अवशिष्ट जल का उपचार – कल-कारखानों के अवशिष्ट जल को नदी में भेजने से पहले उसका उपयुक्त उपचार करना आवश्यक होता है जिससे प्रदूषक नदी, झील या तालाब के जल को प्रदूषित न कर सकें, क्योंकि हमारे वाटर वर्ल्स इन्हीं से जल लेकर हमें पीने को देते हैं। सीवर के जल को भी शहर के बाहर दोषरहित बनाकर ही नदियों में छोड़ना चाहिए। कारखानों के जल से विषैले पदार्थ को ही नहीं बल्कि ऊष्मा को निकालकर ही उसे नदी में डालना चाहिए।
पुनः चक्रण – शहरी और औद्योगिक गन्दे जल को नदियों में मिलाने से पहले साफ करना और निथारना एक बड़ा खर्चीला काम है। अत: ठोस अवशिष्ट पदार्थों; जैसे-कूड़ा-करकट, सीवेज (मल-मूत्र) और अवशिष्ट जल से रासायनिक विधियों द्वारा अन्य उपयोगी पदार्थ बनाये जा सकते हैं। इस प्रकार हानि को लाभ में बदला जा सकता है। उदाहरणार्थ-पटना में मल-मूत्र व गन्दे जल से बायोगैस बन रही है जिससे पूरा मुहल्ला प्रभावित हो रहा है। बंगलुरू शहर में भी प्रदूषित जल से बायोगैस बनायी जा रही है।