Use app×
Join Bloom Tuition
One on One Online Tuition
JEE MAIN 2025 Foundation Course
NEET 2025 Foundation Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
734 views
in Psychology by (52.9k points)
closed by

ध्यान-विचलनसे क्या आशयै है? ध्यान-विचलन के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।

1 Answer

+1 vote
by (55.1k points)
selected by
 
Best answer

ध्यान-विचलन से आशय
ध्यान अथवा अवधान की प्रक्रिया का व्यवस्थित अध्ययन करते समय ध्यान सम्बन्धी एक स्थिति देखने को मिलती है, जिसे ध्यान का विचलन (Fluctuation of Attention) कहते हैं। ध्यान सम्बन्धी इस दशा में व्यक्ति का ध्यान किसी एक विषय पर केन्द्रित न होकर बारी-बारी दो या अधिक विषयों (उद्दीपकों) के प्रति आकृष्ट होता रहता है। हम कह सकते हैं कि यदि व्यक्ति को ध्यान कुछ क्षण एक उद्दीपक पर केन्द्रित हो तथा कुछ क्षण किसी अन्य उद्दीपक पर केन्द्रित होने के बाद पुनः प्रथम उद्दीपक पर केन्द्रित हो जाता है तो इस दशा को अवधान का विचलन ही कहा जाएगा। वास्तव में, ध्यान या अवधान की प्रकृति ही ऐसी है कि उसमें चंचलता पायी जाती है। ध्यान का निरन्तर अधिक समय तक किसी एक विषय पर केन्द्रण सम्भव नहीं होता है। किसी उद्दीपक के प्रति व्यक्ति के ध्यान-केन्द्रण की तीव्रता स्वाभाविक रूप से ही कम या अधिक होती रहती है। ध्यान में पूर्ण एकाग्रता नहीं पायी जाती है। ध्यान की एकाग्रता का घटना-बढ़ना ही ध्यान का विचलन कहलाता है। ध्यान के विचलन का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिकों ने यह भी ज्ञात करने का प्रयास किया कि कोई व्यक्ति किसी एक उद्दीपक या विषय पर अधिक-से-अधिक कितने समय तक ध्यान को एकाग्र कर सकता है। इस प्रकार का सर्वप्रथम परीक्षण विलिंग्स द्वारा 1914 ई० में आयोजित किया गया तथा उसने निष्कर्ष प्राप्त किया कि व्यक्ति केवल दो सेकण्ड तक ही ध्यान को एकाग्र कर सकता है। दो सेकण्ड के उपरान्त ध्यान-विचलन हो जाता है। इससे भिन्न वुडवर्थ ने अपने अवधान-विचलन सम्बन्धी परीक्षण के आधार पर घोषित किया कि यदि अवधान सम्बन्धी उद्दीपक जटिल हो तो व्यक्ति अपने ध्यान को उसके प्रति 5 सेकण्ड से भी अधिक अवधि तक केन्द्रित कर सकता है। यहाँ एक अन्य स्पष्टीकरण भी प्रस्तुत किया गया। वुडवर्थ के अनुसार, जब किसी विषय के प्रति ध्यान का केन्द्रण 5 सेकण्ड या अधिक समय तक होता है तो उस अवधि में व्यक्ति का ध्यान सम्बन्धित उद्दीपक के ही भिन्न-भिन्न भागों पर विचलित हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी सुन्दर फूल पर ध्यान का केन्द्रण करते समय उसकी भिन्न-भिन्न पंखुड़ियों या भागों पर ध्यान का केन्द्रण हो सकता है। वुडवर्थ की मान्यता से भिन्ने कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों ने अपने परीक्षणों के आधार पर स्पष्ट किया है कि व्यक्ति के ध्यान का केन्द्रण 6 सेकण्ड तक भी हो सकता है।

ध्यान-विचलन के मुख्य कारण
ध्यान या अवधान अपनी प्रकृति का चंचल होता है तथा निरन्तर रूप से ध्यान का विचलन होता रहता है। ध्यान की इस चंचलता या विचलन के कारणों को ज्ञात करने के लिए भी कुछ परीक्षण किये गये तथा ध्यान-विचलन के कुछ कारणों को खोजा गया। ध्यान-विचलन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

(i) थकान अथवा सांवेदिक अनुकूलन – ध्यान-केन्द्रण अपने आप में एक विशिष्ट मानसिक प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न मानसिक क्षमताओं को अभीष्ट विषय पर केन्द्रित किया जाता है। मानसिक क्षमताओं के इन केन्द्रण से एक विशेष प्रकार की थकान होती है। इस थकान अथवा सांवेदिक अनुकूलन के कारण भी ध्यान का विचलन होता है अर्थात् थकान या सांवेदिक अनुकूलन ध्यान के विचलन को एक कारण है। ध्यान की प्रक्रिया का विश्लेषण करते हुए स्पष्ट किया गया है कि ध्यान-केन्द्रण के समय व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियों को निरन्तर रूप से कार्य करना पड़ता है तथा इस प्रकार से निरन्तर कार्य करने से ज्ञानेन्द्रियों के संवेदनात्मक समायोजन में कुछ बाधा उत्पन्न होती है। ध्यान-केन्द्रण की प्रक्रिया में हमारे शरीर के वे समस्त न्यूरॉन्स थक जाते हैं, जिनके माध्यम से संवेदनाएँ ग्रहण की जाती हैं। इस प्रकार से होने वाली थकान ही ध्यान-विचलन का एक कारण है।

(ii) आँखों की गतिः – अवधान-विचलन का एक कारण आँखों की गति भी माना गया है। इस कारक का स्पष्टीकरण जानने के लिए विभिन्न परीक्षण किये गये तथा देखा गया कि आँखों की स्वाभाविक गति के कारण बार-बार सम्बन्धित उद्दीपक की प्रतिमा आँख के रेटिना के एक निश्चित भाग से हट जाती है तथा तुरन्त ही किसी अन्य स्थान पर बनने लगती है। इस प्रकार के होने वाले परिवर्तन के कारण ध्यान या अवधान का विचलन हो जाता है। इससे भिन्न एक अन्य स्पष्टीकरण के अन्तर्गत रॉबर्टसन ने अवधान के विचलन का कारण उद्दीपक के भिन्न-भिन्न भागों पर भिन्न-भिन्न मात्रा में प्रकाश का पड़ना माना है। उसके अनुसार उद्दीपक के किसी एक भाग पर अन्य भागों की तुलना में कम या अधिक प्रकाश पड़ सकता है। उद्दीपक पर प्रकाश के इस असमान वितरण के कारण अवधान का विचलन हो सकता है।

(iii) रक्त-संचालन में होने वाले विचलन – यह एक शरीरशास्त्रीय तथ्य है कि हमारे शरीर में होने वाले रक्त-संचालन में निरन्तर रूप से कुछ हल्के तथा साधारण विचलन होते रहते हैं। रक्त-संचालन में होने वाला यह विचलन ‘Traube-Hearing Wave’ कहलाता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, रक्त-संचालन में होने वाला यह विचलन भी अवधान-विचलन का ही एक कारण है।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...