कार्यों अथवा उपयोग के आधार पर पत्तन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –
⦁ व्यापारिक पत्तन (commercial port) ये वे पत्तन हैं जो माल के आयात व निर्यात का संचालन करते हैं। यद्यपि वहाँ यात्री-सेवाएँ भी उपलब्ध होती हैं; जैसे- मुम्बई व कोलकाता।
⦁ यात्री पत्तन (passenger port) इन पत्तनों पर मुख्यत: डाक एवं यात्रियों की सेवाएँ उपलब्ध होती हैं।
⦁ आन्त्रपो पत्तन (entre port) ये वे पत्तन हैं जो माल का आयात अपने पृष्ठ प्रदेश में वितरण के लिए नहीं अपितु पुनः निर्यात के लिए करते हैं। ये पत्तन उत्तम पोताश्रय व अग्रान्त सुविधाओं से
सम्पन्न होते हैं। सिंगापुर व हांगकांग इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
⦁ अन्तः स्थलीय पत्तन (inland port) ये पत्तन समुद्र से भीतर की ओर किसी नदी या नहर के किनारे स्थित होते हैं। सुरक्षित एवं अग्रान्त सुविधाओं से सम्पन्न इन पत्तनों का प्रमुख उदाहरण
कोलकाता है।
⦁ बाह्म पत्तन (out port) सागर तट पर अधिक रेत एकत्रित होने पर जलयान वहाँ तक नहीं पहुँच पाते, तब बाहर की ओर एक अन्य छोटा उप-पत्तन स्थापित कर लिया जाता है। हैम्बर्ग, ब्रीमेन व
लन्दन पत्तनों के लिए उप-पत्तनं बनाए गए हैं।
⦁ नौसैनिक पत्तन (naval port) सैनिक उपयोग की दृष्टि से निर्मित पत्तनों पर युद्धपोत, *पनडुब्बियों आदि की सुरक्षा के लिए विशेष सुविधाएँ स्थापित की जाती हैं। उनके पृष्ठ प्रदेश की
उपयोगिता का विचार नहीं किया जाता।
⦁ मत्स्य पत्तन (fishing port) मछली पकड़ने के विशेष उद्देश्य से स्थापित किए गए पत्तनों पर | जलयान, मोटरबोट, नौका, प्रशीतन (refrigeration) आदि की विशिष्ट सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।
कालीकट व कोचीन पत्तन इसी श्रेणी में आते हैं।
⦁ मार्ग पत्तन (port of call) महासागरों में लम्बी यात्राओं के दौरान जलयानों को ईंधन-पानी आदि लेने की आवश्यकता होती है। इस उद्देश्य से विशिष्ट पत्तन स्थापित किए जाते हैं। अदन इसी प्रकार का पत्तन है।।