जनजातीय नर – नारी भारतीय समाज के अभिन्न अंग हैं। भारत की जनजातियों की समस्याएँ बहुत ही जटिल और विस्तृत हैं, क्योंकि आधुनिक विज्ञान और प्रगति से दूर रहने के कारण ये भारतीय समाज के पिछड़े हुए वर्ग हैं। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में जनजातियों को उल्लेख है। उन्हें अनुसूचित जनजातियाँ कहा गया है। भारतीय जनजातियों की समस्याएँ निम्नवत् हैं
(अ) सांस्कृतिक समस्याएँ – भारतीय जनजातियाँ बाहरी संस्कृतियों के सम्पर्क में आती जा रही हैं, जिसके कारण जनजातियों के जीवन में अनेक गम्भीर सांस्कृतिक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं और उनकी सभ्यता के सामने एक गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गयी है। मुख्य सांस्कृतिक समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. भाषा सम्बन्धी समस्या – भारतीय जनजातियाँ बाहरी संस्कृतियों के सम्पर्क में आ रही हैं, जिसके कारण दो भाषावाद’ की समस्या उत्पन्न हो गयी है। अब जनजाति के लोग अपनी भाषा बोलने के साथ-साथ सम्पर्क भाषा भी बोलने लगे हैं। कुछ लोग तो अपनी भाषा के प्रति इतने उदासीन हो गये हैं कि वे अपनी भाषा को भूलते जा रहे हैं। इससे विभिन्न जनजातियों के लोगों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान में बाधा उपस्थित हो रही है। इस बाधा के उत्पन्न होने से जनजातियों में सामुदायिक भावना में कमी आती जा रही है तथा सांस्कृतिक मूल्यों और आदतों का पतन होता जा रहा है।
2. जनजाति के लोगों में सांस्कृतिक विभेद, तनाव और दूरी की समस्या – जनजाति के कुछ लोग ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गये हैं तथा कुछ लोगों ने हिन्दुओं की जाति-प्रथा को अपना लिया है, परन्तु ऐसा सभी लोगों ने नहीं किया है, जिसके कारण जनजाति के लोगों में आपसी सांस्कृतिक विभेद, तनाव और सामाजिक दूरी या विरोध उत्पन्न हुआ है। अन्य संस्कृति को अपनाने वाले व्यक्ति अपने जातीय समूह और संस्कृति से दूर होते गये, साथ-ही-साथ वे उस संस्कृति को भी पूरी तरह नहीं अपना पाये जिस संस्कृति को उन्होंने ग्रहण किया था।
3. युवा-गृहों का नष्ट होना-जनजातियों की अपनी संस्थाएँ व युवा – गृह, जो कि जनजातीय सामाजिक जीवन के प्राण थे, धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं; क्योंकि जनजातीय लोग ईसाई तथा हिन्दू लोगों के सम्पर्क में आते जा रहे हैं, जिससे युवा-गृह’ नष्ट होते जा रहे हैं।
4. जनजातीय ललित कलाओं का ह्रास – ओज जैसे-जैसे जनजातियों के लोग बाहरी संस्कृतियों के प्रभाव में आते जा रहे हैं, उससे जनजातीय ललित कलाओं का ह्रास होता जा रहा है। नृत्य, संगीत, ललित कलाएँ, कलाएँ. वे लकड़ी पर नक्काशी आदि का काम दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। जनजातियों के लोग अब इन ललित कलाओं के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं।
(ब) धार्मिक समस्याएँ – जनजातियों के लोगों पर ईसाई धर्म व हिन्दू धर्म का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। राजस्थान के भील लोगों ने हिन्दू धर्म के प्रभाव के कारण एक आन्दोलन चलायो, जिसका नाम था ‘भगत आन्दोलन’ और इस आन्दोलन ने भीलों को भगृत तथा अभगत दो वर्गों में विभाजित कर दिया। इसी प्रकार बिहार और असम की जनजातियाँ ईसाई धर्म से प्रभावित हुईं, जिसके परिणामस्वरूप एक ही समूह में नहीं, वरन् एक ही परिवार में धार्मिक भेद-भाव दिखाई पड़ने लगा। आज जनजातीय लोगों में धार्मिक समस्या ने विकट रूप धारण कर लिया है, क्योंकि नये धार्मिक दृष्टिकोण के कारण सामुदायिक एकता और संगठन टूटने लगे हैं और परिवारिक तनाव, भेद-भाव व लड़ाई-झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। इसी के साथ-साथ जनजाति के लोग अपनी अनेक आर्थिक व सामाजिक समस्याओं का समाधान अपने धर्म के द्वारा कर लेते थे, परन्तु नये धर्मों के नये विश्वास और नये संस्कारों ने उन पुरानी मान्यताओं को भी समाप्त कर दिया है, जिसके कारण जनजातियों में असन्तोष की भावना व्याप्त होती जा रही है।
(स) सामाजिक समस्याएँ – जनजातियाँ सभ्य समाज के सम्पर्क में आती जा रही हैं, जिनके कारण उनके सम्मुख अनेक सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, जो निम्नलिखिते हैं
1. कन्या-मूल्य – हिन्दुओं के प्रभाव में आने के कारण जनजातियों में कन्या-मूल्य रुपये के रूप में माँगा जाने लगा है। दिन-प्रतिदिन यह मूल्य अधिक तीव्रता के साथ बढ़ता जा रहा है, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि सामान्य स्थिति के पुरुषों के लिए विवाह करना कठिन हो गया है। इस कारण जनजातीय समाज में ‘कन्या-हरण’ की समस्या बढ़ती जा रही है।
2. बाल-विवाह – जनजातीय समाज में बाल-विवाह की समस्या भी उग्र रूप धारण करती जा रही है। जिस समय से जनजाति के लोग हिन्दुओं के सम्पर्क में आये हैं, तभी से बाल-विवाह की प्रथा भी बढ़ी है।
3. वैवाहिक नैतिकता का पतन – जैसे- जैसे जनजातियों के लोग सभ्य समाज के सम्पर्क में
आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे विवाह-पूर्व और विवाह के पश्चात् बाहर यौन सम्बन्ध बढ़ते जा रहे हैं, जिससे विवाह-विच्छेद की संख्या भी बढ़ रही है।
4. वेश्यावृत्ति, गुप्त रोग आदि – जनजातीय समाज में वेश्यावृत्ति, गुप्त रोग आदि से सम्बन्धित सामाजिक समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। जनजातीय लोगों की निर्धनता से लाभ उठाकर विदेशी व्यापारी, ठेकेदार, एजेण्ट आदि रुपयों का लोभ दिखाकर उनकी स्त्रियों के साथ अनुचित यौन-सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। इन्हीं औद्योगिक केन्द्रों में काम करने वाले जनजातीय श्रमिक वेश्यागमन आदि में फंस जाते हैं और गुप्त रोगों के शिकार हो जाते हैं।
(द) आर्थिक समस्याएँ – आज भारत की जनजातियों में सबसे गम्भीर आर्थिक समस्या है, क्योंकि उनके पास पेटभर भोजन, तन ढकने के लिए वस्त्र और रहने के लिए अपना मकान नहीं है। कुछ प्रमुख आर्थिक समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. स्थानान्तरित खेती सम्बन्धी समस्या – जनजातीय व्यक्ति प्राचीन ढंग की खेती करते हैं, ‘ जिसे स्थानान्तरित खेती कहते हैं। इस प्रकार की खेती से किसी प्रकार की लाभप्रद आय उन्हें प्राप्त नहीं होती है। इस प्रकार की खेती से केवल भूमि का दुरुपयोग ही होता है। अत: खेती में अच्छी पैदावार नहीं होती है, जिससे वे खेती करना छोड़ देते हैं और भूखे मरने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. भूमि-व्यवस्था सम्बन्धी समस्या – पहले जनजातियों का भूमि पर एकाधिकार था, वे मनमाने ढंग से उसका उपयोग करते थे। अब भूमि सम्बन्धी नये कानून आ गये हैं, अब वे मनमाने ढंग से जंगल काटकर स्थानान्तरित खेती नहीं कर सकते।
3. वनों से सम्बन्धित समस्याएँ – पहले जनजातियों को वनों से पूर्ण एकाधिकार प्राप्त था। वे जंगल की वस्तुओं, पशु, वृक्ष आदि का उपयोग स्वेच्छापूर्वक करते थे, परन्तु अब ये सब वस्तुएँ सरकारी नियन्त्रण में हैं।
4. अर्थव्यवस्था सम्बन्धी समस्याएँ – जनजाति के लोग अब मुद्रा-रहित अर्थव्यवस्था से मुद्रा-युक्त अर्थव्यवस्था में आ रहे हैं; अत: उनके सम्मुख नयी-नयी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
5. ऋणग्रस्तता की समस्या – सेठ, साहूकार, महाजन उनकी अशिक्षा, अज्ञानता तथा निर्धनता का लाभ उठाकर उन्हें ऊँची ब्याज दर पर ऋण देते हैं, जिससे वे सदैव ऋणी ही बने रहते हैं।
6. औद्योगिक श्रमिक समस्याएँ – चाय बागानों, खानों और कारखानों में काम करने वाले जनजातीय श्रमिकों की दशा अत्यन्त दयनीय है। उन्हें उनके कार्य के बदले में उचित मजदूरी नहीं मिलती है, उनके पास रहने के लिए मकान नहीं हैं, काम करने की स्थिति एवं वातावरण भी ठीक नहीं है। जनजाति के श्रमिकों को अपने अधिकारों के विषय में भी ज्ञान नहीं है, वे पशुओं की भाँति कार्य करते हैं और उनके साथ पशुओं जैसा ही व्यवहार होता है।
(य) स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ – जनजाति के लोगों के सम्मुख स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक. समस्याएँ हैं, जो निम्नवत् हैं
1. खान-पान – निर्धनता के कारण जनजाति के लोगों को सन्तुलित व पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है। वे शराब आदि मादक पदार्थों का सेवन करते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता है।
2. वस्त्र – जनजाति के लोग अब नंगे (वस्त्रहीन) न रहकर वस्त्र धारण करने लगे हैं, परन्तु निर्धनता के कारण उनके पास पर्याप्त वस्त्र उपलब्ध नहीं होते हैं। वस्त्रों के अभाव में वे लगातार एक ही वस्त्र को धारण किये रहते हैं, जिससे अनेक प्रकार के चर्म रोग आदि हो जाते हैं तथा वे बीमार भी हो जाते हैं।
3. रोग व चिकित्सा का अभाव – अनुसूचित जनजाति के लोग हैजा, चेचक, तपेदिक आदि अनेक प्रकार के भयंकर रोगों से ग्रस्त रहते हैं। इसके अतिरिक्त चाय बागानों व खानों में काम करने वाले स्त्री-पुरुष श्रमिकों में व्यभिचार बढ़ता जा रहा है। वे अनेक प्रकार के गुप्त रोगों से ग्रस्त होते जा रहे हैं। निर्धनता व चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में जनजाति के लोगों के सम्मुख स्वास्थ्य सम्बन्धी गम्भीर समस्याएँ हैं।
4. शिक्षा सम्बन्धी समस्याएँ – जनजातियाँ आज भी अशिक्षा तथा अज्ञानता के वातावरण में रह रही हैं। कुछ लोग ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अशिक्षा समस्त समस्याओं का आधार है। अशिक्षा के कारण ही जनजातीय समाज में आज भी अनेक प्रकार के अन्धविश्वास पनप रहे हैं। (निवारण के सुझाव-इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 का उत्तर देखें।