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मानव संसाधन विकास के एक आवश्यक तत्त्व के रूप में शिक्षा का महत्त्व एवं स्वरूप बताइए। भारत में शिक्षा क्षेत्र के विकास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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शिक्षा : मानव संसाधन के विकास का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। शिक्षा से आशय लोगों के पढ़ने-लिखने और समझने की योग्यता से है। भारत में मात्र 74.04% लोग साक्षर हैं, जबकि अन्य विकसित देशों में यह प्रतिशत 90 से 95 तक है।

शिक्षा का महत्त्व

शिक्षा के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
⦁    शिक्षा नागरिकता की भावना का विकास करती है।

⦁    शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।

⦁    शिक्षा उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सुविधाजनक बनाती है।

⦁    इससे लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है।

⦁    इससे देशवासियों के सांस्कृतिक स्तर में अभिवृद्धि होती है।

⦁    यह मानवीय व्यक्तित्व के विकास में सहायक है।

⦁    यह विकास प्रक्रिया में जनसहभागिता को संभव बनाती है।

भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास

1. सामान्य शिक्षा का प्रसार- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में सामान्य शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। देश में शिक्षण संस्थाओं की संख्या लगभग चार गुना और छात्रों की संख्या लगभग पाँच गुना बढ़ चुकी है। 1951 ई० में कुल जनसंख्या का मात्र 16% ही साक्षर था जो 2011 में बढ़कर लगभग 74.04% हो गया है।
2. प्राथमिक शिक्षा- प्राथमिक शिक्षा में 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों में कक्षा एक से आठ तक के छात्र आते हैं। योजनाकाल में प्राथमिक स्कूलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इस समय 6 से 14 वर्ष के आयु समूह में लगभग 90% बच्चे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं किंतु अभी भी यह प्रतिशत निम्न है। शिक्षा की दृष्टि से अति पिछड़े राज्य हैं-बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व अरुणाचल प्रदेश। शिक्षा के इस पिछड़ेपन का प्रमुख कारण आर्थिक व सामाजिक पिछड़ापन है।
3. माध्यमिक शिक्षा- वर्ष 2010-11 में देश में लगभग 2 लाख 45 हजार माध्यमिक विद्यालय कार्य कर रहे थे। इनके अतिरिक्त केन्द्रीय विद्यालय’ व ‘नवोदय विद्यालय भी स्थापित किए गए  हैं। किंतु इन विद्यालयों में विद्यार्थियों का दाखिला संतोषजनक नहीं रहा है। यह मात्र 20% है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के व्यावसायीकरण में भी विशेष सफलता नहीं मिली है।
4. उच्चतर शिक्षा– भारत में विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालय स्तर की संस्थाओं में 20 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 215 राज्य विश्वविद्यालय, 100 समकक्ष विश्वविद्यालय, राज्य अधिनियम के अंतर्गत गठित 5 संस्थाएँ तथा 13 राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान शामिल हैं। ये संस्थान 1800 महिला महाविद्यालयों सहित 17000 महाविद्यालयों के अतिरिक्त हैं। देश में शिक्षा के क्षेत्र में अब प्राइवेट विश्वविद्यालय भी खुल गए हैं।
5. तकनीकी, चिकित्सकीय एवं कृषि शिक्षा– स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों में काफी वृद्धि हुई है। वर्तमान में देश में 1215 पॉलीटैक्निकल संस्थाएँ तथा 778 मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में, देश में 268 मेडिकल कॉलेज तथा 126 डेन्टल कॉलेज हैं। देश में अनेक अनुसंधान केन्द्र भी स्थापित किए गए
6. ग्रामीण शिक्षा- ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा के व्यापक प्रसार पर बल दिया जा रहा है। इस हेतु राष्ट्रीय ग्रामीण उच्च शिक्षा परिषद् की स्थापना की जा चुकी है।
7. प्रौढ़ तथा स्त्री शिक्षा- प्रौढ़ शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गई। 1975 ई० में औपचारिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया गया है। स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए स्त्री शिक्षा परिषद् की स्थापना की गई है।
8. कुल साक्षरता अभियान– देश में सभी के लिए शिक्षा’ आन्दोलन शुरू किया जा चुका है। | इसके फलस्वरूप साक्षरता में तेजी से वृद्धि हुई है। उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद हमने शिक्षा के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय सफलता अर्जित नहीं की है। आज भी भारत में निरक्षर लोगों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है, व्यावसायिक शिक्षा की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, बालिकाओं का दाखिला प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है, ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में शिक्षा तक पहुँच कम है और निजीकरण से शैक्षिक जगत में असमानताएँ बढ़ी हैं। अतः शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।

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