ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप यह दर्शाता है कि मकानों की स्थिति किस प्रकार एक-दूसरे से सम्बन्धित है। गाँव की आकृति और आकार को प्रभावित करने वाले कारकों में गाँव की स्थिति, समीपवर्ती स्थलाकृति एवं क्षेत्र का भू-भाग प्रमुख स्थान रखते हैं।
1. विन्यास के आधार पर इसके मुख्य प्रकार हैं – मैदानी ग्राम, पठारी ग्राम, तटीय ग्राम, वन ग्राम एवं मरुस्थलीय ग्राम आदि।
2. कार्य के आधार पर इसके मुख्य प्रकार हैं – कृषि ग्राम, मछुआरों के ग्राम, लकड़हारों के ग्राम, पशुपालक ग्राम आदि।
3. बस्तियों के आधार पर – ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप उनकी आकृति, पर्यावरण तथा संस्कृति के द्वारा निर्धारित होते हैं। इन बस्तियों के मुख्य प्रतिरूप कई प्रकार की ज्यामितिक आकृतियाँ होती हैं; जैसे

(i) रैखिक प्रतिरूप — इस प्रकार की बस्तियों में मकान सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, नहरों, घाटी के किनारे या तटबन्धों पर स्थित होते हैं।
(ii) आयताकार प्रतिरूप – ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अन्तरा पर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इसमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
(iii) वृत्ताकार प्रतिरूप – इस प्रतिरूप के गाँव झीलों व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों तरफ बस्ती बस जाने से विकसित होते हैं।
(iv) तारे के आकार का प्रतिरूप – जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उन मार्गों के सहारे मकान बन जाते हैं, वहाँ तारे के आकार की बस्तियाँ विकसित होती हैं।
(v) ‘टी आकार’,’वाई आकार’,’क्रॉस आकार के प्रतिरूप – ‘टी’ के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती हैं, जबकि ‘वाई’ आकार बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पायी जाती हैं जहाँ पर दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं। ‘क्रॉस’ आकार की बस्तियाँ चौराहों पर प्रारम्भ होती हैं जहाँ चौराहे से चारों दिशा में बसाव आरम्भ हो जाता है।
(vi) दोहरा प्रतिरूप – नदी पर पुल या फेरी के दोनों तरफ इन बस्तियों का विस्तार होता है।