ऐसे कार्यक्रम, जिनसे बच्चों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित किया जा सके, बाल कल्याण कार्यक्रम कहलाता है। बाल कल्याण कार्यक्रम के | अन्तर्गत माताओं की देखभाल भी शामिल होती है, क्योंकि जब माँ स्वस्थ होगी तभी बच्चा भी स्वस्थ होगा। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न नगरों एवं ग्रामों में बाल कल्याण की योजनाओं को जरूरतमन्दों तक पहुँचाने के लिए विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों की स्थापना की गई है। ये संगठन सरकारी एवं गैर-सरकारी दोनों प्रकार के होते हैं। सरकार द्वारा व्यापक रूप से बॉल कल्याण के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। विभिन्न संगठनों एवं सरकार द्वारा संचालित बाल कल्याण कार्यक्रम का योगदान इस प्रकार है।
बाल कल्याण संगठन
इन संगठनों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है
⦁ यूनीसेफ
⦁ केयर
⦁ भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी
⦁ कस्तूरबा गाँधी ट्रस्ट
⦁ विकलांगों हेतु शिक्षा-प्रबन्धन संस्थाएँ
यूनीसेफ
द्वितीय विश्वयुद्ध से पीड़ित माताओं एवं । बच्चों के कल्याण के लिए इस संगठन की बाल कल्याण संगठन स्थापना वर्ष 1946 में की गई। इसके द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को भी सहायता दी जाती है। संक्रामक रोगों की रोकथाम एवं बालकों के पोषण के सम्बन्ध में यह संगठन विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health संस्थाएँ। Organisation) और खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation) की भी सहायता करता है।
केयर
इसके द्वारा बाल कल्याण के कार्य किए जाते हैं। यह संस्था मुख्यतः पोषण सम्बन्धी समस्याओं के समाधान का कार्य करती है।
भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी
इस संगठन का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। भारत में मातृ एवं बाल कल्याण के क्षेत्र में सर्वप्रथम इसी संगठन ने अपना योगदान दिया। यह संस्था अनाथालय एवं अस्पतालों में असहाय लोगों को निःशुल्क सामग्री वितरित करती है।
कस्तूरबा गाँधी ट्रस्ट
कस्तूरबा गाँधी ट्रस्ट विभिन्न नगरों एवं गाँवों में महिलाओं एवं शिशुओं की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार से सहायता करती है। यह संस्था प्रसवपूर्व, प्रसव के दौरान एवं प्रसव के बाद उत्पन्न समस्याओं के समाधान के बारे में ग्रामीण महिलाओं को जागरूक करने का भी काम करती है
विकलांगों हेतु शिक्षा-प्रबन्धन संस्थाएँ
प्रत्येक समाज में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो अपने धन का उपयोग करके विकलांगों के लिए शिक्षा व्यवस्था का प्रबन्धन करते हैं। ऐसे परोपकारी व्यक्तियों एवं समाज सेवकों के कारण ही विकलांग बच्चे अपने जीवन में कुछ आनन्द प्राप्त कर पाते। हैं। भारत के अनेक नगरों में मूक-बधिर स्कूल स्थापित किए जा चुके हैं।
सरकार द्वारा संचालित बाल कल्याण कार्यक्रम
इन संगठनों के अतिरिक्त सरकार की ओर से भी विभिन्न स्तर पर कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
नगरों में बाल कल्याण सम्बन्धी योजनाएँ
विभिन्न नगरों में अनेक मातृ-शिशु कल्याण केन्द्र खोले गए हैं, जहाँ माँ और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य की देखभाल की जाती है। इन केन्द्रों में विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं ।
प्रसव पूर्व की सुरक्षा इन केन्द्रों पर प्रसव से पूर्व गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की जाँच के साथ नि:शुल्क परामर्श दिए जाते हैं, ताकि जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहें।
प्रसव के दौरान की सुरक्षा प्रसव के लिए इन केन्द्रों पर सुव्यवस्थित प्रसवगृह की व्यवस्था की गई है, जहाँ प्रसव के दौरान महिलाओं को कुशल चिकित्सक एवं प्रशिक्षित नर्मों की सेवाएँ मिलती रहती हैं। ये सारी सुविधाएँ महिलाओं को नि:शुल्क दी जाती हैं।
प्रसव के बाद की सुरक्षा प्रसव के बाद माँ एवं बच्चा दोनों की नियमित जाँच की जाती है तथा रोगग्रस्त होने पर उनका नि:शुल्क उपचार किया जाता है।
गाँवों में बाल कल्याण सम्बन्धी योजनाएँ
सरकार के द्वारा गाँवों में जगह-जगह सामुदायिक विकास केन्द्रों की स्थापना की गई, जो लोगों को स्वास्थ्य से सम्बन्धित शिक्षा देते थे। इसके अतिरिक्त विकासखण्डों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोले गए
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र आज लगभग सभी विकासखण्डों में प्राथमिक केन्द्र खोले जा चुके हैं। यहाँ ग्रामीणों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इन केन्द्रों पर गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व, प्रसव के दौरान एवं प्रसव के बाद देखभाल सम्बन्धी परामर्श दिया जाता है।
जन-स्वास्थ्य परिचारिका (स्वास्थ्यचर) जनस्वास्थ्य परिचारिकाओं द्वारा घर-घर जाकर स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा दी जाती है। ये ग्रामीण महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान एवं प्रसव के बाद दिए जाने वाले आहार के बारे में जानकारी देती हैं। प्रत्येक स्वास्थ्य परिचारिका को लगभग 200 गर्भवती महिलाओं, 200 शिशुओं और 700 बालकों, जिनकी आयु 3 से 4 वर्ष हो, की देखभाल करनी होती है।
दाइयों को प्रशिक्षित करना प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर प्रसव कराने के लिए प्रशिक्षित दाइयों की आवश्यकता होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में दाइयों के लोग घर पर भी प्रसव करा लेते हैं। अत: इनका प्रशिक्षित होना अतिआवश्यक है। इस प्रकार ग्रामीण महिलाएँ इन प्रशिक्षित दाइयों के सहयोग से अपने तथा अपने शिशु की रक्षा कर सकती हैं।