प्रक्षेपों का वर्गीकरण
प्रक्षेपों का वर्गीकरण प्रकाश तथा उनके उपयोग के आधार पर निम्नवत् किया जा सकता है ।
1. प्रकाश के प्रयोग के आधार पर प्रकाश के प्रयोग पर आधारित जो प्रक्षेप बनाए जाते हैं, उन्हें निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
(क) सन्दर्भ प्रक्षेप–इने प्रक्षेपों की रचना करने के लिए ग्लोब के मध्य भाग से प्रकाश डालकर अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं का जाल प्राप्त किया जाता है। इन प्रक्षेपों के निर्माण में रेखागणित का सहयोग लिया जाता है; अतः इन्हें ज्यामितीय या अनुदृष्टि प्रक्षेप भी कहते हैं।
(ख) असन्दर्श प्रक्षेप-इन प्रक्षेपों की रचना गणित के सिद्धान्तों के आधार पर की जाती है। अतः इन्हें गणितीय या अभौतिक प्रक्षेप भी कहते हैं।
2. उपयोग के आधार पर-उपयोग की दृष्टि से प्रक्षेपों को निम्नलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(क) शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में क्षेत्रफल तथा मापक शुद्ध रहता है, उन्हें शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों का प्रयोग विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन, वितरण तथा राजनीतिक मानचित्रों की रचना में किया जाता है।
(ख) शुद्ध आकृति प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में विभिन्न प्रदेशों की आकृतियाँ शुद्ध रहती हैं, उन्हें शुद्ध आकृति प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों का प्रयोग विभिन्न देशों के मानचित्र, जलधाराओं की प्रवाह दिशा, वायुमार्ग तथा पवन की प्रवाह दिशा दर्शाने के लिए किया जाता है। ऐसे प्रक्षेपों का क्षेत्रफल प्रायः अशुद्ध रहता है।
(ग) शुद्ध दिशा प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में सभी दिशाएँ शुद्ध रहती हैं, उन्हें शुद्ध दिशा प्रक्षेप
कहते हैं। इन प्रक्षेपों के मध्य से देखने पर प्रत्येक ओर शुद्ध दिशा का ज्ञान होता है, परन्तु यह दिशानुरूपता केन्द्र के निकटवर्ती क्षेत्रों तक ही रहती है। उत्तर-दक्षिण दिशाओं में इनका प्रसार अधिक होता है। इन प्रक्षेपों का उपयोग नाविकों के लिए बहुत ही लाभप्रद होता है। वायुमार्ग, जलमार्ग तथा स्थलमार्ग प्रदर्शित करने हेतु इन्हीं प्रक्षेपों का उपयोग किया जाता है।
3. रचना के आधार पर-रचना प्रक्रिया के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण निम्नलिखित चार प्रकार से किया जा सकता है
(क) शंक्वाकार प्रक्षेप,
(ख) बेलनाकार प्रक्षेप,
(ग) शिरोबिन्दु प्रक्षेप,
(घ) परम्परागत अथवा रूढ़ प्रक्षेप
प्रक्षेप की विशेषताएँ
विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपों में निम्नलिखित गुण या विशेषताएँ होती हैं|
⦁ एक उत्तम प्रक्षेप में शुद्ध दिशा, शुद्ध क्षेत्रफल, शुद्ध आकृति, शुद्ध मापक जैसे ही गुण नहीं होते और उसकी रचना भी सरल होती है।
⦁ कोई भी प्रक्षेप सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता, इसीलिए विभिन्न उद्देश्यों के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रक्षेपों की रचना की जाती है।
⦁ प्रत्येक प्रक्षेप में अक्षांश रेखाएँ विषुवत् रेखा के समान्तर तथा देशान्तर रेखाएँ उत्तर-दक्षिण ध्रुवों | की ओर प्रसारित होती हैं।
⦁ प्रत्येक प्रक्षेप अक्षांश व देशान्तर रेखाओं का जाल होता है।
⦁ प्रक्षेप में दो देशान्तर रेखाओं के बीच की दूरी चाप कहलाती है, जबकि दो अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी पेटी कहलाती है।