(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित एवं भारतीय संस्कृति के अध्येता डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ शीर्षक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा
पाठ का नाम- राष्ट्र का स्वरूप।
लेखक का नाम-वासुदेवशरण अग्रवाल।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–विद्वान लेखक कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने धर्म, विज्ञान, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में महान् सफलताएँ प्राप्त की थीं। हम उनकी उपलब्धियों पर गौरव का अनुभव करते हैं। उन्होंने जो महान् कार्य किये, हमें उन्हें अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमें इसमें गौरव की अनुभूति होनी चाहिए कि हम उनके महान् कार्यों का अनुसरण कर रहे हैं। अपने पुरखों के महान् आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से हमारा जीवन सफल और महान् बनेगा। राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि का स्वाभाविक तरीका यही है। ऐसा करने से ही राष्ट्र की उन्नति सम्भव है।
(iii) पूर्वजों ने चरित्र और धर्म विज्ञान, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में जो कुछ भी उपलब्धियाँ की हैं। उनको हम गौरव के साथ साधारण करते हैं।
(iv) जहाँ अतीत वर्तमान के लिए भाररूप नहीं है, जहाँ भूत वर्तमान को जकड़ नहीं रखना चाहता वरन् अपने वरदान से पुष्ट करके उसे आगे बढ़ाना चाहता है, उस राष्ट्र का हम स्वागत करते हैं।
(v) प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि राष्ट्र की उन्नति उसकी प्राचीन परम्पराओं से संदेश लेकर भविष्य के लिए समयानुकूल नवीन प्रयास करने पर निर्भर करती हैं।