संविधान के अनुच्छेद 143 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय से दो प्रकार के मामलों में अपनी राय अभिव्यक्त करने की अपेक्षा की जाती है। यह सलाहकारी हैसियत में होगा, न्यायिक हैसियत में नहीं।
(क) पहले वर्ग में यदि राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि कोई विधि का प्रश्न ऐसी प्रकृति का है। और ऐसे सार्वजनिक महत्त्व का है कि जिस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है तो वह उस विधिक प्रश्न को उच्चतम न्यायालय को राय देने के लिए निर्दिष्ट कर सकेगा।
उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसे निर्देश में दी गयी राय सरकार पर आबद्धकर नहीं है, अर्थात् उसको मानने को सरकार बाध्य नहीं है। यह राय केवल सलाहकारी है। ऐसा प्रायः तभी होता है। जब सरकार कोई कार्यवाही करने से पहले प्राधिकृत विधिक राय पाने को आतुर हो। 1995 ई० तक राष्ट्रपति द्वारा इस वर्ग के 9 निर्देश किये गये हैं। अन्तिम बार 1991 ई० में ‘कावेरी जल विवाद के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श प्राप्त किया गया था।
उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार है कि यदि अनुच्छेद 143 के अधीन उससे पूछा गया प्रश्न व्यर्थ या अनावश्यक है तो वह उसका उत्तर देने से मना कर दे। राष्ट्रपति ने जनवरी, 1993 ई० में सर्वोच्च न्यायालय से इस विषय पर परामर्श माँगा था कि विवादास्पद बाबरी मस्जिद से पूर्व वहाँ कोई मन्दिर था या नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने 24 अक्टूबर, 1994 को अपने सर्वसम्मत ऐतिहासिक निर्णय में राष्ट्रपति को इस सम्बन्ध में राय देने से मना कर दिया था।
(ख) दूसरे वर्ग के मामले में संविधान के प्रारम्भ से पहले की गयी सन्धियों और करारों से उपजे विवाद आते हैं। राष्ट्रपति ऐसे विवादों की विषय-वस्तु को उच्चतम न्यायालय को परामर्शदायी हैसियत से राय देने के लिए भेज सकता है।