राजनीतिक विज्ञान में विकास शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया गया है। उदाहरण के लिए, औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया तथा आर्थिक एवं राजनीतिक संगठनों की कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए शब्द का प्रयोग किया गया है। अनेक विद्वानों ने विकास शब्द का प्रयोग दो प्रकार के देशों-विकसित (Developed) तथा विकासशील (Developing) में भेद करने के लिए किया है। वास्तव में, विकास (जोकि जैविक एवं सावयविक अवधारणा है) की अवधारणा का सामाजिक विज्ञानों के अध्ययनों में प्रयोग किए जाने का एक प्रमुख कारण ही नए राष्ट्रों का उदय तथा उनके द्वारा विभिन्न सामाजिक समस्याओं के समाधान के प्रयास हैं। नवीन राष्ट्रों के सम्मुख एक प्रमुख समस्या देश को आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ बनाने तथा राष्ट्र-निर्माण करके समस्याओं के समाधान की रही है।
विकास शब्द से अभिप्राय उन्नत दिशा में विभेदीकरण है जो कि अनेक दशाओं में वृद्धि इत्यादि में देखा जा सकता है। इन दशाओं में तीन दशाएँ प्रमुख हैं-
⦁ श्रम-विभाजन में वृद्धि,
⦁ संस्थाओं और समितियों की संख्या में वृद्धि तथा
⦁ संचार साधनों में वृद्धि। इस शब्द का प्रयोग केवल परिमाणात्मक वृद्धि के लिए ही नहीं किया जाता अपितु संगठन की कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए भी किया जाता है।
एस०एफ० नैडल (S.F. Nadel) के अनुसार विकास शब्द से तात्पर्य केवल उस परिवर्तन से नहीं है। जिससे कोई अप्रकट अथवा छिपी चीज सामने आती है, अपितु इनका संबंध संभावित परिवर्तनों से भी है। उनका कहना है कि विकास की प्रक्रिया का अतिंम रूप ही किसी समाज को प्रगति की अवस्था तक पहुँचाता है। अधिकांश विद्वान् (जैसे पारसन्स इत्यादि) विकास शब्द का प्रयोग उन परिवर्तनों के लिए करते हैं जो औद्योगीकरण के कारण सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संस्थाओं पर परिलक्षित होते हैं।
एस० चोडक (S. Chodak) के अनुसार, विकास शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में क्रिया जाता है, जिनमें से चार का उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक सोसाइटल डिवेलपमेण्ट (Societal Development) में किया है। ये अर्थ हैं-
⦁ उविकास (Evolution) के दृष्टिकोण के अनुसार विकास संगठन की उच्च अवस्था की ओर होने वाली आकस्मिक प्रक्रिया है जोकि धीमी गति से होती है।
⦁ उत्पत्ति (Genetic) संबंधी दृष्टिकोण के अनुसार विकास आंतरिक तत्त्वों में वृद्धि है।
⦁ संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक (Structural-functional) दृष्टिकोण के अनुसार विकास संरचना और प्रकार्यों में परिवर्तन की एक निरंतर प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप विशेषीकरण, विभेदीकरण, अंगों की पारस्परिक आश्रितता तथा समग्र की स्वतन्त्रता में वृद्धि होती हैं।
⦁ निर्णायकवाद (Determinism) दृष्टिकोण के अनुसार विकास स्वतः होने वाली परिवर्तन की एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा संरचनाओं व अन्तक्रियाओं में जटिलता आ जाती है।