लोक सेवा आयोग संवैधानिक संस्था है जिसको संविधान से शक्ति व अधिकारों की प्राप्ति होती है। अत: उसके क्रियाकलाप निष्पक्ष होते हैं और समसामयिक आवश्यकताओं के अनुकूल रहते हैं। भारत में लोकतन्त्र अर्थात् भीड़तन्त्र का शासन है जिसमें किसी की जवाबदेही नहीं बनती है। मन्त्री भी विधायिका के हिस्से होते हैं जहाँ वोटों की दूषित राजनीति हावी रहती है। भारतीय प्रजातन्त्र शैशवावस्था में ही रेंग रहा है अतः लोक सेवकों की नियुक्ति के कार्य को लोक सेवा आयोग से लेकर मंत्रियों को आवंटित करने पर बड़े विपरीत परिणाम आएँगे जो देश को नैराश्य के गर्त में आकर डुबो देंगे। मूल रूप से लोकतान्त्रिक सरकार की कार्यप्रणाली पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ सकता है –
1. भर्ती किए गए कर्मचारी संविधान के प्रति निष्ठा न रखकर मन्त्रियों के प्रति भक्ति जाग्रत करने लगेंगे।
2. आज राजनीति में घनघोर भ्रष्टाचार व्याप्त है, ऐसे कुप्रबन्धन के दौर में अभ्यर्थियों के चयन में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला बड़े पैमाने पर होने लगेगा,और भाई-भतीजावाद भी पनपेगा, इसकी आशंका निर्मूल नहीं है।