स्थलाकृतिक मानचित्र का अर्थ इन मानचित्रों को पढ़ना, समझना या व्याख्या (Interpretation) करना है। टोपोशीट या स्थलाकृतिक मानचित्र को पढ़ना अत्यन्त रोचक होता है, इसलिए इनको भौगोलिक ज्ञान की कुंजी कहा जाता है। स्थलाकृतिक मानचित्रों के अध्ययन की विधि अत्यन्त सरल होती है। स्थलाकृतिक मानचित्र को दिए गए। निर्देशों या सूचनाओं के आधार पर समझा जा सकता है अर्थात् मानचित्र में दिए गए प्रकार की भौतिक व सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए रूढ़ चिह्न दिए होते हैं जिनके आधार पर कोई भी व्यक्ति इन मानचित्रों का अध्ययन सरलतापूर्वक कर सकता है। इस विधि को निम्नलिखित शीर्षकों से स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है
1. प्रारम्भिक सूचना – इसके अन्तर्गत मानचित्र में राज्य, जिला, संस्था, वर्ष, मापक, दिक्पात, । स्थिति एवं परम्परागत चिह्न आदि दिए होते हैं, जिसके आधार पर स्थलाकृतिक मानचित्रं की
समस्त प्रारम्भिक सूचनाओं को सरलता से समझ लिया जाता है।
2. उच्चावच एवं जल-प्रवाह – भू-पत्रकों में समोच्च रेखाओं द्वारा धरातल की संरचना तथा ढाल प्रकट किया जाता है। ढाल द्वारा जल-प्रवाह तथा नदी-घाटियों के आकार का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
3. प्राकृतिक वनस्पति – भू-पत्रकों पर विभिन्न रंगों द्वारा वनस्पति के विभिन्न प्रकार एवं उनका वितरण प्रकट किया जाता है। पीले रंग से कृषि क्षेत्र तथा हरे रंग से प्राकृतिक वनस्पति; यथा-घास, झाड़ियाँ तथा वृक्ष आदि प्रदर्शित किए जाते हैं।
4. सिंचाई के साधन – भू-पत्रंकों में झील, तालाब, कुएँ, नदियों तथा नहरों का चित्रण प्रायः नीले रंग से किया जाता है जिनसे सिंचाई साधनों का ज्ञान हो जाता है। यदि पत्रक में सिंचाई के साधन
नहीं दिए गए हैं तो इसका यह अर्थ हुआ कि कृषि वर्षा पर ही निर्भर करती है।
5. यातायात के साधन – इन पत्रकों में रेलमार्गों, सड़क-मार्गों, पगडण्डियों तथा वायुमार्गों को परम्परागत चिह्नों द्वारा प्रकट किया जाता है जिनके द्वारा क्षेत्र-विशेष में यातायात मार्गों एवं उन पर
संचालित परिवहन साधनों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
6. जनसंख्या का वितरण – भू-पत्रकों में नगरीय तथा ग्रामीण अधिवासों की व्यापकता को देखकर जनसंख्या के वितरण को समझा जा सकता है।
7. मानव अधिवास – भू-पत्रकों में बस्तियों की स्थिति से मानव-अधिवास के ढंग का सामान्य ज्ञान प्राप्त हो जाता है। सघन एवं विरल जनसंख्या द्वारा ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों का अध्ययन किया जा सकता है।
8. उद्योग-धन्धे – भू-पत्रकों के अध्ययन द्वारा मानवीय क्रियाकलापों; जैसे—कृषि, पशुचारण तथा कला-कौशल का ज्ञान भी प्राप्त होता है। इनके अध्ययन से स्पष्ट होता है कि किस क्षेत्र के लोग कृषि करते हैं, वनों का शोषण करते हैं, खनन कार्य करते हैं, मछली पकड़ते हैं या भारी उद्योग-धन्धे चलाते हैं। इसी प्रकार खनिज पदार्थों के अध्ययन द्वारा उद्योगों के विषय में जानकारी
प्राप्त की जा सकती है।
9. सभ्यता एवं संस्कृति – इन भू-पत्रकों में विद्यालय, मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा, चिकित्सालय, रेलवे स्टेशन, निरीक्षण भवन, धर्मशालाएँ आदि परम्परागत चिह्नों की सहायता से दर्शाए जाते हैं। इन्हें देखकर इस क्षेत्र की सभ्यता एवं संस्कृति का सहज ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
10. ऐतिहासिक स्वरूप – इन भू-पत्रकों से युद्ध-स्थल, किला, राजधानियाँ, ऐतिहासिक स्थलों तथा । अन्य महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों का बोध होता है।