‘शान्तिवाद’ विवादों को सुलझाने के हथियार के रूप में युद्ध अथवा हिंसा के बजाय शान्ति का उपदेश देता है। इसमें विचारों की अनेक छवियाँ सम्मिलित हैं। इसके क्षेत्र में कूटनीति को अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में प्राथमिकता देने से लेकर किसी भी हालत में हिंसा और शक्ति के प्रयोग के पूर्ण निषेध तक आते हैं। शान्तिवाद सिद्धान्तों पर भी आधारित हो सकती है और व्यावहारिकता पर भी।
सैद्धान्तिक शान्तिवाद का जन्म इस विश्वास से होता है कि युद्ध सुविचारित घातक हथियार, हिंसा या किसी प्रकार की जोर-जबरदस्ती नैतिक रूप से गलत है। व्यावहारिक शान्तिवाद ऐसे किसी चरम सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करता है। व्यावहारिक शान्तिवाद मानता है कि विवादों के समाधान में युद्ध से बेहतर तरीके भी हैं या फिर यह समझता है कि युद्ध पर लागत अधिक आती है, लाभ कम होते हैं। युद्ध से बचने के पक्षधर लोगों के लिए ‘श्वेत कपोत’ जैसे अनौपचारिक शब्दों का प्रयोग होता है। शब्द सुलह-समझौते के पक्षधरों की सौम्य प्रकृति की ओर इशारा करते हैं। कुछ लोग सुलह-समझौते के पक्षधरों को शान्तिवादी के वर्ग में नहीं रखते, क्योंकि वे कतिपय परिस्थितियों में युद्ध को औचित्यपूर्ण मान सकते हैं।
‘बाज’ या युद्ध-पिपासु लोग कपोत प्रकृति के विपरीत होते हैं। युद्ध का विरोध करने वाले कुछ शान्तिवादी सभी प्रकार की जोर-जबरदस्ती जैसे शारीरिक बल प्रयोग या सम्पत्ति की बरबादी के विरोधी नहीं होते। उदाहरणस्वरूप, असैन्यवादी साधारणतया हिंसा के बजाय आधुनिक राष्ट्र-राज्यों की सैनिक संस्थाओं के विशेष रूप से विरोधी होते हैं। अन्य शान्तिवादी अंहिसा के सिद्धान्तों का अनुसरण करते हैं, क्योंकि वे केवल अहिंसक कार्यवाही के स्वीकार्य होने का विश्वास करते हैं।