19वीं सदी के ब्रिटेन के एक राजनीतिक विचारक जॉन स्टुअर्ट मिल ने अभिव्यक्ति तथा विचार और विवाद की स्वतन्त्रता का बहुत ही भावपूर्ण पक्ष प्रस्तुत किया है। अपनी पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ में उसने केवल चार कारण प्रस्तुत किए हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार आज की स्थितियों में गलत या भ्रामक लग रहे हों।
प्रथम कारण तो यह कि कोई भी विचार पूर्ण रूप से गलत नहीं होता। जो हमें गलत लगता है उसमें सच्चाई को तत्त्व होता है। अगर हम गलत विचार को प्रतिबन्धित कर देंगे तो इसमें छिपे सच्चाई के अंश को भी खो देंगे।
द्वितीय कारण पहले कारण से सम्बन्धित है। सत्य स्वयं में उत्पन्न नहीं होता। सत्य विरोधी विचारों के टकराव से उत्पन्न होता है। जो विचार आज गलत प्रतीत होता है, वह सही तरह के विचारों के उदय में बहुमूल्य हो सकती है।
तृतीय, विचारों का यह संघर्ष केवल अतीत में ही मूल्यवान नहीं था, बल्कि हर समय इसका सतत महत्त्व है। सत्य के विषय में यह खतरा हमेशा होता है कि वह एक विचारहीन और रूढ़ उक्ति में परिवर्तित हो जाए। जब हम इसे विरोधी विचार के समक्ष रखते हैं तभी इस विचार का विश्वसनीय होना। सिद्ध होता है।
अन्तिम बात यह है कि हम इस बात को लेकर भी निश्चित नहीं हो सकते कि जिसे हम सत्य समझते हैं। वही सत्य है। कई बार जिन विचारों को किसी समय पूरे समाज ने गलत समझा और दबाया था, बाद में सत्य पाए गए। कुछ समाज ऐसे विचारों का दमन करते हैं जो आज उनके लिए स्वीकार्य नहीं हैं, लेकिन ये विचार आने वाले समय में बहुत मूल्यवान ज्ञान में बदल सकते हैं। दमनकारी समाज ऐसे सम्भावनाशील ज्ञान के लाभों से वंचित रह जाते हैं।