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किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं?

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यह सत्य है कि इतिहास के पुनर्निर्माण में सरकारी स्रोतों; जैसे-राजस्व अभिलेखों, सरकार द्वारा नियुक्त सर्वेक्षणकर्ताओं की रिपोर्टों और पत्रिकाओं आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। किंतु किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों का उपयोग करते समय लेखक को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है

⦁    सरकारी स्रोत वास्तविक स्थिति को निष्पक्ष वर्णन नहीं करते। अतः उनके द्वारा प्रस्तुत विवरणों को पूरी तरह सत्य नहीं माना जा सकता।

⦁    सरकारी स्रोत विभिन्न घटनाओं के संबंध में किसी-न-किसी रूप में सरकारी दृष्टिकोण एवं अभिप्रायों के पक्षधर होते हैं। वे विभिन्न घटनाओं का विवरण सरकारी दृष्टिकोण से ही प्रस्तुत करते हैं

⦁    सरकारी स्रोतों की सहानुभूति प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के प्रति ही होती है।
वे किसी-न-किसी रूप में पीड़ितों के स्थान पर सरकार के ही हितों के समर्थक होते हैं। उदाहरण के लिए, दक्कन दंगा आयोग की नियुक्ति विशेष रूप से यह पता लगाने के लिए की गई थी कि सरकारी राजस्व की माँग का विद्रोह के प्रारंभ में क्या योगदान था अथवा क्या किसान राजस्व की ऊँची दर के कारण विद्रोह के लिए उतारू हो गए थे। आयोग ने संपूर्ण जाँच-पड़ताल करने के बाद जो रिपोर्ट प्रस्तुत की उसमें विद्रोह का प्रमुख कारण ऋणदाताओं अथवा साहूकारों को बताया गया। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि सरकारी माँग किसानों की उत्तेजना अथवा क्रोध का कारण बिलकुल नहीं थी

किन्तु आयोग इस प्रकार की टिप्पणी करते हुए यह भूल गया कि आखिर किसान साहूकारों की शरण में जाते क्यों थे। वास्तव में, सरकार द्वारा निर्धारित भू-राजस्व की दर इतनी अधिक थी और वसूली के तरीके इतने कठोर थे कि किसान को विवशतापूर्वक साहूकार की शरण में जाना ही पड़ता था। इसका स्पष्ट अभिप्राय यह था कि औपनिवेशिक सरकार जनता में व्याप्त असंतोष अथवा रोष के लिए स्वयं को उत्तरदायी मानने के लिए तैयार नहीं थी। अत: किसान इतिहास लेखन में सरकारी स्रोतों का उपयोग करते हुए कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए

⦁    सरकारी रिपोर्टों का अध्ययन अत्यधिक सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।

⦁    सरकारी रिपोर्टों से उपलब्ध साक्ष्य का मिलान समाचार-पत्रों, गैर-सरकारी विवरणों, वैधिक अभिलेखों आदि में उपलब्ध साक्ष्यों से करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए।

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