वर्गान्तरों के वर्गीकरण की दो विधियाँ हैं-
(अ) अपवर्जी विधि तथा
(ब) समावेशी विधि।
(अ) अपवर्जी विधि – इसमें पहले वर्ग की उच्च सीमा (upper limit) तथा दूसरे वर्ग की निम्न सीमा (lower limit) समान हाती है। अत: यह समस्या उत्पन्न होती है कि उच्च सीमा को किस वर्ग में रखा जाए। इस विधि में किसी वर्ग की उच्च सीमा को उस वर्ग के अन्तर्गत शामिल न करके, उसके बाद वाले वर्ग में शामिल किया जाता है। उदाहरण के लिए|

कभी-कभी निचली सीमा को भी अपवर्जी कर दिया जाता है।

(ब) समावेशी विधि – इसमें निम्न सीमा व उच्च सीमा दोनों को उसी वर्ग में सम्मिलित कर लिया जाता है। इसमें दो बातों का ध्यान रखा जाता है
⦁ किसी वर्गान्तर की ऊपरी सीमा उससे अगले वर्गान्तर की निचली सीमा के बराबर न हो।
⦁ इन दोनों में अधिकतम अन्तर 1 संख्या का हो।
समावेशी रीति का उदाहरण निम्नलिखित है

समावेशी वर्गान्तरों को अपवर्जी वर्गान्तर में बदलना – यदि वर्गान्तर समावेशी हैं, तो उन्हें तुरन्त अपवर्जी वर्गान्तरों में बदल देना चाहिए। इसका नियम यह है कि एक वर्ग की उच्च सीमा तथा अगले वर्ग की निम्न सीमा के अन्तर का आधा करके उसे निचली सीमा में से घटा दिया जाता है और ऊपरी सीमा में जोड़ दिया जाता है। उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर
