जिला परिषदों (जिला पंचायतों) की आय के प्रमुख स्रोत
1. हैसियत एवं सम्पत्ति – कर-जिला पंचायत अपने क्षेत्र में व्यक्तियों की हैसियत एवं सम्पत्ति पर अथवा उद्योगों व व्यापार पर कर लगाती है। इससे जिला परिषद् को आय प्राप्त होती है। इस कर की प्रकृति प्रगतिशील होती है, अर्थात् अमीर व्यक्तियों पर यह कर ऊँची दर से लगाया जाता है।
2. भूमि पर उपकर – यह जिला पंचायत की आय का प्रमुख स्रोत है। इस मद से सम्पूर्ण आय का लगभग 70% भाग प्राप्त होता है। इस कर को लगान के साथ राज्य सरकारें वसूल करती हैं और वह इसे जिला परिषद् में वितरित कर देती हैं। उत्तर प्रदेश में यह कर राज्य सरकार लगान के साथ ही वसूल करती है तथा जिला पंचायतों को प्रतिकारी अनुदान (Compensatory grant) प्रदान करती है।
3. मार्ग शुल्क – जिला पंचायत अपने क्षेत्र में नदियों के पुल, घाट, सड़क आदि पर कर लेती है। जो व्यक्ति अपने पशु अथवा वाहन इन पुलों, सड़कों या घाट से लाते व ले जाते हैं, उन्हें यह मार्ग शुल्क देना पड़ता है।
4. काँजी हाउस से आय – आवारा घूमने वाले पशुओं को कॉजी हाउस में बन्द कर दिया जाता है। जब उनके मालिक उन्हें छुड़ाने आते हैं तो उनसे जुर्माना प्राप्त किया जाता है। इस मद से भी जिला पंचायत को आय प्राप्त होती है।
5. मेलों, प्रदर्शनियों व बाजारों से आय – जिला पंचायतों के क्षेत्र में जिन प्रमुख मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है, उसका प्रबन्ध जिला पंचायत को करना पड़ता है। इनके आयोजन से जो आय प्राप्त होती है वह जिला पंचायत की आय है; उदाहरण के लिए-मुजफ्फरनगर में शुक्रताल, गढ़मुक्तेश्वर में गंगास्नान मेला आदि। इनसे प्राप्त होने वाली आय जिला पंचायतों को प्राप्त होती है।
6. किराया व शुल्क – जिला पंचायत के भूमि, मकानों, दुकानों, डाक-बंगलों आदि के किराये से आय प्राप्त होती है। स्कूलों में अस्पतालों से कुछ शुल्क भी आय के रूप में मिलता है।
7. राज्य सरकारों से प्राप्त अनुदान – राज्य सरकार जिला पंचायतों को अनुदान के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान करती है। राज्य सरकारें यह अनुदान उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के विकास के लिए देती हैं। जिला पंचायतों की आय की यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मद है।
8. अनुज्ञा-पत्र शुल्क – जिला परिषद् कसाइयों से, गोश्त की दुकानों से, वनस्पति घी की दुकानों से, आटे की चक्की के रूप में आय प्राप्त करती है।
9. कृषि उपकरणों की बिक्री से आय – जिला पंचायत खाद, बीज, कृषि यन्त्र आदि की बिक्री की भी व्यवस्था करती है। इनकी बिक्री से भी लाभ के रूप में कुछ आय प्राप्त होती है।
जिला पंचायतों की व्यय की प्रमुख मदें
जिला पंचायत की व्यय की मदें निम्नलिखित हैं
1. शिक्षा पर व्यय – जिला पंचायत सबसे अधिक व्यय शिक्षा पर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार व प्रसार का उत्तरदायित्व जिला पंचायतों पर है। इसके लिए जिला पंचायत गाँवों में प्राइमरी स्कूल तथा जूनियर हाईस्कूल खोलती है। गाँवों में वाचनालय एवं पुस्तकालयों की भी व्यवस्था करती है।
2. सामान्य प्रशासन एवं करों की प्राप्ति पर व्यय – जिला पंचायत को अपने कार्यालय में कर्मचारियों के वेतन तथा करों की वसूली पर भी व्यय करना पड़ता है।
3. सार्वजनिक स्वास्थ्य – जिला पंचायतें ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल एवं जच्चा-बच्चा गृहों की व्यवस्था करती हैं। ये गाँवों में हैजा, चेचक, प्लेग आदि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीके लगवाने की व्यवस्था करती हैं।
4. सार्वजनिक निर्माण कार्य – जिला पंचायत अपने क्षेत्र में सड़कें बनवाना, वृक्ष लगवाना, पुलों को निर्माण एवं मरम्मत की व्यवस्था करती है। इन कार्यों पर जिला पंचायत को पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।
5. मेले तथा प्रदर्शनी पर व्यय – जिला पंचायत को जिले में लगने वाले मेलों तथा प्रदर्शनियों की व्यवस्था पर भी व्यय करना पड़ता है।
6. पंचायतों की आर्थिक सहायता – जिला पंचायत, ग्राम पंचायतों तथा क्षेत्रीय समितियों के कार्यों का निरीक्षण करती है तथा अनुदान के रूप में ग्राम पंचायतों को आर्थिक सहायता भी देती है।
7. ऋण पर ब्याज – जिला पंचायत कभी- कभी जिले के आर्थिक विकास के लिए ऋण भी ले लेती है। इन ऋणों पर उसे ब्याज देना पड़ता है।
8. अन्य मदें – जिला पंचायतें दीन-दु:खियों तथा अपाहिजों की सहायता करती हैं, जन्म-मृत्यु का विवरण रखती हैं, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करती हैं तथा पशुओं आदि की बीमारी से रोकथाम की व्यवस्था करती हैं। इन सब कार्यों के लिए जिला पंचायते पर्याप्त धन व्यय करती हैं।