भारत में राष्ट्रवाद की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए दुनिया के अन्य राष्ट्रों (को उपनिवेशवाद के चंगुल से आजाद हुए) ने भी देर-सबेर लोकतान्त्रिक ढाँचे को अपनाया। लेकिन भारत की चुनौतियों से सबक सीखते हुए उन्होंने राष्ट्रीय एकता की स्थापना को प्रथम प्राथमिकता दी और इसके बाद धीरे-धीरे लोकतन्त्र की स्थापना करने का निर्णय लिया। हमारे लोकतन्त्र की खूबी यह थी कि हमारे स्वतन्त्रता संग्राम की गहरी प्रतिद्वन्द्विता लोकतन्त्र के साथ थी। हमारे नेता लोकतन्त्र में राजनीति की निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे। वे राजनीति को समस्या के रूप में नहीं देखते थे, वे राजनीति को समस्या के समाधान का उपाय मानते थे। भारतीय नेताओं ने विभिन्न समूहों के हितों के मध्य टकराहट को दूर करने का एकमात्र उपाय लोकतान्त्रिक राजनीति को माना। इसीलिए हमारे नेताओं ने इसी रास्ते को चुना।