारिक विधि या क्रिया है, जिसका फल संस्कृति है। व्यक्ति पर शिक्षा का प्रभाव अनवरत रूप से पड़ता रहता है और जैसे-जैसे संस्कारों की ऊर्ध्वगति होती जाती है, वे संस्कृति में बदलते जाते हैं।”
शिक्षा के उद्देश्य
एनी बेसेण्ट ने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं
⦁ शारीरिक विकास–एनी बेसेण्ट के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य शारीरिक विकास करना होना चाहिए, जिससे बालकों के स्वास्थ्य, शक्ति एवं सुन्दरता में वृद्धि हो सके।
⦁ मानसिक विकास–शिक्षा व्यक्ति को इसलिए देनी चाहिए जिससे वह अपनी विभिन्न मानसिक शक्तियों—चिन्तन, मनन, विश्लेषण, निर्णय, कल्पना आदि-का उचित विकास और प्रयोग कर सके।
⦁ संवेगों का प्रशिक्षण–एनी बेसेण्ट ने शिक्षा के द्वारा बालकों के संवेगात्मकें विकास पर बहुत बल दिया है। उन्होंने कहा है कि शिक्षा द्वारा व्यक्ति में उचित प्रकार के संवेग, अनुभूतियाँ और भाव उत्पन्न किये जाने चाहिए। शिक्षा के द्वारा सुन्दर और उत्तम के प्रति, दूसरों के सुख-दु:ख में सहानुभूति, माता-पिता एवं बड़ों का सम्मान, संमान अवस्था वालों के प्रति भाई-बहनों का-सा भाव और छोटों को बच्चों के समान तथा दूसरों के प्रति भुलाई का भाव उत्पन्न किया जाना चाहिए।
⦁ नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास-एनी बेसेण्ट के अनुसार शिक्षा के द्वारा बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए।
⦁ आदर्श नागरिक का निर्माण करना-शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को आदर्श नागरिक के गुणों से अलंकृत करना है, जिससे वह अपने आगे के सामाजिक, राजनीतिक एवं नागरिक जीवन में सुखी हो सके।
शिक्षा का पाठ्यक्रम
⦁ जन्म से 5 वर्ष तक का पाठ्यक्रम-इस अवस्था में बालक शारीरिक एवं मानसिक रूप से बहुत कोमल होता है और उसका विकास इच्छित दिशा में आसानी से किया जा सकता है। इस अवस्था में बालक के इन्द्रिय विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इसी समय वह चलना-फिरना, बैठना-उठना, बोलना आदि सीखता है। अतः इस अवस्था के पाठ्यक्रम में शारीरिक क्रिया, खेलकूद, गणित, भाषा, गीत, धार्मिक पुरुषों की कहानियों आदि को सम्मिलित करना चाहिए।
⦁ 5 से 7 वर्ष तक का पाठ्यक्रम-इस अवस्था के पाठ्यक्रम में गणित, भाषा, खेलकूद, सफाई और स्वास्थ्य की आदतों का निर्माण और प्रकृति निरीक्षण को शामिल किया जाए। इसके अतिरिक्त चित्रों एवं धार्मिक कहानियों की सहायता लेनी चाहिए, जिससे बालक का कलात्मक एवं धार्मिक विकास हो सके।
⦁ 7 से 10 वर्ष तक का पाठ्यक्रम-इस अवस्था में बालक की वास्तविक और औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ होती है। इसके अन्तर्गत मातृभाषा, संस्कृत, अरबी, फारसी, इतिहास, भूगोल, गणित, शारीरिक व्यायाम आदि विषयों को सम्मिलित करना चाहिए। इस स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए
⦁ 10 से 14 वर्ष तक का पाठ्यक्रम-इस अवस्था में बालक माध्यमिक स्तर पर प्रवेश करते हैं। इसके पाठ्यक्रम के अन्तर्गत मातृभाषा, संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी, भूगोल, इतिहास, प्रकृति एवं कौशल आदि विषयों को सम्मिलित करना चाहिए।
⦁ 14 वर्ष से 16 वर्ष तक का पाठ्यक्रम-यह हाईस्कूल की शिक्षा की अवस्था होती है। इसके पाठ्यक्रम को एनी बेसेण्ट ने चार भागों में विभाजित किया है
(क) सामान्य हाईस्कूल-
(अ) साहित्यिक–संस्कृत, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, मातृभाषा।
(ब) रसायनशास्त्र-भौतिकशास्त्र, गणित, रेखागणित, बीजगणित आदि।
(स) प्रशिक्षण-मनोविज्ञान, शिक्षण कला, विद्यालय व्यवस्था, शिक्षण अभ्यास, गृह विज्ञान आदि।
(ख) तकनीकी हाईस्कूल-मातृभाषा, अंग्रेजी, भौतिक एवं रसायन विज्ञान, व्यावसायिक इतिहास, प्रारम्भिक इंजीनियरी, यन्त्र विद्या, विद्युत ज्ञान आदि।
(ग) वाणिज्य हाईस्कूल-विदेशी भाषाएँ, व्यापारिक व्यवहार, हिसाब-किताब, व्यापारिक कानून, टंकण,व्यापारिक इतिहास, भूगोल एवं शॉर्ट हैण्ड आदि।
(घ) कृषि हाईस्कूल-संस्कृत, अरबी, फारसी या पालि, मातृभाषा, ग्रामीण इतिहास, भूगोल, गणित हिसाब-किताब, कृषि सम्बन्धी प्रयोगात्मक, रासायनिक एवं भौतिक विज्ञान, भूमि की नाप आदि। इसके अतिरिक्त बालकों के शारीरिक विकास के लिए खेलकूद, व्यायाम हस्तकलाएँ, सामाजिक क्रियाएँ वे समाज सेवा के कार्य कराए जाएँ तथा साथ में भावात्मक विकास भी किया जाए।
6. 16 से 21 वर्ष तक का पाठ्यक्रम-उच्च शिक्षा के इस पाठ्यक्रम को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
⦁ स्नातकीय पाठ्यक्रम-16 से 19 वर्ष तक की शिक्षा में बालकों को साहित्यिक, वैज्ञानिक, तकनीकी एवं कृषि की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।
⦁ स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम-19 से 21 वर्ष तक की शिक्षा में भी उपर्युक्त विषयों की शिक्षा दी जानी चाहिए
शिक्षण-पद्धतियाँ
एनी बेसेण्ट ने इन विधियों के द्वारा शिक्षा देने पर अधिक बल दिया है
⦁ क्रियाविधि-एनी बेसेण्ट का कहना था कि बालक स्वभाव से क्रियाशील होते हैं और खेलों में उनकी रुचि होती है, इसलिए शिक्षा प्रदान करने के लिए खेल-कूद, कसरतें, कृषि, उद्योग व हस्तकार्यों की सहायता लेनी चाहिए। इससे बालकों का शारीरिक विकास होगा और उन्हें ज्ञानार्जन का अवसर भी प्राप्त होगी।
⦁ निरीक्षण विधि-एनी बेसेण्ट का कहना था किं बालकों को उचित वातावरण में शिक्षा प्रदान करने के लिए घर के बाहर वास्तविक क्षेत्र में ले जाकर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निरीक्षण कराना चाहिए। इससे उनकी ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों का विकास होगा।
⦁ अनुकरण विधि-एनी बेसेण्ट का मत था कि बालकों में अनुकरण की प्रवृत्ति बहुत प्रबल होती है। इसलिए माता-पिता एवं शिक्षकों को चाहिए कि वे बालकों के सामने ऐसे व्यवहार प्रस्तुत करें, जिससे वे उनका अनुकरण कर अच्छे नैतिक आचरण का विकास करें।
⦁ स्वाध्याय विधि–उनका कहना था कि प्रत्येक विद्यार्थी को अध्ययन, चिन्तन एवं मनन में लीन रहना चाहिए। उच्च शिक्षा में इस विधि का बहुत महत्त्व है।
⦁ निर्देशन विधि-एनी बेसेण्ट का विचार था कि विद्यार्थियों को समय-समय पर शिक्षकों से अच्छे एवं उपयोगी निर्देश मिलते रहने चाहिए, जिससे विद्यार्थियों का आध्यात्मिक और मानसिक विकास होगा।
⦁ व्याख्यान विधि-एनी बेसेण्ट के अनुसार, उच्च शिक्षा के स्तर पर छात्रों को व्याख्यान विधि के द्वारा इतिहास, राजनीति, दर्शनशास्त्र, भूगोल, भाषा आदि की शिक्षा दी जानी चाहिए।
⦁ प्रायोगिक विधि-इस विधि का प्रयोग सभी क्रियाप्रधान और वैज्ञानिक विषयों के अध्ययन में किया जाना चाहिए; जैसे-भौतिक, रसायन और जीव विज्ञान, कला-कौशल, पाक विज्ञान, गृह-विज्ञान आदि।