भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने में फ्रांसीसियों की अपेक्षा अंग्रेज निम्नलिखित कारणों से सफल रहे
(i) अंग्रेजी कम्पनी का स्वरूप- ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक प्राइवेट कम्पनी थी, जिसमें ब्रिटिश सरकार किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करती थी। प्राइवेट होने के कारण इस कम्पनी के सदस्य अत्यधिक परिश्रमी थे, जबकि फ्रांसीसी कम्पनी एक सरकारी कम्पनी थी। अत: प्रत्येक निर्णय के लिए फ्रांसीसी कम्पनी फ्रांसीसी सरकार पर निर्भर रहती थी।
(ii) अंग्रेजी कम्पनी का व्यापारिक तथा आर्थिक दृष्टि से श्रेष्ठ होना- अंग्रेजी कम्पनी व्यापारिक एवं आर्थिक दोनों ही दृष्टि से श्रेष्ठ थी। अंग्रेजों के पास व्यापार हेतु पूर्वी समुद्र-तट और बंगाल का समुद्र प्रान्त था, जहाँ से उन्हें अत्यधिक व्यापारिक लाभ होता था, जिससे उन्हें आर्थिक संकट का बिलकुल भी भय नहीं रहता था। जबकि फ्रांसीसियों के पास ऐसा कोई व्यापारिक स्थान न था, जहाँ से समुचित मात्रा में व्यापारिक लाभ की प्राप्ति होती हो।
(iii) अंग्रेजों की शक्तिशाली नौसेना- अंग्रेजों की नौसेना फ्रांसीसी नौसेना की तुलना में अधिक शक्तिशाली थी। परिणामस्वरूप वे सदैव अपने व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित रखने में सफल रहे, जबकि फ्रांसीसी नौसेना कमजोर होने के कारण सैनिक और व्यापारियों को किसी प्रकार की सहायता प्रदान न कर सकी।
(iv) मुम्बई पत्तन की सुविधा- अंग्रेजों की समुद्री-शक्ति का स्थान मुम्बई था, जिसके कारण वे अपने जहाज मुम्बई में सुरक्षित
रख सकते थे। इसके विपरीत फ्रांसीसियों की समुद्री-शक्ति का अड्डा फ्रांस के द्वीप में था, जो बहुत दूर स्थित था। अत: वे | शीघ्र कोई कार्यवाही नहीं कर सकते थे।
(v) डूप्ले की वापसी- डूप्ले फ्रांस का एक योग्यतम गवर्नर था। उसने भारत में फ्रांसीसी प्रभाव में वृद्धि की थी, किन्तु उसे फ्रांसीसी सरकार ने थोड़ी-सी असफलता प्राप्त होने पर ही वापस बुला लिया, जिससे अंग्रेजों के उत्साह में और अधिक वृद्धि हो गई।
(vi) ब्रिटिश अधिकारियों की योग्यता- ब्रिटिश कम्पनी को योग्य अधिकारियों की सेवाएँ प्राप्त हुई। क्लाइव, लारेंस, आयरकूट आदि योग्य ब्रिटिश अधिकारी थे। उन्होंने अपनी योग्यता के बल पर ब्रिटिश कम्पनी को उन्नत बनाया, जबकि फ्रांसीसी अधिकारी इतने योग्य नहीं थे। वे आपस में लड़ते-झगड़ते थे। अत: वे फ्रांसीसी कम्पनी की उन्नति में अपना योगदान न दे सके।
(vii) फ्रांसीसियों द्वारा व्यापार की अपेक्षा राज्य–विस्तार पर बल देना- फ्रांसीसियों की एक बड़ी भूल यह थी कि उन्होंने व्यापार की अपेक्षा राज्य–विस्तार की महत्वाकांक्षा पर अधिक बल दिया। उनका सारा धन युद्धों में व्यर्थ चला गया। फ्रांसीसी सरकार यूरोप तथा अमेरिका में व्यस्त रहने के कारण डूप्ले की महत्वाकांक्षी योजनाओं का पूर्ण समर्थन करने की स्थिति में नहीं थी। दूसरी ओर अंग्रेज अपने व्यापार की कभी उपेक्षा नहीं करते थे।
(viii) यूरोप में अंग्रेजों की विजय- भारत में फ्रांसीसियों और अंग्रेजों के बीच होने वाला संघर्ष यूरोप में होने वाला फ्रांस और इंग्लैण्ड के बीच संघर्ष का एक भाग था। यूरोप में अंग्रेजों की विजय हुई और फ्रांसीसी पराजित हुए। इसका प्रभाव भारत में भी पड़ा। भारत में अंग्रेज जीतते गए और फ्रांसीसी पराजित होते गए।
(ix) विलियम पिट की नीति- 1758 ई० में इंग्लैण्ड में विलियम पिट ने युद्धमन्त्री का कार्यभार सम्भालते ही क्रान्तिकारी परिर्वतन कर कुछ इस प्रकार की नीति अपनाई कि फ्रांस यूरोपीय मामलों में बुरी तरह फँस गया और हार गया।
(x) लैली का उत्तरदायित्व- लैली अत्यन्त ही कटुभाषी व क्रोधी व्यक्ति था। अत: कोई भी फ्रांसीसी अधिकारी उसके साथ काम करने से हिचकिचाता था। वास्तव में वह भारत में फ्रांसीसियों के पतन के लिए अधिक उत्तरदायी था।