शीतयुद्ध के दौरान पूँजीवादी तथा साम्यवादी दोनों ही गुटों के बीच प्रतिस्पर्धा एवं प्रतिद्वन्द्विता समाप्त नहीं हुई थी। इसी वजह से परस्पर अविश्वास की परिस्थितियों में दोनों गठबन्धनों ने हथियारों का भारी भण्डारण करते हुए लगातार युद्ध की तैयारियाँ की। दोनों ही गुट अपने-अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु हथियारों के बड़े जखीरे को आवश्यक समझते थे। चूँकि दोनों ही गुट परमाणु हथियारों से लैस थे तथा वे इसके प्रयोग के दुष्परिणामों से भली-भाँति परिचित भी थे। दोनों महाशक्तियाँ जानती थीं कि यदि प्रत्यक्ष युद्ध लड़ा गया तो दोनों को भारी नुकसान होगा और इनमें से किसी के भी विश्व विजेता बनने की सम्भावनाएँ काफी कम हैं। अत: दोनों महाशक्तियों ने हथियारों पर नियन्त्रण के लिए अस्त्र-शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के प्रयास किए।