रुचि का अर्थ व परिभाषा(Meaning and Definition of Interest)
अवधान के प्रत्यय की व्याख्या करते समय रुचि’ की महत्त्वपूर्ण अवधारणा को भी समझना आवश्यक है। अवधान और रुचि का गहरा मेल है और दोनों ही विचार एक-दूसरे की परिपूर्ति करते हैं। जिन कार्यों में हम रुचि लेते हैं उन्हें करने में हमें सुख और सन्तोष मिलता है-आनन्द की प्राप्ति होती है। ऐसे कार्यों को करने के लिए हम प्रेरित होते हैं और ध्यान लगाकर अथक रूप से उन्हें पूरा करते हैं। वस्तुतः हम उन्हीं वस्तुओं या कार्यों की ओर उन्मुख होते हैं जो हमारे भीतर रुचि उत्पन्न करते हैं।
रुचि को एक ऐसी प्रवृत्ति अथवा प्रेरक-शक्ति के रूप में जाना जा सकता है जो हमें वातावरण के कुछ विशिष्ट तत्त्वों की ओर ध्यान देने की प्रेरणा प्रदान करती है। इसे प्रभावपूर्ण अनुभव भी कह सकते हैं जो स्वयं अपनी सक्रियता से उत्तेजित होता है। इस अर्थ में यह एक व्यक्ति के अनुभव की पुकार है और इसका तात्पर्य–व्यक्तिगत तात्पर्य है। कुछ विद्वानों के अनुसार “रुचि किसी उत्तेजना, वस्तु, व्यक्ति अथवा परिस्थिति की ओर आकर्षित होने की प्राकृतिक, जन्मजात या अर्जित प्रवृत्ति है।” लैटिन भाषा में रुचि शब्द का अर्थ है-“यह आवश्यक होती है” (It Matters.) या यह सम्बन्धित होती है’ (It Concerns.)। दूसरे शब्दों में, हमारे अन्दर, रुचि पैदा करने वाली वस्तु हमारे लिए आवश्यक होती है और हमसे सम्बन्धित भी होती है।
रुचि का आधार प्रायः मनुष्य की मूल प्रवृत्तियाँ हैं। सच तो यह है कि मनुष्य की आवश्यक रुचियाँ स्वयं उसकी मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं अर्थात् आरम्भिक अवस्थाओं में मनुष्य की रुचियाँ मूल प्रवृत्त्यात्मक कही जाती हैं। रुचि एक अस्थायी तथा सामाजिक प्रकार की शक्ति है जो अपना कार्य पूर्ण करने के बाद विलीन हो जाती है। बच्चे की रुचि खिलौने में होती है, कुछ बड़े बालकों का आकर्षण हम उम्र साथियों के प्रति होता है, किशोर विपरीत-लिंगी व्यक्ति की ओर आकर्षित होता है तथा किसान खेती-बाड़ी में रुचि रखता है। रुचि की विरोधी प्रवृत्ति उपेक्षा है।
रुचि की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –
⦁ जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “रुचि अपने में ही एक गत्यात्मक वृत्ति है।”
⦁ क्रो एवं क्रो के अनुसार, “रुचि उस प्रेरक शक्ति को कहते हैं जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा क्रिया के प्रति ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है।”
⦁ मैक्डूगल का कथन है, “रुचि गुप्त अवधान होता है और अवधान रुचि का क्रियात्मक रूप है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के अनुसार-रुचि को गत्यात्मक वृत्ति, प्रेरक शक्ति गुप्त तथा अवधान के रूप में समझा गया है। अवधान की ही भाँति रुचि के भी तीन पक्ष माने गये हैं-ज्ञानात्मक, क्रियात्मक और भावात्मक।
रुचि और अवधान का सम्बन्ध (रुचि का अवधान में महत्त्व) (Relationship between Attention and Interest)
रुचि और अवधान के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये दोनों एक ही वस्तु का प्रत्यक्ष करने के दो भिन्न दृष्टिकोण हैं और एक-दूसरे के पूरक समझे जाते हैं। व्यक्ति की जन्मजात एवं अर्जित रुचियाँ परस्पर मिलकर कार्य करती हैं और अवधान केन्द्रित करने में सहायता करती हैं। इसी प्रकार किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने से शनैः-शनैः उसमें रुचि विकसित हो जाती है।
रुचि और अवधान सम्बन्धी मनोवैज्ञानिक मत-रुचि और अवधान के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से निम्नलिखित तीन मत अभिव्यक्त होते हैं
(1) अवधान रुचि पर आधारित है – कुछ विद्वानों का मत है कि अवधान रुचि पर आधारित होता है। सामान्य रूप से व्यक्ति उन्हीं घटनाओं, पदार्थों या कार्यों पर ध्यान देता है जिनमें उसकी रुचि होती है। यदि किसी व्यक्ति की संगीत में गहरी रुचि है तो अन्य क्रियाओं में व्यस्त रहते हुए भी उसका ध्यान दूर से सुनाई पड़ रहे संगीत की और चला जाएगा, किन्तु यदा-कदा ऐसा भी देखा गया है कि किसी चीज में रुचि होने के बावजूद भी हम उसकी ओर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते और कोई अन्य तीव्र उत्तेजना अपनी तरफ हमारा ध्यान खींच लेती है। यदि बालक पाठ में रुचि लेकर पढ़ रहा है, किन्तु गली में भालू वाला डुगडुगी बजाकर भालू का खेल दिखा रहा है तो निश्चय ही बालक को ध्यान भालू की ओर जाएगा, लेकिन यह भी सत्य है कि यदि बालक की पाठ में तीव्र रुचि होगी तो थोड़े-बहुत भटकाव के बाद उसका ध्यान पुनः पाठ में अवस्थित हो जाएगा।
(2) अवधान रुचि को प्रभावित करता है – एक ओर यदि अवधान रुचि पर आधारित है तो दूसरी ओर रुचि अवधान पर आधारित होती है अर्थात् अवधान रुचि को प्रभावित करता है। किसी वस्तु के प्रति ध्यान केन्द्रित करने से उसके प्रति रुचि स्वतः ही बढ़ जाती है। यह सम्भव है कि प्रारम्भ में किसी वस्तु या घटना में हमारी रुचि न हो, किन्तु यदि उसकी ओर लगातार जबरन अवधान केन्द्रित किया जाए तो अन्ततः उसमें रुचि उत्पन्न हो ही जाती है। यदि किसी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह चार बजे जबरदस्ती जगा दिया जाए तो शुरू में यह प्रक्रिया उसे अरुचिपूर्ण तथा पीड़ादायक ही महसूस होगी, किन्तु एक दिन उस निश्चित समय पर जागने की उसे आदत पड़ जाएगी, जिसे बाद में वह रुचि के साथ करने लगेगा।
(3) समन्वयवादी विचारधारा – समन्वयवादी विचारधारा के अनुसार रुचि और अवधान दोनों का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और एक-दूसरे को समान रूप से प्रभावित करते हैं। रुचि गुप्त अवधान और अवधान एक क्रियाशील रुचि-यहाँ हम विख्यात मनोवैज्ञानिक विलियम मैक्डूगल के कथन का विवेचन करते हुए अवधान एवं रुचि के मध्य सम्बन्ध स्थापित करेंगे। जिस प्रकार एक संरचना (Structure) क्रिया (Action) से सम्बन्धित होती है, उसी प्रकार रुचि अवधान से जुड़ी है। किसी प्रत्यय के सम्पूर्ण एवं व्यवस्थित ज्ञान के लिए उसका संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अध्ययने आवश्यक है। इसी कारणवश विज्ञान के विद्यार्थी पहले विद्युत घण्टी की संरचना (बनावट) का ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर उसकी क्रियाविधि के विषय में जानने का प्रयास करते हैं। मानव मन से सम्बन्धुित व्यापार में भी मानसिक संरचना तथा मानसिक क्रिया दोनों महत्त्वपूर्ण हैं तथा । दोनों का समान रूप से योगदान है। मानसिक संरचना रुचि है और मानसिक क्रिया ‘अवधान है। संरचना क्रिया को संचालित करती है अर्थात् रुचि अवधान का संचालन करती है। दूसरे शब्दों में, मानव की रुचि का अभिप्रकाशन उसके अवधान के रूप में होता है। यह कहना एक भूल होगी कि जिस वस्तु में मनुष्य की रुचि नहीं है उसमें अवधान नहीं होगा तथा जिस वस्तु की ओर अवधान केन्द्रित होता है, उसमें रुचि भी अवश्य होती है। परीक्षा की तैयारी के लिए विद्यार्थी पाठ में रुचि न होने पर भी ध्यान देता है। कुछ विद्वानों का यह मत उचित नहीं कहा जा सकता कि अवधान रुचि का परिणाम होता है। रुचि एक मानसिक संस्कार है जो अवधान के लिए एक अत्यन्त आवश्यक तत्त्व या दशा है। अवधान के विभिन्न आन्तरिक प्रेरक हैं और उनमें से सबसे बलवान प्रेरक रुचि है। सामान्यतः व्यक्ति किसी वस्तु-विशेष के प्रति रुचि रखता है। उसे बलात् कुछ अन्य कार्य भी करने पड़ते हैं जिनमें उसका अवधान केन्द्रित रहता है, किन्तु यह अवधान उसकी रुचि में छिपा रहता है। इसी प्रकार किसी वस्तु पर ध्यान देने का अभिप्राय है उसमें सक्रिय रुचि को प्रकट करना। निष्कर्षत: मैक्डूगल का यह कथन कि “रुचि गुप्त अवधान है तथा अवधान एक क्रियाशील रुचि है”-सत्य प्रतीत होता है।