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अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?

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जब 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ गया तो ब्रिटेन के कपास क्षेत्र में तहलका मच गया। अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में काफी गिरावट आई। 1860 के दशक से पहले, ब्रिटेन में कच्चे माल के तौर पर आयात की जाने वाली समस्त कपास का तीन-चौथाई भाग अमेरिका से आता था। ऐसे में ब्रिटेन के सूती वस्त्रों के निर्माता काफी लंबे समय से अमेरिकी कपास पर अपनी निर्भरता के कारण बहुत परेशान थे, क्योंकि इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हो चुकी थी और अमेरिका जैसी बढ़िया कपास न तो भारत में और न ही मिस्र में पैदा होती थी।

अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को निम्न तरीके से प्रभावित किया

1. ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता अमेरीकी कपास पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए काफी समय से कपास आपूर्ति के वैकल्पिक स्त्रोत की खोज कर रहे थे। भारत की भूमि और जलवायु दोनों ही कपास की खेती हेतु उपयुक्त थी। यहाँ श्रम भी सस्ता था।

2. 1861 ई० में अमेरीकी गृहयुद्ध आरंभ हो जाने की वजह से ब्रिटेन ने भारत को अधिकाधिक कपास निर्यात का संदेश भेजा।
फलतः बंबई में, कपास के सौदागरों ने कपास की आपूर्ति का आकलन करने और कपास की खेती को अधिकाधिक प्रोत्साहन देने के लिए कपास पैदा करने वाले जिलों का दौरा किया। जब कपास की कीमतों में उछाल आया तो बंबई के कपास निर्यातकों ने ब्रिटेन की माँग को पूरा करने के लिए शहरी साहूकारों को अधिक-से-अधिक अग्रिम (Advance) राशियाँ दी ताकि वे भी आगे उन ग्रामीण ऋणदाताओं को जिन्होंने उपज उपलब्ध कराने का वचन दिया था, अधिक-से-अधिक मात्रा में राशि उधार दे सकें। जब बाजार में तेजी आती है तो ऋण आसानी से मिल जाता है, क्योंकि ऋणदाता अपनी उधार
दी गई राशियों की वसूली के बारे में अधिक आश्वस्त रहता है।

3. उपर्युक्त बातों का दक्कन के देहाती इलाकों में काफी असर हुआ। दक्कन के गाँवों के रैयतों को अचानक असीमित ऋण उपलब्ध होने लगा। उन्हें प्रति एकड़ 100 रु. अग्रिम राशि दी जाने लगी। साहूकार भी लंबे समय तक ऋण देने के लिए एकदम तैयार हो गए।

4. जब तक अमेरिका में संकट की स्थिति बनी रही तब तक बंबई दक्कन में कपास का उत्पादन बढ़ता गया। 1860 से 1864 के दौरान कपास उगाने वाले एकड़ों की संख्या दोगुनी हो गई। 1862 तक स्थिति यह आई कि ब्रिटेन में जितना भी कपास का आयात होता था, उसका 90 प्रतिशत भाग अकेले भारत से जाता था।

5. इस तेजी में भी सभी कपास उत्पादकों को समृद्धि प्राप्त नहीं हो सकी। कुछ धनी किसानों को तो लाभ अवश्य हुआ, लेकिन अधिकांश किसान कर्ज के बोझ से और अधिक दब गए।

6. जिन दिनों कपास के व्यापार में तेजी रही, भारत के कपास व्यापारी, अमेरिका को स्थायी रूप से विस्थापित करके, कच्ची कपास के विश्व बाजार को अपने कब्जे में करने के सपने देखने लगे। 1861 में बांबे गजट के संपादक ने लिखा, “दास राज्यों (संयुक्त राज्य अमेरिका) को विस्थापित करके, लंकाशायर को कपास का एकमात्र आपूर्तिकर्ता बनने से भारत को कौन रोक सकता है?”

7. लेकिन 1865 तक ऐसे सपने आने बंद हो गए। जब अमेरिका में गृहयुद्ध समाप्त हो गया तो वहाँ कपास का उत्पादन फिर | से चालू हो गया और ब्रिटेन में भारतीय कपास के निर्यात में गिरावट आती चली गई। 8. महाराष्ट्र में निर्यात व्यापारी और साहूकार अब दीर्घावधिक ऋण देने के लिए उत्सुक नहीं रहे। उन्होंने यह देख लिया था कि भारतीय कपास की माँग घटती जा रही है और कपास की कीमतों में गिरावट आ रही है। इसलिए उन्होंने अपना कार्य-व्यवहार बंद करने, किसानों को अग्रिम राशियाँ प्रतिबंधित करने और बकाया ऋणों को वापिस माँगने का निर्णय लिया। इन परिस्थितियों में किसानों की दशा अत्यधिक दयनीय हो गई।

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