अनुसूचित जाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ
भारत अनेक धर्मों और जातियों का देश है। समाज में व्याप्त विसंगतियों के कारण यहाँ की कुछ जातियाँ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में पिछड़ गयीं। इन जातियों की नियोग्यताओं के कारण इन्हें अछूत या अस्पृश्य कहा गया। 2011 ई० की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ राष्ट्र की कुल जनसंख्या का लगभग एक-चौथाई भाग थीं। आर्थिक-धार्मिक नियोग्यताएँ लाद देने के कारण अनुसूचित जातियाँ राष्ट्र की मुख्य धारा से कट गयीं। सुख-सुविधाओं से वंचित रह जाने के कारण ये जातियाँ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में पिछड़ गयीं। इन्हें समाज से बहिष्कृत कर दूर एक कोने में रहने के लिए बाध्य कर दिया गया। भारतीय संविधान में इन पिछड़ी और दुर्बल जातियों को सूचीबद्ध किया गया तथा इन्हें अनुसूचित जाति कहकर सम्बोधित किया गया। अनुसूचित जाति को विभिन्न विद्वानों ने निम्नवत् परिभाषित किया है|
डॉ० जी० एस० घुरिये के अनुसार, “मैं अनुसूचित जातियों को उस समूह के रूप में परिभाषित कर सकता हूँ जिनका नाम इस समय अनुसूचित जातियों के अन्तर्गत आदेशित है।”
डॉ० डी० एन० मजूमदार के अनुसार, “वे सभी समूह जो अनेक सामाजिक एवं राजनीतिक निर्योग्यताओं से पीड़ित हैं तथा जिनके प्रति इन निर्योग्यताओं को समाज की उच्च जातियों ने परम्परागत तौर पर लागू किया था, अस्पृश्य जातियाँ कही जा सकती हैं।”
“संविधान की धारा 341 और 342 में सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से जिन जातियों को सूचीबद्ध करके राष्ट्रपति द्वारा विज्ञप्ति जारी करके अनुसूचित घोषित किया है, अनुसूचित जातियाँ कहलाती हैं।”
संविधान की पाँचवीं अनुसूची में विशेष कार्यक्रम के लिए जिन जातियों का चुनाव किया गया है, उन्हें अनुसूचित जाति कहा जाता है। भारतीय संविधान में उत्तर प्रदेश की 66 जातियों को सूचीबद्ध करके अनुसूचित जाति घोषित किया गया है। इनमें घुसिया, जाटव, वाल्मीकि, धोबी, पासी और खटीक मुख्य हैं।
अनुसूचित जातियों की समस्याएँ
भारत की अनुसूचित जातियाँ अनेक समस्याओं और कठिनाइयों से ग्रसित हैं। ये समस्याएँ इनके विकास-मार्ग की प्रमुख बाधाएँ हैं। अनुसूचित जातियों की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. अस्पृश्यता की समस्या – भारत में अनुसूचित जातियों के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या अस्पृश्यता की रही है। उच्च जाति के व्यक्ति कुछ व्यवसायों; जैसे-चमड़े का काम, सफाई का काम, कपड़े धोने का काम आदि करने वाले व्यक्तियों को अपवित्र मानते थे। उनके साथ भोजन-पानी का सम्बन्ध नहीं रखते थे। इन्हें लोग अछूत कहते थे। अनुसूचित जाति अर्थात् नीची जाति की छाया पड़ना तक बुरा माना जाता था। पूजा-पाठ के स्थानों पर इनके जाने पर प्रतिबन्ध था, कहीं-कहीं पर तो अन्तिम-संस्कार के लिए भी इनका स्थान अलग निर्धारित किया जाता था। अत: अनुसूचित जातियों को अस्पृश्यता की समस्या का सामना करना पड़ता था।
2. निर्धनता की समस्या – अनुसूचित जाति के लोग आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक पिछड़ी स्थिति में रहे हैं। इनके पास स्वयं के साधन (खेती, व्यापार आदि) नहीं थे। अत: अधिकांशतः। इन्हें किसानों के यहाँ अथवा अन्य स्थानों पर मजदूरी करनी पड़ती थी। कृषि-क्षेत्र में इन्हें फसल का बहुत ही कम भाग मिल पाता था तथा मजदूरी भी नाम-मात्र की मिल पाती थी। आज भी अनुसूचित जाति के लोग निर्धनता की रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। निर्धनता के कारण अनुसूचित जाति के सदस्य ऋणों के भार से दब गये हैं। निर्धनता इनके लिए एक अभिशाप बनी हुई है।
3. अशिक्षा की समस्या – अनुसूचित जाति के लोग अज्ञानी व अशिक्षित हैं। सामान्य जनसंख्या के अनुपात में इनमें साक्षरता भी आधी है। परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को ही काम पर लगा दिया जाता है, वे स्कूल से दूर रहते हैं और यदि स्कूल जाते भी हैं तो उनमें से आधे प्राथमिक स्तर पर ही रुक जाते हैं। अशिक्षा और अज्ञानता सभी बुराइयों का आधार होती है। इस कारण अनुसूचित जाति के लोगों में अनेक प्रकार की बुराइयों ने घर बना लिया है। अशिक्षा इनके विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।।
4. ऋणग्रस्तता की समस्या – अनुसूचित जाति के लोग निर्धन हैं, इसलिए ऋणग्रस्तता से पीड़ित हैं। ऋणग्रस्तता के कारण ये जिस किसान के यहाँ एक बार काम पर लग जाते हैं, पूरे जीवन वहीं पर बन्धक बने रहते हैं तथा जीवन भर ऋण-मुक्त नहीं हो पाते हैं। ऋण चुकाने का काम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है, परन्तु उन्हें ऋण से मुक्ति ही नहीं मिल पाती। ऋणों से छुटकारा न मिल पाना इनकी नियति बन जाती है।
5. रहन-सहन का स्तर नीचा – अनुसूचित जाति के लोगों का जीवन-स्तर निम्न है। वे आधा पेट खाकर व अर्द्ध-नग्न रहकर जीवन व्यतीत करते हैं। निर्धनता और बेरोजगारी इनके रहनसहन के नीचे स्तर के लिए उत्तरदायी हैं।
6. आवास की समस्या – अनुसूचित जाति के निवास स्थान भी बहुत ही शोचनीय दशा में हैं। ये लोग गाँव के सबसे गन्दे और खराब भागों में ऐसी झोंपड़ियों में रहते हैं जहाँ सफाई का नामोनिशान नहीं होता। बरसात में ये झोंपड़े चूने लगते हैं। कच्चा फर्श और वर्षा का जल मिलकर इनके जीवन को नारकीय बना देता है। धन के अभाव में ये लोग कच्ची मिट्टी के घास-फूस के ढके आवास ही बना पाते हैं।
7. शोषण की समस्या – अनुसूचित जाति के लोगों को बेगार करनी पड़ती है। उच्च जाति के लोग उन्हें बिना मजदूरी दिये अनेक प्रकार के कार्य कराते हैं, इन लोगों के पास ऋण लेते समय गिरवी रखने के लिए भी कुछ नहीं होता। इसलिए वे ऋण के बदले में अपने परिवार के स्त्री तथा बच्चों की स्वतन्त्रता को गिरवी रख देते हैं। यह दोसती पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। शोषण इनके जीवन को अभावमय और खोखला बना देता है। शोषण की समस्या के कारण इनका जीवन दुःखपूर्ण हो जाता है।
8. बेरोजगारी की समस्या – अनुसूचित जाति के सामने बेकारी और अर्द्ध-बेकारी की समस्या भी गम्भीर है। रोजगार के अभाव में अनुसूचित जाति के लोग अपना गाँव छोड़कर अपने परिवार के सदस्यों के साथ नगरीय क्षेत्रों की ओर पलायन कर जाते हैं, जिसके कारण उनके बच्चों की शिक्षा नहीं हो पाती तथा उनका चारित्रिक व नैतिक पतन भी होता है। बेरोजगारी के कारण निर्धनता का जन्म होता है, जो उनके जीवन में विष घोल देती है।
भारत सरकार द्वारा निराकरण (विकास) के लिए किये गये प्रयत्न (सुविधाएँ)
सरकार द्वारा अनुसूचित जाति व जनजाति की समस्याओं का निराकरण कर उन्हें सामान्य सामाजिक स्तर तक लाने के लिए अनेक प्रयत्न किये जा रहे हैं, जो निम्नवत् हैं
1. लोकसभा व विधानमण्डलों में स्थान आरक्षित – अनुसूचित जातियों के लिए लोकसभा में 545 सीटों में से 79 सीटें और 41 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। विधानसभाओं में भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित हैं।
2. सरकारी सेवाओं में स्थान सुरक्षित – सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जातियों के लिए 15 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रखे गये हैं।
3. पंचायतों में आरक्षण की व्यवस्था – अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों के लिए जनसंख्या के अनुपात में तीनों स्तरों की पंचायतों (अर्थात् ग्राम-पंचायतों, क्षेत्र-समितियों तथा जिला परिषदों) में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है, जिससे सामाजिक न्याय का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
4. अनुसूचित जातियों के लिए अस्पृश्यता निवारण सम्बन्धी कानून – संविधान में भी अस्पृश्यता को अपराध घोषित किया गया है। अस्पृश्यता अपराध अधिनियम, 1955 को और अधिक प्रभावशाली बनाने एवं दण्ड-व्यवस्था कठोर करने के लिए इसमें संशोधन कर 19 नवम्बर, 1976 से इसका नाम नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1955 कर दिया गया है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी प्रकार से अस्पृश्यता के बारे में प्रचार करना या ऐतिहासिक व धार्मिक आधार पर अस्पृश्यता को व्यवहार में लाना अपराध माना जाएगा। इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर जेल और दण्ड दोनों का प्रावधान है।
5. शैक्षिक कार्यक्रम – अनुसूचित जाति/जनजातियों के छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा पुस्तकीय सहायता दी जाती है। इन जातियों के छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावासों की व्यवस्था के अतिरिक्त इनके लिए नि:शुल्क प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है। मेडिकल कॉलेजों, इन्जीनियरिंग कॉलेजों व अन्य प्राविधिक शिक्षण-संस्थानों में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के छात्रों के लिए स्थान सुरक्षित हैं।
6. आर्थिक उत्थान योजना – अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के आर्थिक उत्थान और कुटीर उद्योगों व कृषि आदि के लिए सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। अनुसूचित जनजाति के बहुलता वाले क्षेत्रों में विशेष विकास खण्ड खोले जा रहे हैं, जहाँ सामान्य से दोगुनी धनराशि विकास कार्यों के लिए व्यय की जाती है। मेडिकल, इन्जीनियरिंग तथा कानून के स्नातकों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु निजी व्यवसाय करने के लिए राज्य द्वारा आर्थिक अनुदान प्रदान किया जाता है। भारत सरकार ने कुछ ऐसे आर्थिक कार्यक्रम प्रारम्भ भी किये हैं जिनका उद्देश्य अनुसूचित जातियों के लिए विशेष ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना है।
7. स्वास्थ्य, आवास एवं रहन – सहन के उत्थान की योजनाएँ – अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की दीन दशा के कारण सरकार द्वारा इन्हें भूमि और अंनुदान प्रदान किया जाता है। भूमिहीन श्रमिकों को नि:शुल्क कानूनी सहायता भी दी जाती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1993 में निर्णय लिया था कि अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में 47 और अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में 5 राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय स्थापित किये जाएँगे। अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों की जमीन जिलाधिकारी के पूर्वानुमोदन के बिना गैरअनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को हस्तान्तरित करने सम्बन्धी नियम का कड़ाई के साथ पालन कराया जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्बल वर्ग आवास-निर्माण तथा इन्दिरा आवास निर्माण और मलिन बस्ती सुधार कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। यही नहीं, भूमिहीनों को सीलिंग भूमि का आवंटन किया जा रहा है। एकीकृत ग्राम्य विकास कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना, लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, समस्याग्रस्त ग्रामों में पेयजल व्यवस्था, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना के माध्यम से अनुसूचित जाति-जनजाति के स्वास्थ्य, रहन-सहन एवं आवास आदि के उत्थान के लिए सरकार द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं।
8. अन्य उपाय – अनुसूचित जाति में सामाजिक चेतना जाग्रत करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं। विभिन्न उत्सवों पर सामूहिक भोज, सांस्कृतिक कार्यक्रमों व प्रचार के अन्य माध्यमों द्वारा समानता का सन्देश पहुँचाया जा रहा है। राष्ट्रीय पर्वो को सामूहिक रूप से मनाने, सार्वजनिक खान-पान तथा अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देकर अनुसूचित जातियों की समस्याओं का निराकरण किया जा रहा है।