शान्ति स्थापित करने और बनाए रखने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ अपनाई गई हैं। इन रणनीतियों को आकार देने के लिए तीन तरीकों ने सहायता दी है जो निम्नलिखित हैं-
1. प्रथम तरीका राष्ट्रों को केन्द्रीय स्थान प्रदान करता है, उनकी सम्प्रभुता का सम्मान करता है। उनके बीच प्रतिद्वन्द्विता को जीवन्त सत्य मानता है। उसकी प्रमुख प्रतिद्वन्द्विता के उपयुक्त प्रबन्धन तथा संघर्ष की आशंका का शमन सत्ता-सन्तुलन की पारस्परिक व्यवस्था के माध्यम से करने की होती है। कहा जाता है कि वैसा एक सन्तुलन 19वीं सदी में प्रचलित था, जब प्रमुख यूरोपीय देशों ने सम्भावित आक्रमण को रोकने और बड़े पैमाने पर युद्ध से बचने के लिए अपने सत्ता संघर्षों में गठबन्धन बनाते हुए तालमेल किया।
2. दूसरा तरीका भी राष्ट्रों की गहराई तक जमी आपसी प्रतिद्वन्द्विता की प्रकृति को स्वीकार करता है, लेकिन इसका जोर सकारात्मक उपस्थिति और परस्पर निर्भरता की सम्भावनाओं पर है। यह विभिन्न देशों के बीच विकासमान सामाजिक आर्थिक सहयोग को रेखांकित करता है। अपेक्षा रहती है कि वैसे सहयोग राष्ट्र की सम्प्रभुता को नरम करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय समझदारी को प्रोत्साहित करेंगे। परिणामस्वरूप वैश्विक संघर्ष कम होंगे, जिससे शान्ति की अच्छी सम्भावनाएँ। बनेंगी। इस पद्धति के पक्षकारों द्वारा अक्सर दिया जाने वाला एक उदाहरण द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् के यूरोप का है, जो आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकीकरण की ओर बढ़ता गया है।
3. तीसरी पद्धति राष्ट्र आधारित व्यवस्था को मानव इतिहास की समाप्तप्राय अवस्था स्वीकारती है। यह अधिराष्ट्रीय व्यवस्था को मनोचित्र बनाती है और वैश्विक समुदाय के अभ्युदय को शान्ति की विश्वसनीय गारण्टी मानती है। वैसे समुदाय के बीज राष्ट्रों की सीमाओं के आर-पार बढ़ती आपसी अन्त:क्रियाओं और संश्रयों में दिखते हैं जिसमें बहुराष्ट्रीय निगम और जनान्दोलन जैसे विविध गैर-सरकारी कर्ता सम्मिलित हैं। इस तरीके के प्रस्तावक और समर्थक तर्क देते हैं कि वैश्वीकरण की चल रही प्रक्रिया राष्ट्रों को पहले से ही घट गई प्रधानता और सम्प्रभुता को और अधिक क्षीण कर रही है, जिसके फलस्वरूप विश्व-शान्ति स्थापित होने की परिस्थितियाँ बन रही हैं।
यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र तीनों की पद्धतियों के प्रमुख तत्त्वों को साकार कर सकता है। सुरक्षा परिषद्, जो स्थायी सदस्यता और पाँच प्रमुख राष्ट्रों को निषेधाधिकार (अन्य सदस्यों द्वारा समर्थित प्रस्ताव को भी गिरा देने का अधिकार) देता है, प्रचलित अन्तर्राष्ट्रीय श्रेणीबद्धता को ही व्यक्त करता है। आर्थिक-सामाजिक परिषद् अनेक क्षेत्रों में राष्ट्रों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है। मानवाधिकार आयोग अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्डों को आकार देना और लागू करना चाहता है।