सोवियत संघ के विघटन के परिणाम सोवियत संघ की दूसरी दुनिया एवं पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था के पतन के परिणाम विश्व राजनीति की दृष्टि से गम्भीर रहे, जिनका विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है-
1. शीतयुद्ध के दौर की समाप्ति-सोवियत संघ की दूसरी दुनिया एवं पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था के पतन का प्रथम परिणाम शीतयुद्ध के दौर के संघर्ष की समाप्ति के रूप में हुआ। समाजवादी प्रणाली पूँजीवादी प्रणाली को हटा पाएगी या नहीं यह विवाद अब कोई मुद्दा नहीं रहा।
समाजवादी एवं पूँजीवादी व्यवस्था के विचारात्मक शीतशुद्ध के इस विवाद ने दोनों गुटों की सेनाओं को उकसाया था। हथियारों की तीव्र होड़ शुरू की थी, परमाणु हथियारों के संचय को बढ़ावा दिया था और विश्व को सैन्य गुटों में बाँटा था। शीतयुद्ध के समाप्त होने से हथियारों की होड़ भी समाप्त हो गई और नई शान्ति की सम्भावना का जन्म हुआ।
2. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के शक्ति सम्बन्धों में बदलाव-शीतयुद्ध के अन्त के समय केवल दो सम्भावनाएँ थीं—या तो बनी हुई महाशक्ति का दबदबा रहेगा और एक ध्रुवीय विश्व बनेगा या फिर देशों के अलग-अलग समूह अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण मोहरे बनकर उभरेंगे और इस प्रकार बहु-ध्रुवीय विश्व बनेगा-किन्तु हुआ यह कि अमेरिका महाशक्ति बन बैठा और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के शक्ति सम्बन्धों में बदलाव आया। राजनीतिक रूप से उदारवादी लोकतन्त्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने की सर्वश्रेष्ठ धारणा के रूप में उभरकर सामने आया। .
3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के प्रभाव में वृद्धि-सोवियत संघ के विभाजन से सम्पूर्ण विश्व में साम्यवाद का प्रभाव भी कम हो गया था जिसके कारण संयुक्त राज्य अमेरिका की पूँजीवादी विचारधारा को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पैठ बनाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व की सबसे प्रभावशाली अर्थव्यवस्था बन गई। विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएँ विभिन्न देशों की ताकतवर सलाहकार बन गईं क्योंकि इन्हीं देशों को पूँजीवाद की ओर कदम बढ़ाने के लिए इन संस्थाओं ने ऋण दिया था। इन समस्त बातों ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आगे बढ़ाने एवं विश्व में प्रभुत्व स्थापित करने में सहायता पहुँचायी।
4. नए स्वतन्त्र देशों का उदय-चौथा महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि सोवियत खेमे के अन्त के साथ ही नए देशों का उदय हुआ। सोवियत संघ से अलग हुए गणराज्य एक सम्प्रभु और स्वतन्त्र राष्ट्र बन गए।
ये राष्ट्र हैं-
⦁ रूस,
⦁ उक्रेन,
⦁ जॉर्जिया,
⦁ अर्मेनिया,
⦁ बेलारूस,
⦁ एस्टोनिया,
⦁ लिथुआनिया,
⦁ लताविया,
⦁ तुर्कमेनिस्तान,
⦁ उज्बेकिस्तान,
⦁ किरगिस्तान,
⦁ अजरबैजान,
⦁ ताजिकिस्तान,
⦁ माल्दोवा,
⦁ कजाकिस्तान।
इनमें से कुछ देश विशेष रूप से बाल्टिक और पूर्वी यूरोप के देश ‘यूरोपीय संघ’ से जुड़ना और उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन (नाटो) का हिस्सा बनना चाहते थे। मध्य एशिया के देश अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाना चाहते थे। इन देशों ने रूस के साथ अपने मजबूत रिश्ते को जारी रखा और पश्चिमी देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन तथा अन्य देशों के साथ सम्बन्ध बनाए। इस तरह अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर कई नए देश सामने आए।
5. खनिज तेल भण्डारों पर अमेरिकी प्रभाव का बढ़ना-सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका पर अब किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं रहा। संयुक्त राज्य अमेरिका ने धीरे-धीरे प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करना प्रारम्भ कर दिया। उसने मध्य पूर्व में घुर पैठ करना प्रारम्भ कर दिया और वहाँ के तेल भण्डारों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
6. हिंसक अलगाववादी आन्दोलन का प्रारम्भ-सोवियत संघ से अलग हुए कई गणराज्यों में अनेक कारणों से संघर्ष होने लगे। चेचन्या एवं ताजिकिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चला। ताजिकिस्तान लगभग 10 वर्षों तक गृह युद्ध की चपेट में रहा। अजरबैजान, जॉर्जिया, उक्रेन, किरगिस्तान आदि में मौजूदा शासन-व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए आन्दोलन चल रहे हैं।