पिता के अधिकारों में कमी तथा अन्य सदस्यों के महत्त्व का बढ़ना–अब परिवार अधिनायकवादी आदर्शों से प्रजातान्त्रिक आदर्शों की ओर बढ़ रहे हैं। अब पिता परिवार में निरंकुश शासक के रूप में नहीं रहा है। परिवार से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण निर्णय अब केवल पिता के द्वारा नहीं लिये जाते। अब ऐसे निर्णयों में पत्नी और बच्चों का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है। अब परिवार में स्त्री को भार-स्वरूप नहीं समझा जाता। अब बच्चों के प्रति भी माता-पिता के मनोभावों में परिवर्तन आया है। वे समझने लगे हैं कि बच्चों को मार-पीटकर या उनकी इच्छाओं का दमन करके उन्हें सही रास्ते पर नहीं लाया जा सकता। स्पष्ट है कि परिवार में स्त्री-सदस्यों एवं बच्चों का महत्त्व बढ़ा है।