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प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? प्रदूषण के समाज पर पड़ रहे दुष्प्रभावों की विवेचना कीजिए।

या

पर्यावरण प्रदूषण पर एक निबन्ध लिखिए। 

या

प्रदूषण के उत्तर दायी कारकों की विवेचना कीजिए। पर्यावरण प्रदूषण क्या है? आधुनिक भारत में प्रदूषण की समस्या का कारण क्या है? 

या

पर्यावरण प्रदूषण के कौन-कौन से प्रमुख कारण हैं? 

या

पर्यावरणीय प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसे समाप्त करने हेतु अपने सुझाव दीजिए। प्रदूषण के स्रोतों की विवेचना कीजिए। 

या

प्रदूषण क्या है? प्रदूषण के कुप्रभावों का वर्णन कीजिए।

या

पर्यावरण को जल-प्रदूषण से कैसे बचाया जा सकता है?

या

प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को समझाते हुए इनके नियन्त्रण के उपायों को समझाइए। 

या

मानव जीवन पर पर्यावरण प्रदूषण के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभावों का वर्णन कीजिए। 

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पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ एवं प्रकार

पर्यावरण प्रदषण का सामान्य अर्थ है – हमारे पर्यावरण का दूषित हो जाना। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति ने किया है। प्रकृति-प्रदत्त पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है जिसको जीवन के किसी भी पक्ष पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका होती है, तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उदाहरण के लिए, यदि पर्यावरण के मुख्य भाग वायु में ऑक्सीजन के स्थान पर अन्य विषैली एवं अनुपयोगी गैसों का अनुपात बढ़ जाए तो कहा। जाएगा कि वायु प्रदूषण हो गया है। वायु के अतिरिक्त पर्यावरण के किसी भी भाग के दूषित हो जाने को पर्यावरण प्रदूषण ही कहा जाएगा।

पर्यावरण के मुख्य भागों या पक्षों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न प्रकारों या स्वरूपों का निर्धारण किया गया है। पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य प्रकार हैं-जल-प्रदूषण, वायुप्रदूषण,ध्वनि-प्रदूषण तथा मृदा-प्रदूषण।

1. जल-प्रदूषण

जल में जीव रासायनिक ऑक्सीजन तथा विषैले रसायन, खनिज, ताँबा, सीसा, अरगजी, बेरियम फॉस्फेट, सायनाइड आदि की मात्रा में वृद्धि होना ही जल-प्रदूषण है। जल-प्रदूषण दो प्रकार का होता है

⦁    दृश्य – प्रदूषण तथा
⦁    अदृश्य – प्रदूषण।

जल-प्रदूषण के कारण – जल-प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है–

⦁    औद्योगीकरण जल-प्रदूषण के लिए सर्वाधिक उत्तर दायी है। चमड़े के कारखाने, चीनी एवं ऐल्कोहॉल के कारखाने, कागज की मिलें तथा अन्य अनेकानेक उद्योग नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं।

⦁    नगरीकरण भी जल-प्रदूषण के लिए उत्तर दायी है। नगरों की गन्दगी, मल व औद्योगिक अपशिष्टों के विषैले तत्त्व भी जल को प्रदूषित करते हैं।

⦁    समुद्रों में जहाजरानी एवं परमाणु अस्त्रों के परीक्षण से भी जल प्रदूषित होता है।

⦁    नदियों के प्रति भक्ति-भाव होते हुए भी तमाम गन्दगी; जैसे-अधजले शव, जानवरों की लाशें तथा अस्थि-विसर्जन आदि-भी नदियों में ही किया जाता है, जो नदियों के जल प्रदूषण का एक कारण है।

⦁    जल में अनेक रोगों के हानिकारक कीटाणु मिल जाते हैं, जिससे प्रदूषण उत्पन्न हो जाता

⦁    भूमिक्षरण के कारण मिट्टी के साथ रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों के नदियों में पहुँच जाने से नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है।

⦁    घरों से बहकर निकलने वाला फिनायल, साबुन, सर्फ आदि से युक्त गन्दा पानी तथा शौचालय का दूषित मल नालियों में प्रवाहित होता हुआ नदियों और झील के जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है।

⦁    नदियों और झीलों के जल में पशुओं को नहलाना, पुरुषों तथा स्त्रियों द्वारा स्नान करना वे साबुन आदि से गन्दे वस्त्र धोना भी जल-प्रदूषण का मुख्य कारण है।
जल-प्रदूषण रोकने के उपाय – जल की शुद्धता और उपयोगिता बनाये रखने के लिए प्रदूषण को रोकना आवश्यक है। जल-प्रदूषण को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाये जा सकते हैं

⦁    नगरों के दूषित जल और मल को नदियों और झीलों के स्वच्छ जल में मिलने से रोका जाए।

⦁    कल-कारखानों के दूषित और विषैले जल को नदियों और झीलों के जल में न गिरने दिया जाए।

⦁    मल-मूत्र एवं गन्दगीयुक्त जल का उपयोग बायोगैस बनाने या सिंचाई के लिए करके प्रदूषण को रोका जा सकता है।

⦁    सागरों के जल में आणविक परीक्षण न कराए जाएँ।

⦁    नदियों के तटों पर शव ठीक से जलाए जाएँ तथा उनकी राख भूमि में दबा दी जाए।

⦁    पशुओं के मृतक शरीर तथा मानव शवों को स्वच्छ जल में प्रवाहित न करने दिया जाए।

⦁    जल-प्रदूषण रोकने के लिए नियम बनाये जाएँ तथा उनका कठोरता से पालन किया जाए।

⦁    नदियों, कुओं, तालाबों और झीलों के जल को शुद्ध बनाये रखने के लिए प्रभावी उपाय काम में लाये जाएँ।

⦁    जल-प्रदूषण के कुप्रभाव तथा रोकने के उपायों का जनसामान्य में प्रचार-प्रसार कराया जाए।

⦁    जल उपयोग तथा जल-संसाधन संरक्षण के लिए राष्ट्रीय नीति बनायी जाए।
जल-प्रदूषण का मानव-जीवन पर प्रभाव (हानियाँ) – जब से सृष्टि है-पानी है; यह सर्वाधिक बुनियादी और महत्त्वपूर्ण साधन है। ‘पानी नहीं तो जीवन नहीं।’ संसार का 4 प्रतिशत पानी पृथ्वी पर है, शेष पानी समुद्रों में है, जो खारा है। पृथ्वी पर जितना पानी है उसका केवल 0.3 प्रतिशत भाग ही साफ और शुद्ध है और इसी पर सारी दुनिया निर्भर है। आज शुद्ध पानी कम होता जा रहा है और प्रदूषित पानी दिन-प्रतिदिन अधिक। प्रदूषित जल मानव-जीवन को निम्नलिखित प्रकार से सर्वाधिक प्रभावित करता है

⦁    जल, जो जीवन की रक्षा करता है, प्रदूषित हो जाने पर जीव की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बनता है और बनता जा रहा है।

⦁    जल-प्रदूषण से अनेक बीमारियाँ; जैसे-हैजा, पीलिया, पेट में कीड़े, यहाँ तक कि टायफाइड भी प्रदूषित जल के कारण ही होता है, जिससे विकासशील देशों में पाँच में से चार बच्चे पानी की गन्दगी के कारण उत्पन्न रोगों से मरते हैं।
राजस्थान के दक्षिणी भाग के आदिवासी गाँवों में गन्दे तालाबों का पानी पीने से “नारू’ नाम का भयंकर रोग होता है। इन गाँवों के 6 लाख 90 हजार लोगों में से 1 लाख 90 हजार लोगों को यह रोग है।

⦁    प्रदूषित जल का प्रभाव जल में रहने वाले जन्तुओं और जलीय पौधों पर भी पड़ रहा है। जल-प्रदूषण के कारण मछली और जलीय पौधों में 30 से 50 प्रतिशत तक की कमी हो गयी है। जो व्यक्ति खाद्य-पदार्थ के रूप में मछली आदि का उपयोग करते हैं, उनके स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है।।

⦁    प्रदूषित जल का प्रभाव कृषि-उपजों पर भी पड़ता है। कृषि से उत्पन्न खाद्य-पदार्थों को मानव व पशुओं के उपयोग में लाते हैं, जिससे मानव व पशुओं के स्वास्थ्य को हानि होती

⦁    जल-जन्तुओं के विनाश से पर्यावरण असन्तुलित होकर विभिन्न प्रकार के कुप्रभाव उत्पन्न करता है।

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2. वायु-प्रदूषण

वायु में विजातीय तत्त्वों की उपस्थिति चाहे गैसीय हो या पार्थक्य या दोनों का मिश्रण, जो कि मानव के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक हो, वायु-प्रदूषण कहलाता है।
वायु-प्रदूषण मुख्य रूप से धूलकण, धुआँ, कार्बन-कण, सल्फर डाइऑक्साइड, सीसा, कैडमियम आदि घातक पदार्थों के वायु में मिलने से होता है। ये सब उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के माध्यम से वायुमण्डल में मिलते हैं।

वायु-प्रदूषण के कारण – वायु-प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है

⦁    नगरीकरण, औद्योगीकरण एवं अनियन्त्रित भवन-निर्माण से वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है।

⦁    परिवहन के साधनों (ऑटोमोबाइलों) से निकलता धुआँ वायु-प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण

⦁    नगरीकरण एवं नगरों की बढ़ती गन्दगी भी वायु को प्रदूषित कर रही है।

⦁    वनों की अनियमित एवं अनियन्त्रित केटाई से भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।

⦁    रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक औषधियों के कृषि में अधिकाधिक उपयोग से भी वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।

⦁    रसोईघरों तथा कारखानों की चिमनियों से निकलते धुएँ के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।

⦁    विभिन्न प्रदूषकों के भूमि पर फेंकने से वायु-प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है।

⦁    दूषित जल-मल के एकत्र होकर दुर्गन्ध फैलाने से वायु प्रदूषित हो रही है।

⦁    युद्ध, आणविक विस्फोट तथा दहन की क्रियाएँ वायु-प्रदूषण उत्पन्न करती हैं।

⦁    कीटनाशक पदार्थों के छिड़काव के कारण वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है।
वायु-प्रदूषण रोकने के उपाय – वायु मानव-जीवन का मुख्य आधार है। वायु का प्रदूषण मानव-जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। वायु प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी उपाय ढूंढ़ना आवश्यक है। वायु प्रदूषण रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाये जा सकते

⦁    कल-कारखानों को नगरों से दूर स्थापित करना तथा उनसे निकलने वाले धुएँ, गैस तथा राख पर नियन्त्रण करना।

⦁    परिवहन के साधनों पर धुआं-रहित यन्त्र लगाना।

⦁    नगरों में हरित पट्टी के रूप में युद्ध स्तर पर वृक्षारोपण कराना।

⦁    नगरों में स्वच्छता, जल-मल निकास तथा अवशिष्ट पदार्थों के मार्जन की उचित व्यवस्था करना।

⦁    वन लगाने तथा वृक्ष संरक्षण पर बल देना।

⦁    रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग को नियन्त्रित करना।

⦁    घरों में बायोगैस, पेट्रोलियम गैस या धुआँ-रहित चूल्हों का प्रयोग करना।

⦁    खुले में मैला, कूड़ा-करकट तथा अवशिष्ट पदार्थ सड़ने के लिए न फेंकना।

⦁    गन्दा जल एकत्र न होने देना।

⦁    वायु-प्रदूषण रोकने के लिए कठोर नियम बनाना और दृढ़ता से उनका पालन कराना।
वायु-प्रदूषण का मानव-जीवन पर प्रभाव – वायु-प्रदूषण के मानव-जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

⦁    वायु-प्रदूषण से जानलेवा बीमारियाँ; जैसे-छाती और साँस की बीमारियाँ, ब्रांकाइटिस, फेफड़ों के कैंसर आदि बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।

⦁    वायु-प्रदूषण मानव-शरीर, मानव की खुशियों और मानव की सभ्यता के लिए खतरा बना हुआ है। नीला, भूरा, सफेद, तरह-तरह का परिवहन के साधनों का धुआँ पूँघता हुआ आदमी जब सड़कों पर चलता है तो वह नहीं जानता कि यह धुआँ उसकी आँखों में ही डंक नहीं मार रहा है, उसके गले को भी दबाता है और उसके फेफड़ों को भी जहरीले नाखूनों से नोच रहा है।

⦁    वायु प्रदूषण न केवल चारों ओर फैले खेतों, हरे-भरे पेड़ों, रमणीक दृश्यों को भी धुंधला करता है व उन पर झीनी चादर डालता है, बल्कि खेतों, तालाबों व जलाशयों को अपने – कृमिकणों से विषाक्त करता रहता है, जिसका सीधा प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

⦁    डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा है कि जहाँ वायु-प्रदूषण अधिक है वहाँ बच्चों की हड्डियों का विकास कम होता है, हड्डियों की उम्र घट जाती है तथा बच्चों में खाँसी और सॉस फूलना तो देखा ही जा सकता है।

⦁    वायु-प्रदूषण का प्रभाव वृक्षों पर भी देखा जा सकता है। चण्डीगढ़ के पेड़ों और लखनऊ के दशहरी आमों पर वायु-प्रदूषण के बढ़ते हुए खतरे को देखा गया है, जिससे मानव को फल तो कम मात्रा में मिल ही रहे हैं, किन्तु जो मिल रहे हैं वे भी विषाक्त हैं, जिसको सीधा प्रभाव मानव पर पड़ रहा है।

⦁    दिल्ली के वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण का प्रभाव आम नागरिकों के स्वास्थ्य पर तो पड़ा ही, दिल्ली की परिवहन पुलिस पर भी पड़ा है और यही दशा कोलकाता और मुम्बई की | भी है, अर्थात् इससे मानव का जीवन (आयु) घट रहा है।

⦁    वायु-प्रदूषण के कारण ही फेफड़ों का कैंसर, टी० बी० तथा अन्य घातक रोग फैल रहे हैं।

⦁    वायु-प्रदूषण के कारण ओजोन की परत में छेद होने की सम्भावना व्यक्त होने से सम्पूर्ण विश्व भयाक्रान्त हो उठा है।

⦁    शुद्ध वायु न मिलने से शारीरिक विकास रुक गया है तथा शारीरिक क्षमता घटती जा रही है।

⦁    वायु-प्रदूषण मानव अस्तित्व के सम्मुख एक गम्भीर समस्या बन कर खड़ा हो गया है, जिसे रोकने में भारी व्यय करना पड़ रहा है।

3. ध्वनिप्रदूषण

पर्यावरण प्रदूषण का एक रूप ध्वनि-प्रदूषण भी है। ध्वनि-प्रदूषण की समस्या नगरों में अधिक है। ध्वनि-प्रदूषण को साधारण शब्दों में शोर बढ़ने के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है। पर्यावरण में शोर अर्थात् ध्वनियों का बढ़ जाना ही ध्वनि-प्रदूषण है। अब प्रश्न उठता है कि शोर क्या है? वास्तव में, प्रत्येक अनचाही तथा तीव्र आवाज शोर है। शोर का बढ़ना ही ध्वनि-प्रदूषण का बढ़ना कहा जाता है।

ध्वनि-प्रदूषण के कारण – ध्वनि-प्रदूषण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तर दायी हैं

⦁    ध्वनि-प्रदूषण परिवहन के साधनों; जैसे—बसों, ट्रकों, रेलों, वायुयानों, स्कूटरों आदि के द्वारा होता है। धड़धड़ाते हुए वाहन कर्कश स्वर देकर शोर उत्पन्न करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है।

⦁    कारखानों की विशालकाय मशीनें, कल-पुर्जे, इंजन आदि भयंकर शोर उत्पन्न करके ध्वनि प्रदूषण के स्रोत बने हुए हैं।

⦁    मस्जिदों में ध्वनि-विस्तारक यन्त्रों से होने वाली अजान, मन्दिरों में भजन, कीर्तन तथा गुरुद्वारों में शबद कीर्तन भी प्रदूषण के कारण हैं।

⦁    विभिन्न प्रकार के विस्फोटक भी ध्वनि-प्रदूषण के जन्मदाता हैं।

⦁    घरों पर जोर से बजने वाले रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकॉर्डर, कैसेट्स तथा बच्चों की चिल्ल-पौं की ध्वनि भी प्रदूषण उत्पन्न करने के मुख्य साधन हैं।

⦁    वायुयान, सुपरसोनिक विमान व अन्तरिक्ष यान भी ध्वनि-प्रदूषण फैलाते हैं।

⦁    मानव एवं पशु-पक्षियों द्वारा उत्पन्न शोर भी ध्वनि-प्रदूषण का मुख्य कारण है।

⦁    आँधी, तूफान तथा ज्वालामुखी के उद्गार के फलस्वरूप भी ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न होता
ध्वनि-प्रदूषण रोकने के उपाय-डॉ० पी० सी० शर्मा ने ध्वनि प्रदूषण निवारण के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाये हैं

⦁    ध्वनि-प्रदूषण निरोधक कानूनों को बनाना तथा उन्हें अमल में लाना।।

⦁    कम शोर करने वाली मशीनों को बनाना।

⦁    इमारतों के बाहर पेड़-पौधों, घास-झाड़ियों तथा घरों के अन्दर ध्वनि-शोषक साज-सज्जा एवं भवन निर्माण सामग्री का उपयोग करके ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव को कम करना।

⦁    सामाजिक दबाव बनाकर ध्वनि-प्रदूषण फैलाने वाले यन्त्रों को प्रयोग में लाने वाले व्यक्तियों को आवासीय बस्तियों तथा मनोरंजन के स्थानों से पृथक् करना।

⦁    जिन उद्योगों में तीव्र ध्वनि को नियन्त्रित करना सम्भव नहीं है, वहाँ कामगारों को श्रवणेन्द्रियों की रक्षा हेतु कान में लगायी जाने वाली उपयुक्त रक्षा-डाटों को उपलब्ध कराना।

⦁    जनसाधारण को ध्वनि-प्रदूषण के कुप्रभावों के प्रति जन-जागरण कार्यक्रमों के माध्यम से सचेत करना तथा संवेदनशील बनाना।।

⦁    स्कूलों में ध्वनि-प्रदूषण के विषय में ज्ञान देना।
ध्वनि-प्रदूषण का मानव-जीवन पर प्रभाव – ध्वनि-प्रदूषण का मानव-जीवन पर निम्नलिखित कुप्रभाव पड़ता है–

⦁    ध्वनि-प्रदूषण मानव के कानों के परदों पर, मस्तिष्क और शरीर पर इतना घातक आक्रमण करता है कि संसार के सारे वैज्ञानिक तथा डॉक्टर इससे चिन्तित हो रहे हैं।

⦁    ध्वनि-प्रदूषण वायुमण्डल में अनेक समस्याएँ उत्पन्न करता है और मानव के लिए एक गम्भीर खतरा बन गया है। जर्मन नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट कोक ने कहा है कि वह दिन दूर नहीं जब आदमी को अपने स्वास्थ्य के इस सबसे नृशंस शत्रु ‘शोर’ से पूरे जी-जान से लड़ना पड़ेगा।

⦁    ध्वनि-प्रदूषण के कारण व्यक्ति की नींद में बाधा उत्पन्न होती है। इससे चिड़चिड़ापन बढ़ता है तथा स्वास्थ्य खराब होने लगता है।

⦁    शोर के कारण सुनने की शक्ति कम होती है। बढ़ते हुए शोर के कारण मानव समुदाय बहरेपन की ओर बढ़ रहा है।

⦁    ध्वनि-प्रदूषण के कारण मानसिक तनाव बढ़ने से स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है।

⦁    ध्वनि-प्रदूषण मनुष्य के आराम में बाधक बनता जा रहा है।

ध्वनि-प्रदूषण की समस्या दिन-प्रति – दिन बढ़ती जा रही है। इस अदृश्य समस्या का निश्चित समाधान खोजना नितान्त आवश्यक है। विक्टर गुएन ने ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों को इन शब्दों में व्यक्त किया है, “शोर मृत्यु का मन्द गति अभिकर्ता है। यह मानव-मात्र का एक अदृश्य शत्रु है।”
वास्तव में, जल, वायु और ध्वनि-प्रदूषण आज के सामाजिक जीवन की एक गम्भीर चुनौती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनकर उभरा है। बढ़ते प्रदूषण ने मानव सभ्यता, संस्कृति तथा अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगा दिया है। भावी पीढ़ी को इस विष-वृक्ष से बचाये रखने के लिए प्रदूषण का निश्चित समाधान खोजना आवश्यक है।

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4. मृदा-प्रदूषण

भूमि पेड़-पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक लवण, खनिज तत्त्व, जल, वायु तथा कार्बनिक पदार्थ संचित रखती है। भूमि में उपर्युक्त पदार्थ प्रायः निश्चित अनुपात में पाये जाते हैं। इन पदार्थों की मात्रा में किन्हीं प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होने वाला अवांछनीय परिवर्तन मृदा-प्रदूषण कहलाता है। दूसरे शब्दों में, “भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन जिसका हानिकारक प्रभाव मनुष्य तथा अन्य जीवों पर पड़ता है। अथवा जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो जाती है, मृदा-प्रदूषण कहलाता है।”

मृदा-प्रदूषण के कारण मृदा-प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

⦁    नगरों द्वारा ठोस कूड़ा-करकट फेंकने से तथा खानों के पास बेकार पदार्थों के ढेर जमा होने से भूमि अन्य कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं रहती।

⦁    दूषित क्षेत्रों से बहकर आया जल नदियों को प्रदूषित करता है। इन्हीं क्षेत्रों से जल का रिसाव भूमिगत जल में प्रदूषण फैलाता है।

⦁    सिंचाई से भी भूमि का प्रदूषण होने लगा है। सिंचित भूमि पर नमक या नमकीन परत जम जाती है, ऐसी भूमि खेती योग्य नहीं रहती।

⦁    अर्द्धमरुस्थलीय प्रदेशों में पवनें भारी मात्रा में बालू उड़ाकर पास-पड़ोस के खेतों में जमा कर देती हैं और खेत कृषि के लिए बेकार हो जाते हैं।

⦁    बाढ़ के दौरान कंकड़, पत्थर तथा रेत जमा हो जाने से खेत बर्बाद हो जाते हैं।
⦁    प्रदूषित जल तथा वायु के कारण मृदा भी प्रदूषित हो जाती है। वर्षा इत्यादि के जल के साथ ये प्रदूषक पदार्थ मिट्टी में आ जाते हैं; जैसे-वायु में SO, वर्षा के जल के साथ मिलकर H,SO, अम्ल बना लेती है।

⦁    इसी प्रकार जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ अधिक फसल पैदा करने के लिए भूमि की उर्वरता बढ़ाने या बनाये रखने के लिए उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के कीटाणुनाशक पदार्थ (Pesticides), अपतृणनाशी पदार्थ (weedicides) आदि फसलों पर छिड़के जाते हैं। ये सभी पदार्थ मृदा के साथ मिलकर हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं।
मृदा-प्रदूषण रोकने के उपाय – जैव-पदार्थ पौधे तथा मृदा के लिए उपयोगी हैं। खेती करने, वर्षा, भूमि का कटाव तथा कुछ अन्य कारणों से भूमि में जैव-पदार्थों की कमी होने लगती है। मृदा-प्रदूषण रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

⦁    मृदा में कार्बनिक खादों का प्रयोग करना चाहिए।

⦁    खेत में सदैव कम सिंचाई करनी चाहिए।

⦁    खेत में जल-निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।

⦁    खेतों की मेड़बन्दी करनी चाहिए, जिससे वर्षा के पानी से या भूमि के कटाव से जीवांश पदार्थ बहकर न निकल जाएँ।

⦁    विभिन्न प्रकार के कीटनाशक, साबुन व अपमार्जक, अपतृणनाशक व अन्य रासायनिक पदार्थ आदि सामान्य मृदा प्रदूषक होते हैं। अतः इन पदार्थों से भूमि को बचाना चाहिए।
मृदा-प्रदूषण का मानव-जीवन पर प्रभाव – मृदा-प्रदूषण से मानव-जीवन पर मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

⦁    दूषित-मृदा में रोगों के जीवाणु पनपते हैं, जिनसे मनुष्यों व अन्य जीवों में रोग फैलते हैं।

⦁    मृदा-प्रदूषण से पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जिससे पूरी फसल ही बर्बाद हो जाती है।

⦁    फसल की बर्बादी से जीव-जन्तुओं तथा मनुष्यों को अनेक प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।

यह स्पष्ट है कि अभी बताये गये उपायों को लागू करना केवल एक व्यक्ति के द्वारा सम्भव नहीं है। इस कार्य के लिए सरकार, विधिवेत्ताओं, वास्तुकारों, ध्वनि-अभियन्ता, नगर-परियोजना-अधिकारियों, पुलिस, मनोवैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा शिक्षकों सभी के सहयोग की आवश्यकता होगी।

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