जनमत (लोकमत) का अर्थ व परिभाषा
साधारण शब्दों में, लोकमत अथवा जनमत का अर्थ सार्वजनिक समस्याओं के सम्बन्ध में जनता के मत से है। आधुनिक प्रजातान्त्रिक युग में लोकमत का विशेष महत्त्व है। डॉ० आशीर्वादम् ने लोकमत के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “जागरूक व सचेत लोकमत स्वस्थ प्रजातन्त्र की प्रथम आवश्यकता है।”
विभिन्न विद्वानों ने जनमत की परिभाषाएँ निम्नवत् दी हैं-
⦁ लॉर्ड ब्राइस का मत है कि “सार्वजनिक हित से सम्बद्ध किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है।”
⦁ डॉ० बेनी प्रसाद के शब्दों में, “केवल उसी राय को वास्तविक जनमत कहा जा सकता है जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण हो। हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक मामलों पर बहुसंख्यक का वह मत जिसे अल्पसंख्यक भी अपने हितों के विरुद्ध नहीं मानते, जनमत कहलाता है।
उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी विषय पर अधिकांश जनता के उस मत को लोकमत अथवा जनमत कहा जाता है जिसमें लोक-कल्याण की भावना निहित हो।
जनमत के निर्माण के साधन
जनमत के निर्माण और उसकी अभिव्यक्ति में अनेक साधन सहायक होते हैं। कुछ मुख्य साधन निम्नलिखित हैं-
⦁ समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ – जनमत के निर्माण में सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण अंग प्रेस है। प्रेस के अन्तर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ तथा अन्य प्रकार का साहित्य आ जाता है। एक विचारक ने इनको आधुनिक सभ्यता का प्रकाश स्तम्भ और प्रजातन्त्र के धर्म-ग्रन्थ कहकर पुकारा है।
⦁ सार्वजनिक भाषण – जनमत के निर्माण में सार्वजनिक मंचों पर नेताओं या व्यक्ति-विशेष द्वारा दिये जाने वाले भाषणों का विशेष महत्त्व होता है। इन भाषणों के द्वारा जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है और वह सार्वजनिक समस्याओं के प्रति जागरूक बनती है।
⦁ शिक्षण संस्थाएँ – स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय जैसी शिक्षण संस्थाएँ भी प्रबुद्ध जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। शिक्षण संस्थाएँ विद्यार्थियों में नागरिक चेतना जाग्रत करती हैं और उनके चरित्र-निर्माण में सहायक होती हैं।
⦁ राजनीतिक दल – राजनीतिक दल जनमत-निर्माण के सशक्त साधन माने जाते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने विचारों तथा कार्यक्रमों को जनता के सामने रखते हैं। इससे जनता को अपना मत बनाने में बड़ी सहायता प्राप्त होती है।
⦁ रेडियो, सिनेमा व दूरदर्शन – प्रचार की दृष्टि से रेडियो तथा टेलीविजन प्रेस से भी सशक्त माध्यम हैं। किसी महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक घटना की जानकारी रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा करोड़ों लोगों तक पहुँच जाती है। इसके माध्यम से संसार के विभिन्न भागों के लोग एक ही समय में किसी लोकप्रिय नेता का भाषण अथवा किसी सार्वजनिक विषय पर वाद-विवाद सुन सकते हैं।
⦁ निर्वाचन – जनमत के निर्माण में निर्वाचन का भी महत्त्व है। निर्वाचन के समय विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने कार्यक्रमों एवं नीतियों के सम्बन्ध में जनता को जानकारी देकर जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं, किन्तु जनता उसी दल के प्रत्याशी को अपना मत देती है जिसके कार्यक्रमों और नीतियों को वह देश-हित में अच्छा समझती है।
⦁ व्यवस्थापिका सभाएँ – व्यवस्थापिका सभाएँ भी जनमत के निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। व्यवस्थापिका सभाओं में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि जाते हैं। व्यवस्थापिका सभाओं में होने वाले वाद-विवाद से सम्पूर्ण जनता को देश की महत्त्वपूर्ण समस्याओं के सभी पक्षों का समुचित ज्ञान प्राप्त होता है, जिसके आधार पर उन्हें अपना मत निर्धारित करने में सहायता मिलती है।
⦁ धार्मिक संस्थाएँ – लोकमत के निर्माण में धार्मिक संस्थाएँ भी अपना योगदान देती हैं। इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के चरित्र, विचारों और उसके कार्यों पर पड़ता है। हमारे देश में आर्य समाज, कैथोलिक चर्च, अकाली दल आदि अनेक संस्थाओं ने भी अपने प्रचार द्वारा लोकमत को प्रभावित किया है।
⦁ साहित्य – साहित्य भी जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। साहित्य के अध्ययन से जनता के विचारों की संकीर्णता दूर होती है और स्वस्थ जनमत के निर्माण में सहायता मिलती है।
⦁ अफवाहें – आधुनिक युग में अफवाहें भी जनमत–निर्माण में योगदान देती हैं। कभी-कभी सच्चाई का पता लगाने हेतु जान-बूझकर अफवाहें भी फैला दी जाती हैं। पत्रकार ऐसी अफवाहों को फीलर (Feeler) के नाम से पुकारते हैं। 1942 ई० में गाँधी जी को किसी अज्ञात स्थान पर नजरबन्द किया गया था। समाचार-पत्रों ने उनकी बीमारी, अनशन आदि अफवाहें छापना प्रारम्भ कर दिया, जिसका जनमत पर व्यापक प्रभाव पड़ा और बाद में सरकार को यह स्पष्ट करना पड़ा कि गाँधी जी कहाँ पर नजरबन्द हैं।