वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में बच्चों को औपचारिक रूप से शिक्षा प्रदान करने वाला मुख्यतम अभिकरण ‘विद्यालय’ (School) कहलाता है। विद्यालय शिक्षा का औपचारिक अभिकरण है। सभ्य मानव समाज ने अपनी सोच के बल पर विद्यालयों का विकास किया है। ओटावे के अनुसार, ‘‘विद्यालय को एक सामाजिक आविष्कार मानना चाहिए जो समाज के बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा प्रदान करने में समर्थ है। इसी प्रकार रॉस ने स्पष्ट किया है, “विद्यालय वे संस्थाएँ हैं, जिनको सभ्य मनुष्य के द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिए बालकों को तैयारी में सहायता मिले।”
स्पष्ट है कि बच्चों की व्यवस्थित शिक्षा में विद्यालय का विशेष महत्त्व है। अब प्रश्न उठता है कि विद्यालयों को शिक्षा का अधिक प्रभावशाली एवं उपयोगी अभिकरण कैसे बनाया जाए? इसके लिए प्रथम सुझाव यह है कि विद्यालय की अनुशासन व्यवस्था अति उत्तम होनी चाहिए। विद्यालयों का शैक्षिक वातावरण अधिक-से-अधिक सौहार्दपूर्ण, आदर्शपरक तथा मूल्यपरक होना चाहिए। विद्यालय में अध्यापकों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अध्यापकों को पूर्ण निष्ठा एवं लगन से तथा दायित्वपूर्ण ढंग से अध्यापन कार्य । करना चाहिए। विद्यालय प्रबन्धन द्वारा शिक्षा के स्तर को हर प्रकार से उन्नत करने के सभी सम्भव उपाय किए जाने चाहिए।