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यदि आप स्थलाकृतिक शीट के सांस्कृतिक लक्षणों की व्याख्या कर रहे हैं तो आप किस प्रकार की सूचनाएँ लेना पसन्द करेंगे तथा इन सूचनाओं को कैसे प्राप्त करेंगे? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से विवेचना करें।

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किसी क्षेत्र के सांस्कृतिक लक्षण वहाँ के अधिवास, रेल तथा सड़क मार्ग; भवन (मन्दिर, मस्जिद आदि) एवं संचार साधन होते हैं। ये सभी लक्षण उस क्षेत्र के विकास और समस्याओं को इंगित करते हैं। इन सूचनाओं की जानकारी टोपोशीट से प्राप्त हो जाती है, फिर भी नवीनतम सूचनाओं के लिए क्षेत्र का भ्रमण उपयोगी होता है। सांस्कृतिक लक्षणों की व्याख्या हम देहरादून-टिहरी-गढ़वाल (\(53\frac{j}{3}\)) टोपोशीट के उदाहरण द्वारा भली प्रकार कर सकते हैं।

देहरादून-टिहरी-गढ़वाल के सांस्कृतिक लक्षण

(स्थलाकृतिक मानचित्र \(53\frac{j}{3}\)  के आधार पर)

1. यातायात के साधन – इस फ्त्रक का अधिकांश भाग पर्वतीय है, जहाँ रेलपथों तथा सड़कों का निर्माण बहुत ही कठिन है; अत: इस पत्र में परिवहन मार्गों का विकास बहुत ही कम हुआ है। इस क्षेत्र का धरातल विषम एवं ऊबड़-खाबड़ होने के कारण यहाँ न तो रेलमार्गों का विकास हुआ है और न ही अधिक सड़क मार्गों का। पत्रक के दक्षिणी भाग में परिवहन पथ अधिक दिखाई पड़ रहे हैं। दून घाटी में सड़कें अपेक्षाकृत अधिक दिखाई पड़ती हैं। यहाँ एक रेलमार्ग भी अंकित है जो देहरादून से ऋषिकेश-हरिद्वार की ओर जाता है। पर्वतीय क्षेत्र में बिखरे हुए गाँवों को जोड़ने के लिए पगडण्डी (पैदल पथ) मार्ग विकसित हुए हैं।

2. प्रमुख परिवहन मार्ग –

⦁    उत्तरी रेलवे-यह रेलमार्ग दिल्ली को देहरादून से जोड़ता है। ऋषिकेश, हरिद्वार, लक्सर, सहारनपुर, देवबन्द, मुजफ्फरनगर, मेरठ, मोदीनगर, गाजियाबाद इस मार्ग के प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।
⦁    देहरादून-हरिद्वार सड़क मार्ग।
⦁    देहरउदून-मसूरी सड़क मार्ग।
⦁    देहरादून-सहारनपुर सड़क मार्ग।
⦁    देहरादून-विक्रासनगर सड़क मार्ग।
⦁    कच्ची सड़कें तथा पगडण्डियाँ।।

3. मानव आवास तथा जन-विन्यास – भू-पत्रक को देखने से ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व अत्यन्त कम है। पर्वतीय क्षेत्र में अधिवासों का वितरण भी बहुत विरल है। केवल दून घाटी में सघन जनसंख्या निवास करती है, जबकि शेष भागों में दूर-दूर बिखरे हुए गाँव स्थित हैं। देहरादून, दून घाटी का प्रमुख नगर है। इसके अतिरिक्त, यहाँ रायगढ़, राजपुर; भाजना, शमशेरगढ़ तथा कालागढ़ आदि कस्बे भी विकसित हुए हैं। मंसूरी इस पत्रक का दूसरा महत्त्वपूर्ण नगर है। इसे ‘पर्वतीय नगरों की रानी’ कहा जाता है। ग्रीष्म ऋतु में यह नगर प्राकृतिक सुषमा एवं स्वास्थ्यवर्द्धक तथा उत्तम जलवायु के कारण पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र बन जाता है। मसूरी सड़क मार्ग द्वारा देहरादून नगर से जुड़ा हुआ है। इस सड़क मार्म के साथ-साथ छोटे-छोटे गाँव स्थित हैं। पर्वतों पर गाँव बिखरे हुए प्रतिरूप में पाए जाते हैं। देहरादून भारत का प्रमुख नगर उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी तथा शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। सर्वे ऑफ इण्डिया, वन अनुसन्धानशाला, सुदूर संवेदन संस्थान तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के कार्यालय भी इसी नगर में स्थित हैं।

4. मानव व्यवसाय – असमतल धरातल के कारण यहाँ कृषि योग्य भूमि का अभाव पाया जाता है। समतल क्षेत्र होने के कारण दून घाटी में कृषि का विकास अधिक हुआ है। यह क्षेत्र बासमती
चावल के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर चावल तथा चाय की कृषि की जाती है। देहरादून के निकटवर्ती क्षेत्रों में चाय के अनेक बाग विकसित हुए हैं। इसके निकटवर्ती क्षेत्रों में आम, लीची तथा आडू आदि फल भी उगाए जाते हैं। ढालू पहाड़ी क्षेत्रों में अदरक, आलू तथा हरी मिर्च आदि सब्जियाँ उत्पन्न की जाती हैं।
वनों पर आश्रित उद्योग भी इस क्षेत्र में पर्याप्त विकसित हो गए हैं। वनों से लकड़ी काटना यहाँ का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्यम है। इसी कारण देहरादून लकड़ी चीरने, फर्नीचर तथा खेल का सामान बनाने के महत्त्वपूर्ण केन्द्र के रूप में विकसित हुआ है। यह नगर लकड़ी व्यवसाय का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। वन-अनुसन्धानशाला इस उद्योग में विशेष सहायता पहुँचाती है।

इस क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता है; अतः इसे क्षेत्र में भावी विकास की पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। धरातलीय विषमता इस क्षेत्र की प्रगति में बाधक है। राज्य सरकार ने यातायात के साधनों का समुचित विकास कर इस क्षेत्र की प्रगति के द्वार खोल दिए हैं।

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