(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित एवं भारतीय संस्कृति के अध्येता डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ शीर्षक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा
पाठ का नाम– राष्ट्र का स्वरूप।
लेखक का नाम-वासुदेवशरण अग्रवाल।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहते हैं कि एक ही राष्ट्र के भीतर अनेकानेक उपसंस्कृतियाँ फलती-फूलती हैं। इन संस्कृतियों के अनुयायी नाना प्रकार के आमोद-प्रमोदों में अपने हृदय के उल्लास को प्रकट किया करते हैं। साहित्य, कला, नृत्य, गीत इत्यादि संस्कृति के विविध अंग हैं। इनका प्रस्तुतीकरण उस आनन्द की भावना को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, जो सम्पूर्ण विश्व की आत्माओं में विद्यमान है।
(iii) साहित्य, कला, नृत्य, आमोद-प्रमोद, अनेक रूपों में राष्ट्रीय जन अपने-अपने मासिक भावों को प्रकट करते हैं।
(iv) सहृदय व्यक्ति प्रत्येक संस्कृति के आनन्द-पक्ष को स्वीकार करते हुए उससे आनन्दित होता है।
(v) प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने विविध संस्कृति वाले राष्ट्र की एकसूत्रता और उसके एकीकृत स्वरूप पर प्रकाश डाला है।