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पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप से भिन्न थी?

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पहाड़िया लोग राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहते थे। संथालों को ब्रिटिश अधिकारियों ने जमीनें देकर राजमहल को तलहटी में बसने के लिए तैयार किया था। उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश अधिकारियों की नीति कृषि भूमि का विस्तार करके कंपनी । के राजस्व में वृद्धि करने की थी। इसके लिए उन्होंने राजमहल की पहाड़ियों में रहने वाले पहाड़िया लोगों को एक स्थान पर रहकर स्थायी खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया था। किंतु पहाड़िया लोग जंगलों को काटकर स्थायी कृषि करने के लिए। तैयार नहीं हुए। अतः ब्रिटिश अधिकारियों ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संथालों को वहाँ बसा दिया। पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से कई रूपों में भिन्न थी

1. पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे और जंगल के उत्पादों से अपना जीविकोपार्जन करते थे। जंगल के छोटे से भाग में झाड़ियों को काटकर तथा घास-फूस को जलाकर वे ज़मीन साफ़ कर लेते थे। राख की पोटाश से ज़मीन पर्याप्त उपजाऊ बन जाती थी। पहाड़िया लोग उस ज़मीन पर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और ज्वार-बाजरा उगाते थे। इस प्रकार वे अपनी आजीविका के लिए जंगलों और चरागाहों पर निर्भर थे। किंतु संथाल स्थायी खेती करते थे। उन्होंने अपने परिश्रम से अपने कृषि क्षेत्र की सीमाओं में पर्याप्त वृद्धि करके इसे एक उपजाऊ क्षेत्र के रूप में बदल दिया था।

2. पहाड़िया लोगों की खेती मुख्य रूप से कुदाल पर आश्रित थी। वे कुदाल से जमीन को थोड़ा खुरच लेते थे और कुछ वर्षों तक उस साफ़ की गई ज़मीन में खेती करते रहते थे। तत्पश्चात् वे उसे कुछ वर्षों के लिए परती छोड़ देते थे और नए क्षेत्र में जमीन तैयार करके खेती करते थे। कुछ समय के बाद परती छोड़ी गई जमीन अपनी खोई हुई उर्वरता को प्राप्त करके पुनः खेती योग्य बन जाती थी। संथाल हल से खेती करते थे। वे नई ज़मीन साफ करने में अत्यधिक कुशल थे। अपने परिश्रम से उन्होंने चट्टानी भूमि को भी अत्यधिक उपजाऊ बना दिया था।

3. कृषि के अतिरिक्त जंगल के उत्पाद भी पहाड़िया लोगों की आजीविका के साधन थे। जंगल के फल-फूल उनके भोजन के महत्त्वपूर्ण अंग थे। वे खाने के लिए महुआ के फूल एकत्र करते थे। वे काठ कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करते थे। रेशम के कोया (रेशम के कीड़ों का घर या घोंसला) एवं राल इकट्ठी करके बेचते थे। पेड़ों के नीचे उगने वाले छोटे-छोटे पौधे अथवा परती जमीन पर उगने वाली घास-फूस उनके पशुओं के चारे के काम आती थी। इस प्रकार शिकार करना, झूम खेती करना, खाद्य संग्रह, काठ कोयला बनाना, रेशम के कीड़े पालना आदि पहाड़िया लोगों के मुख्य व्यवसाय थे। खानाबदोश जीवन को छोड़कर एक स्थान पर बस जाने के कारण संथाल स्थायी खेती करने लगे थे, वे बढ़िया तम्बाकू और सरसों जैसी वाणिज्यिक फसलों को उगाने लगे थे। परिणामस्वरूप, उनकी आर्थिक स्थिति उन्नत होने लगी और वे व्यापारियों एवं साहूकारों के साथ लेन-देन भी करने लगे।

4. अपने व्यवसायों के कारण उनका जीवन जंगल से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। वे सीधा-सादा जीवन व्यतीत करते थे और प्रकृति की गोद में निवास करते थे। वे इमली के पेड़ों के झुरमुटों में अपनी झोंपड़ियाँ बनाते थे और आम के पेड़ों की ठंडी छाँव में आराम करते थे। संपूर्ण क्षेत्र की भूमि को वे अपनी निजी भूमि समझते थे। यह भूमि ही उनकी पहचान तथा जीवन का प्रमुख आधार थी। पहाड़िया लोग समूहों में संगठित थे। प्रत्येक समूह का एक मुखिया होता था। उसका प्रमुख कार्य अपने समूह में एकता बनाए रखना था। मुखिया अपने-अपने समूह के पारस्परिक झगड़ों का निपटारा करके उनमें शांति बनाए रखते थे। वे अन्य जनजातियों अथवा मैदानी लोगों के साथ संघर्ष की स्थिति में अपनी जनजाति का नेतृत्व भी करते थे। संथाल एक क्षेत्र विशेष में रहते थे। 1832 ई० तक एक विशाल भू-क्षेत्र का सीमांकन दामिन-ए-कोह अथवा संथाल परगना के रूप में कर दिया गया था। इस क्षेत्र को संथाल भूमि घोषित कर दिया गया और इसके चारों तरफ खंभे लगाकर इसकी परिसीमा का निर्धारण कर दिया गया।

5. पहाड़िया लोग उन मैदानी भागों पर बार-बार आक्रमण करते रहते थे, जहाँ किसानों द्वारा एक स्थान पर बसकर स्थायी खेती की जाती थी। इस प्रकार के आक्रमण प्रायः अभाव अथवा अकाल के वर्षों में खाद्य-सामग्री को लूटने, शक्ति का प्रदर्शन करने अथवा बाहरी लोगों के साथ राजनैतिक संबंध स्थापित करने के लिए किए जाते थे। इस प्रकार मैदानों में रहने वाले लोग प्रायः पहाड़िया लोगों के आक्रमणों से भयभीत रहते थे। मैदानों में रहने वाले जमींदार पहाड़िया लोगों के आक्रमणों से बचाव के लिए पहाड़िया मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज का भुगतान करते थे। व्यापारियों को भी पहाड़िया लोगों द्वारा नियंत्रित मार्गों का प्रयोग करने के लिए पथकर का भुगतान करना पड़ता था। किंतु संथाल लोगों के जमींदारों और व्यापारियों के साथ संबंध प्रायः मैत्रीपूर्ण होते थे। वे व्यापारियों एवं साहूकारों के साथ लेन-देन भी करते थे।

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