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क्या एक जनसंचार के माध्यम के रूप में रेडियो खत्म हो रहा है? उदारीकरण के बाद भी भारत में एफ०एम० स्टेशनों के सामर्थ्य के चर्चा करें।

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⦁    टी०वी०, इंटरनेट तथा अन्य दृश्य-श्रव्य मनोरंजक माध्यमों के आने के बाद लोगों ने यह मानना शुरू कर दिया था कि रेडियो अब जनसंपर्क के साधन से अलग हो जाएगा। लेकिन यह अवधारणा गलत निकली।

⦁    वर्ष 2000 में आकाशवाणी के कार्यक्रम भारत के सभी दो-तिहाई घर-परिवारों में 24 भाषाओं और 146 बोलियों में 12 करोड़ से भी अधिक रेडियो सेटों पर सुने जा सकते थे। 2002 में गैर सरकारी स्वामित्व वाले एफ०एम० रेडियो स्टेशनों की स्थापना से रेडियो पर मनोरंजक कार्यक्रमों में बढ़ोतरी हुई।

⦁    श्रोताओं को आकर्षित करने के लिए ये निजी तौर पर चलाए जा रहे रेडियो स्टेशन अपने श्रोताओं का मनोरंजन करते थे।

⦁    चूंकि गैर सरकारी तौर पर चलाए जाने वाले एफ०एम० चैनलों को राजनीतिक समाचार बुलेटिन प्रसारित करने की अनुमति नहीं है, इसलिए इनमें बहुत से चैनल अपने श्रोताओं को लुभाए रखने के लिए किसी विशेष प्रकार के लोकप्रिय संगीत में अपनी विशेषता रखते हैं। एक एफ.एम. चैनल का दावा है कि वह दिन भर हिट गानों को ही प्रसारित करता है।

⦁    अधिकांश एफ०एम० चैनल जो कि युवा शहरी व्यावसायिकों तथा छात्रों में लोकप्रिय है, अक्सर मीडिया समूहों के होते हैं। जैसे रेडियो मिर्ची टाइम्स ऑफ इण्डिया समूह का है, ‘रेड एफ०एम०’ लिविंग मीडिया का तथा रेडियो सिटी-स्टार नेटवर्क के स्वामित्व में है। लेकिन नेशनल पब्लिक रेडियो (यू०एस०ए०) अथवा बी०बी०सी (यू०के०) जैसे स्वतंत्र रेडियो स्टेशन जो सार्वजनिक प्रसारण में संलग्न हैं, हमारे प्रसारण परिदृश्य से बाहर हैं।

⦁    रंग दे बसंती’ तथा ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ जैसी फिल्मों में रेडियों का प्रयोग किया गया है।

⦁    एफ०एम० चैनलों के प्रयोग की संभावनाएँ अत्यधिक हैं। रेडियो स्टेशनों के और अधिक निजीकरण तथा समुदाय के स्वामित्व वाले रेडियो स्टेशनों के उद्भव के परिणामस्वरूप रेडियो स्टेशनों का और अधिक विकास होगा। स्थानीय समाचारों को सुनने की माँग बढ़ रही है। भारत में एफ०एम० चैनलों को सुनने वाले घरों की संख्या ने स्थानीय रेडियो द्वारा नेटवर्को के स्थान को लेने की विश्वव्यापी प्रवृत्ति को बल दिया है।

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