एक मानक अक्षांश वाला शंकु प्रक्षेप
इस प्रक्षेप की आकृति शंकु की भाँति होती है। इसके निर्माण के लिए कागज को ग्लोब परे शंकु के आकार में मोड़कर लपेटा जाता है। कागजरूपी शंकु जिस स्थान पर ग्लोब को स्पर्श करता है, उसे ही प्रामाणिक अक्षांश या मानक अक्षांश अथवा प्रधान अक्षांश कहा जाता है, क्योंकि इस अक्षांश की लम्बाई प्रक्षेप में उतनी ही होती है जितनी इस मापक पर बने ग्लोब पर सम्बन्धित अक्षांश की। चूँकि इस प्रक्षेप में ग्लोब के मध्य में रखे गए प्रकाश द्वारा प्रक्षेपित अक्षांश तथा देशान्तरों का रेखा-जाले प्राप्त किया। जाता है; अतः सभी देशान्तर शंकु के शीर्षबिन्दु से बाहर की ओर प्रसारित होते हैं।
एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप की विशेषताएँ
⦁ शंकु प्रक्षेप की रचना अत्यन्त सुगम तथा सरल है।
⦁ इस प्रक्षेप में सभी देशान्तर रेखाओं पर मापक शुद्ध रहता है।
⦁ इस प्रक्षेप में प्रामाणिक अक्षांश के सहारे मापक तथा क्षेत्रफल दोनों ही शुद्ध रहते हैं।
⦁ इस प्रक्षेप में मानचित्र को अलग-अलग भागों में बाँटकर भी बनाया जा सकता है।
⦁ इस प्रक्षेप में एक ही गोलार्द्ध को प्रदर्शित किया जा सकता है।
⦁ इस प्रक्षेप में क्षेत्रफल शुद्ध नहीं रहता है।
⦁ इस प्रक्षेप में मानक या प्रामाणिक अक्षांश रेखा के सहारे वाले भागों को छोड़कर शुद्ध आकृति का | गुण भी नहीं पाया जाता है।
⦁ इस प्रक्षेप में ध्रुव अपनी वास्तविक स्थिति से ऊपर प्रकट किया जाता है।
⦁ शंकु प्रक्षेप पर सम्पूर्ण विश्व के मानचित्र का प्रदर्शन करना सम्भव नहीं है।
एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप की सीमाएँ
शंकु प्रक्षेप का उपयोग पूर्व-पश्चिम दिशा में विस्तृत समशीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के लिए अधिक किया जाता है। इसमें वे छोटे-छोटे प्रदेश, जिनका विस्तार उत्तर-दक्षिण कम तथा पूर्व-पश्चिम अधिक होता है, सुगमता से प्रदर्शित किए जा सकते हैं। इसी कारण डेनमार्क, हॉलैण्ड, पोलैण्ड, ब्रिटेन आदि । देशों के लिए यह प्रक्षेप सर्वाधिक उपयुक्त रहता है।