2. वायु-प्रदूषण
वायु में विजातीय तत्त्वों की उपस्थिति चाहे गैसीय हो या पार्थक्य या दोनों का मिश्रण, जो कि मानव के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक हो, वायु-प्रदूषण कहलाता है।
वायु-प्रदूषण मुख्य रूप से धूलकण, धुआँ, कार्बन-कण, सल्फर डाइऑक्साइड, सीसा, कैडमियम आदि घातक पदार्थों के वायु में मिलने से होता है। ये सब उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के माध्यम से वायुमण्डल में मिलते हैं।
वायु-प्रदूषण के कारण – वायु-प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है
⦁ नगरीकरण, औद्योगीकरण एवं अनियन्त्रित भवन-निर्माण से वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है।
⦁ परिवहन के साधनों (ऑटोमोबाइलों) से निकलता धुआँ वायु-प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण
⦁ नगरीकरण एवं नगरों की बढ़ती गन्दगी भी वायु को प्रदूषित कर रही है।
⦁ वनों की अनियमित एवं अनियन्त्रित केटाई से भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
⦁ रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक औषधियों के कृषि में अधिकाधिक उपयोग से भी वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।
⦁ रसोईघरों तथा कारखानों की चिमनियों से निकलते धुएँ के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
⦁ विभिन्न प्रदूषकों के भूमि पर फेंकने से वायु-प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है।
⦁ दूषित जल-मल के एकत्र होकर दुर्गन्ध फैलाने से वायु प्रदूषित हो रही है।
⦁ युद्ध, आणविक विस्फोट तथा दहन की क्रियाएँ वायु-प्रदूषण उत्पन्न करती हैं।
⦁ कीटनाशक पदार्थों के छिड़काव के कारण वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है।
वायु-प्रदूषण रोकने के उपाय – वायु मानव-जीवन का मुख्य आधार है। वायु का प्रदूषण मानव-जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। वायु प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी उपाय ढूंढ़ना आवश्यक है। वायु प्रदूषण रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाये जा सकते
⦁ कल-कारखानों को नगरों से दूर स्थापित करना तथा उनसे निकलने वाले धुएँ, गैस तथा राख पर नियन्त्रण करना।
⦁ परिवहन के साधनों पर धुआं-रहित यन्त्र लगाना।
⦁ नगरों में हरित पट्टी के रूप में युद्ध स्तर पर वृक्षारोपण कराना।
⦁ नगरों में स्वच्छता, जल-मल निकास तथा अवशिष्ट पदार्थों के मार्जन की उचित व्यवस्था करना।
⦁ वन लगाने तथा वृक्ष संरक्षण पर बल देना।
⦁ रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग को नियन्त्रित करना।
⦁ घरों में बायोगैस, पेट्रोलियम गैस या धुआँ-रहित चूल्हों का प्रयोग करना।
⦁ खुले में मैला, कूड़ा-करकट तथा अवशिष्ट पदार्थ सड़ने के लिए न फेंकना।
⦁ गन्दा जल एकत्र न होने देना।
⦁ वायु-प्रदूषण रोकने के लिए कठोर नियम बनाना और दृढ़ता से उनका पालन कराना।
वायु-प्रदूषण का मानव-जीवन पर प्रभाव – वायु-प्रदूषण के मानव-जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं
⦁ वायु-प्रदूषण से जानलेवा बीमारियाँ; जैसे-छाती और साँस की बीमारियाँ, ब्रांकाइटिस, फेफड़ों के कैंसर आदि बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
⦁ वायु-प्रदूषण मानव-शरीर, मानव की खुशियों और मानव की सभ्यता के लिए खतरा बना हुआ है। नीला, भूरा, सफेद, तरह-तरह का परिवहन के साधनों का धुआँ पूँघता हुआ आदमी जब सड़कों पर चलता है तो वह नहीं जानता कि यह धुआँ उसकी आँखों में ही डंक नहीं मार रहा है, उसके गले को भी दबाता है और उसके फेफड़ों को भी जहरीले नाखूनों से नोच रहा है।
⦁ वायु प्रदूषण न केवल चारों ओर फैले खेतों, हरे-भरे पेड़ों, रमणीक दृश्यों को भी धुंधला करता है व उन पर झीनी चादर डालता है, बल्कि खेतों, तालाबों व जलाशयों को अपने – कृमिकणों से विषाक्त करता रहता है, जिसका सीधा प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
⦁ डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा है कि जहाँ वायु-प्रदूषण अधिक है वहाँ बच्चों की हड्डियों का विकास कम होता है, हड्डियों की उम्र घट जाती है तथा बच्चों में खाँसी और सॉस फूलना तो देखा ही जा सकता है।
⦁ वायु-प्रदूषण का प्रभाव वृक्षों पर भी देखा जा सकता है। चण्डीगढ़ के पेड़ों और लखनऊ के दशहरी आमों पर वायु-प्रदूषण के बढ़ते हुए खतरे को देखा गया है, जिससे मानव को फल तो कम मात्रा में मिल ही रहे हैं, किन्तु जो मिल रहे हैं वे भी विषाक्त हैं, जिसको सीधा प्रभाव मानव पर पड़ रहा है।
⦁ दिल्ली के वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण का प्रभाव आम नागरिकों के स्वास्थ्य पर तो पड़ा ही, दिल्ली की परिवहन पुलिस पर भी पड़ा है और यही दशा कोलकाता और मुम्बई की | भी है, अर्थात् इससे मानव का जीवन (आयु) घट रहा है।
⦁ वायु-प्रदूषण के कारण ही फेफड़ों का कैंसर, टी० बी० तथा अन्य घातक रोग फैल रहे हैं।
⦁ वायु-प्रदूषण के कारण ओजोन की परत में छेद होने की सम्भावना व्यक्त होने से सम्पूर्ण विश्व भयाक्रान्त हो उठा है।
⦁ शुद्ध वायु न मिलने से शारीरिक विकास रुक गया है तथा शारीरिक क्षमता घटती जा रही है।
⦁ वायु-प्रदूषण मानव अस्तित्व के सम्मुख एक गम्भीर समस्या बन कर खड़ा हो गया है, जिसे रोकने में भारी व्यय करना पड़ रहा है।
3. ध्वनिप्रदूषण
पर्यावरण प्रदूषण का एक रूप ध्वनि-प्रदूषण भी है। ध्वनि-प्रदूषण की समस्या नगरों में अधिक है। ध्वनि-प्रदूषण को साधारण शब्दों में शोर बढ़ने के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है। पर्यावरण में शोर अर्थात् ध्वनियों का बढ़ जाना ही ध्वनि-प्रदूषण है। अब प्रश्न उठता है कि शोर क्या है? वास्तव में, प्रत्येक अनचाही तथा तीव्र आवाज शोर है। शोर का बढ़ना ही ध्वनि-प्रदूषण का बढ़ना कहा जाता है।
ध्वनि-प्रदूषण के कारण – ध्वनि-प्रदूषण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तर दायी हैं
⦁ ध्वनि-प्रदूषण परिवहन के साधनों; जैसे—बसों, ट्रकों, रेलों, वायुयानों, स्कूटरों आदि के द्वारा होता है। धड़धड़ाते हुए वाहन कर्कश स्वर देकर शोर उत्पन्न करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है।
⦁ कारखानों की विशालकाय मशीनें, कल-पुर्जे, इंजन आदि भयंकर शोर उत्पन्न करके ध्वनि प्रदूषण के स्रोत बने हुए हैं।
⦁ मस्जिदों में ध्वनि-विस्तारक यन्त्रों से होने वाली अजान, मन्दिरों में भजन, कीर्तन तथा गुरुद्वारों में शबद कीर्तन भी प्रदूषण के कारण हैं।
⦁ विभिन्न प्रकार के विस्फोटक भी ध्वनि-प्रदूषण के जन्मदाता हैं।
⦁ घरों पर जोर से बजने वाले रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकॉर्डर, कैसेट्स तथा बच्चों की चिल्ल-पौं की ध्वनि भी प्रदूषण उत्पन्न करने के मुख्य साधन हैं।
⦁ वायुयान, सुपरसोनिक विमान व अन्तरिक्ष यान भी ध्वनि-प्रदूषण फैलाते हैं।
⦁ मानव एवं पशु-पक्षियों द्वारा उत्पन्न शोर भी ध्वनि-प्रदूषण का मुख्य कारण है।
⦁ आँधी, तूफान तथा ज्वालामुखी के उद्गार के फलस्वरूप भी ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न होता
ध्वनि-प्रदूषण रोकने के उपाय-डॉ० पी० सी० शर्मा ने ध्वनि प्रदूषण निवारण के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाये हैं
⦁ ध्वनि-प्रदूषण निरोधक कानूनों को बनाना तथा उन्हें अमल में लाना।।
⦁ कम शोर करने वाली मशीनों को बनाना।
⦁ इमारतों के बाहर पेड़-पौधों, घास-झाड़ियों तथा घरों के अन्दर ध्वनि-शोषक साज-सज्जा एवं भवन निर्माण सामग्री का उपयोग करके ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव को कम करना।
⦁ सामाजिक दबाव बनाकर ध्वनि-प्रदूषण फैलाने वाले यन्त्रों को प्रयोग में लाने वाले व्यक्तियों को आवासीय बस्तियों तथा मनोरंजन के स्थानों से पृथक् करना।
⦁ जिन उद्योगों में तीव्र ध्वनि को नियन्त्रित करना सम्भव नहीं है, वहाँ कामगारों को श्रवणेन्द्रियों की रक्षा हेतु कान में लगायी जाने वाली उपयुक्त रक्षा-डाटों को उपलब्ध कराना।
⦁ जनसाधारण को ध्वनि-प्रदूषण के कुप्रभावों के प्रति जन-जागरण कार्यक्रमों के माध्यम से सचेत करना तथा संवेदनशील बनाना।।
⦁ स्कूलों में ध्वनि-प्रदूषण के विषय में ज्ञान देना।
ध्वनि-प्रदूषण का मानव-जीवन पर प्रभाव – ध्वनि-प्रदूषण का मानव-जीवन पर निम्नलिखित कुप्रभाव पड़ता है–
⦁ ध्वनि-प्रदूषण मानव के कानों के परदों पर, मस्तिष्क और शरीर पर इतना घातक आक्रमण करता है कि संसार के सारे वैज्ञानिक तथा डॉक्टर इससे चिन्तित हो रहे हैं।
⦁ ध्वनि-प्रदूषण वायुमण्डल में अनेक समस्याएँ उत्पन्न करता है और मानव के लिए एक गम्भीर खतरा बन गया है। जर्मन नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट कोक ने कहा है कि वह दिन दूर नहीं जब आदमी को अपने स्वास्थ्य के इस सबसे नृशंस शत्रु ‘शोर’ से पूरे जी-जान से लड़ना पड़ेगा।
⦁ ध्वनि-प्रदूषण के कारण व्यक्ति की नींद में बाधा उत्पन्न होती है। इससे चिड़चिड़ापन बढ़ता है तथा स्वास्थ्य खराब होने लगता है।
⦁ शोर के कारण सुनने की शक्ति कम होती है। बढ़ते हुए शोर के कारण मानव समुदाय बहरेपन की ओर बढ़ रहा है।
⦁ ध्वनि-प्रदूषण के कारण मानसिक तनाव बढ़ने से स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है।
⦁ ध्वनि-प्रदूषण मनुष्य के आराम में बाधक बनता जा रहा है।
ध्वनि-प्रदूषण की समस्या दिन-प्रति – दिन बढ़ती जा रही है। इस अदृश्य समस्या का निश्चित समाधान खोजना नितान्त आवश्यक है। विक्टर गुएन ने ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों को इन शब्दों में व्यक्त किया है, “शोर मृत्यु का मन्द गति अभिकर्ता है। यह मानव-मात्र का एक अदृश्य शत्रु है।”
वास्तव में, जल, वायु और ध्वनि-प्रदूषण आज के सामाजिक जीवन की एक गम्भीर चुनौती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनकर उभरा है। बढ़ते प्रदूषण ने मानव सभ्यता, संस्कृति तथा अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगा दिया है। भावी पीढ़ी को इस विष-वृक्ष से बचाये रखने के लिए प्रदूषण का निश्चित समाधान खोजना आवश्यक है।