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अन्तिम खाते में किए जाने वाले किन्हीं चार समायोजनाओं के बारे में लिखिए। उनके लिए जर्नल लेखे भी दीजिए।

अथवा

समायोजनाओं से आप क्या समझते हैं? इसके किन्हीं छः प्रकारों के बारे में लिखिए। तत्सम्बन्धी जर्नल लेखे भी दीजिए। 

अथवा

विभिन्न प्रकार की समायोजनाओं का वर्णन कीजिए तथा उनके जर्नल लेखे भी दीजिए। 

अथवा

समायोजनाओं से आप क्या समझते हैं? अन्तिम खाते तैयार करते समय किए जाने वाले किन्हीं आठ समायोजनाओं की विवेचना कीजिए तथा उनसे सम्बन्धित जर्नल प्रविष्टियाँ भी दीजिए।

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समायोजन का अर्थ 

समायोजना का अर्थ वर्ष के अन्त में अन्तिम खाते बनाते समय कुछ लेन-देन ऐसे होते हैं, जिनका लेखा या तो अभी तक बिल्कुल किया ही नहीं गया है अथवा अधूरा किया गया है। इन लेन-देनों का लेखांकन, अवधि समाप्त होने पर अन्तिम खाते तैयार करते समय ही किया जाता है। ऐसे लेन-देनों को समायोजनाएँ कहते हैं और तत्सम्बन्धी जर्नल लेखे समायोजन लेखे कहलाते हैं। संक्षेप में, व्यापार के अपूर्ण या न लिखे गए लेखों को बहियों में नियमानुसार उचित प्रकार से लिखने की कला को समायोजन कहते हैं। अत: तलपट के नीचे जो सूचनाएँ दी जाती हैं, उसे ‘समायोजना’ कहते हैं। समायोजनाओं की दोहरी प्रविष्टि करना आवश्यक होता है।
समायोजन के लेखे करने के उद्देश्य अथवा महत्त्व समायोजन के लेखे करने की आवश्यकता को निम्न उद्देश्यों व महत्त्व द्वारा समझाया जा सकता है

⦁    सही एवं पूर्ण लेखे करना कुछ अतिरिक्त लेखे होते हैं जो व्यापार की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करते हैं; जैसे-अशोध्य ऋण संचिति हेतु प्रावधान, पूँजी व आहरण पर ब्याज, आदि। समायोजन लेखों के माध्यम से ही इन समस्त तथ्यों का समावेश किया जा सकता है।

⦁    व्यापार की आर्थिक स्थिति ज्ञात करना व्यापार की आर्थिक स्थिति का सत्य एवं उचित चित्र प्रस्तुत करने के लिए समायोजन लेखों की आवश्यकता होती है।

⦁    वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित व्ययों का लेखा किसी वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित समस्त अदत्त एवं पूर्वदत्त व्ययों का ठीक प्रकार से समायोजन करके ही व्यापार की वास्तविक आर्थिक स्थिति का ज्ञान हो सकता है।

⦁    वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित आय का लेखा समायोजन लेखों  का प्रमुख उद्देश्य व्यवसाय के किसी वित्तीय वर्ष में प्राप्त आय का ज्ञान प्राप्त करना है। इसी के माध्यम से आर्थिक स्थिति ज्ञात की जाती है।

⦁    खातों की त्रुटियों (गलतियों) को सुधारना समायोजन लेखों के माध्यम से खातों में हुई विभिन्न प्रकार की त्रुटियों को सुधारकर वास्तविक आर्थिक स्थिति का ज्ञान सरलता से किया जा सकता है।

⦁    शुद्ध लाभ अथवा शुद्ध हानि का पूर्ण ज्ञान समायोजन के लेखों का प्रमुख उद्देश्य वित्तीय वर्ष के सत्य एवं उचित परिणाम प्रदर्शित करना होता है। समायोजन लेखों के द्वारा ही व्यापार का शुद्ध लाभ अथवा शुद्ध हानि ज्ञात की जाती है।

1. अप्राप्य या अशोध्य ऋण (Bad Debts) देनदारों द्वारा जिस धनराशि का भुगतान करना अस्वीकार कर दिया जाता है अथवा परिस्थितिवश जिस धनराशि का भुगतान नहीं मिलता है, तो इस अप्राप्त धनराशि को ‘अप्राप्य’ या ‘अशोध्य ऋण’ या ‘डूबत ऋण’ कहते हैं।
इसका लेखा जर्नल में निम्नवत् किया जाता हैं-
अशोध्य ऋण खाता                                       ऋणी
देनदार का
(धनराशि अशोध्य ऋण खाते में लिखी गई)

अन्तिम खातों में लेखा अशोध्य ऋण की राशि को लाभ-हानि खाते के ऋणी पक्ष में लिखते हैं एवं आर्थिक चिट्ठे में देनदारों में से इस राशि को घटाकर दिखाते हैं।

2. आहरण पर ब्याज (Interest on Drawings) जब कोई व्यापारी अपनी निजी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए फर्म से माल या नकदी निकालता है, तो उसे आहरण’ कहा जाता है। व्यापारी द्वारा आहरण पर दिया गया ब्याज आहरण पर ब्याज’ कहलाता है।
इसका जर्नल में लेखा निम्नवत् किया जाता है
आहरण खाता                                               ऋणी
आहरण पर ब्याज खाते का
(आहरण पर ब्याज वसूला गया)

अन्तिम खातों में लेखा आहरण पर ब्याज की राशि लाभ-हानि खाते के धनी पक्ष में लिखी जाती है तथा आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष की ओर आहरण की राशि में जोड़कर तथा पूँजी में से घटाकर दिखाई जाती है।

3. अदत्त व्यय (Outstanding Expenses) ऐसे व्यय, जिनका चालू वित्तीय  वर्ष में भुगतान नहीं किया गया है अर्थात् जिनका भुगतान बकाया है, ‘अदत्त व्यय’ कहलाते हैं। ऐसे व्यय आर्थिक चिट्ठे के दायित्व पक्ष में दिखाए जाते हैं।
अदत्त व्यय का जर्नल लेखा निम्नवत् किया जाता है|
(सम्बन्धित)व्यय खाता                                  ऋणी
अदत्त व्यय खाते का
(बकाया व्यय की राशि से लेखा किया गया)

अन्तिम खातों में लेखा अदत्त व्यय की धनराशि व्यापार अथवा लाभ-हानि खाते के ऋणी पक्ष में सम्बन्धित व्यय में जोड़कर दिखाते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष में लिखते हैं।

4. पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses) ऐसे व्यय, जिनका भुगतान चालू वित्तीय वर्ष में सेवा लेने से पूर्व कर दिया गया हो, ‘पूर्वदत्त व्यय’ कहलाते हैं।
पूर्वदत्त व्यय का जर्नल लेखा निम्नवत् किया जाता है
पूर्वदत्त व्यय खाता                                       ऋणी
(सम्बन्धित) व्यय खाते का
(अग्रिम व्यय का लेखा किया गया)

अन्तिम खातों में लेखा पूर्वदत्त व्यय को व्यापार अथवा लाभ-हानि खाते के ऋणी पक्ष में सम्बन्धित व्यय में से घटाकर दिखाते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष की ओर दिखाते हैं।

5. अन्तिम रहतिया (Closing Stock) वह माल जो वित्तीय वर्ष के अन्त में बिकने से शेष रह जाता है, ‘अन्तिम रहतिया’ कहलाता है। तलपट में दिए गए अन्तिम रहतिये को केवले आर्थिक चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष में दर्शाया जाता है, जबकि तलपट से बाहर समायोजना के रूप में दिए गए अन्तिम रहतिये को व्यापार खाते’ के धनी (Credit) पक्ष में तथा आर्थिक चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष दोनों में दर्शाया जाता है।
इसका जर्नल में लेखा निम्नवत् किया जाता है
अन्तिम रहतियां खाता                                 ऋणी
व्यापार खाते का
(अन्तिम रहतिया पुस्तकों में लाए)

अन्तिम खातों में लेखा अन्तिम रहतिया को व्यापार खाते के धनी पक्ष में तथा आर्थिक चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष में लिखते हैं।

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6. देनदारों पर छट के लिए संचय (Reserve for Discount on Debtors)

व्यापारी द्वारा शीघ्र भुगतान प्राप्त करने के उद्देश्य से देनदारों को एक निश्चित प्रतिशत से छूट दी जाती है। इसके लिए व्यापारी द्वारा संचय का निर्माण किया जाता है, जिसे देनदारों पर छूट के लिए संचय’ कहा जाता है। इसका लेखा जर्नल में निम्नवत् होता है
लाभ-हानि खाता                                        ऋणी
देनदारों पर छूट के लिए संचय खाते का
(देनदारों पर छूट के लिए संचय किया)

अन्तिम खातों में लेखा इसे लाभ-हानि खाते के ऋणी पक्ष में लिखते हैं। तथा आर्थिक चिढ़े में देनदारों में से इस राशि को घटाकर दिखाते हैं।

7. लेनदारों पर छूट के लिए संचय (Reserve for Discount on Creditors) 

जिस प्रकार देनदारों से शीघ्र भुगतान प्राप्त होने पर हमें उन्हें छूट देते हैं, उसी प्रकार लेनदार भी शीघ्र भुगतान प्राप्त करने के लिए हमें छूट देते हैं। अतः अनुमान लगाकर उसके लिए  संचय कर दिया जाता है, जो व्यापार के लिए लाभ होता है, इसे लेनदारों पर छूट के लिए संचय’ कहा जाता है।
इसका लेखा जर्नल में निम्नवत् होता है
लेनदारों पर छूट के लिए संचय खाता          ऋणी
लाभ-हानि खाते का
(लेनदारों पर छूट के लिए संचय बनाया)

अन्तिम खातों में लेखा छूट की राशि को लाभ-हानि खाते में धनी पक्ष में लिखते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष की ओर लेनदारों में से घटाकर दिखाते हैं।

8. सम्पत्तियों पर ह्रास (Depreciation on Assets) स्थायी सम्पत्तियों का निरन्तर प्रयोग करने के कारण उनके मूल्य में जो कमी होती है, उस कमी को ही ‘सम्पत्तियों पर हास’ कहा जाता है।
इसका जर्नल लेखा निम्नवत् किया जाता है
ह्रास खाता                                                ऋणी
सम्पत्ति खाते का
(सम्पत्ति पर ह्रास लगाया)

अन्तिम खातों में लेखा ह्रास की राशि लाभ-हानि खाते के ऋणी पक्ष में लिखी जाती है तथा आर्थिक चिट्ठे में सम्बन्धित सम्पत्ति में से घटाकर दिखाई जाती है।
 
9. अशोध्य तथा संदिग्ध ऋणों के लिए संचय (Reserve for Bad and Doubtful Debts)

सम्भावित अशोध्य ऋणों की पूर्ति के लिए कुछ धनराशि प्रतिवर्ष संचय कर ली जाती है, जिसे ‘अशोध्य तथा संदिग्ध ऋणों के लिए संचय’ कहते हैं।
इसका लेखा जर्नल में निम्नवत् किया जाता है
लाभ-हानि खाता                                      ऋणी
अशोध्य एवं संदिग्ध ऋण संचय खाते का
(संदिग्ध ऋणार्थ संचय निर्मित किया)

अन्तिम खातों में लेखा इसे लाभ-हानि खाते में ऋणी पक्ष की ओर लिखते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में देनदारों में से घटाकर दिखाते हैं।

10. पूँजी पर ब्याज (Interest on Capital) पूँजी पर ब्याज दो कारणों से लगाया जाता है

⦁    यदि व्यापारी व्यापार में स्वयं की पूँजी न लगाकर अन्य कहीं से ऋण के रूप में पूँजी प्राप्त करता है, तो उसे उस धन-राशि पर ब्याज देना | पड़ता है।

⦁    यदि व्यापारी स्वयं व्यापार में रुपया न लगाकर, किसी दूसरी जगह पर उसे विनियोजित करता है, तो उसे विनियोजित राशि पर ब्याज प्राप्त होता है।
इसका जर्नल लेखा निम्नवत् किया जाता है
पूँजी पर ब्याज खाता                                ऋणी
पूँजी खाते का
(पूँजी पर ब्याज प्रदान करने हेतु लेखा किया)

अन्तिम खातों में लेखा पूँजी पर ब्याज की राशि लाभ-हानि खाते के ऋप्पी पक्ष में लिखी जाती है तथा आर्थिक चिट्ठे में दायित्व पक्ष में पूँजी में जोड़कर दिखाई जाती है।

11. उपार्जित आय (Accrued Income) ऐसी आय, जो अर्जित तो कर ली जाती है, परन्तु वित्तीय वर्ष के अन्त तक प्राप्त नहीं होती है, ‘उपार्जित आय कहलाती है। उपार्जित आय को जर्नल लेखा निम्नवत् किया जाता है
उपार्जित आय खाता                                ऋणी
(सम्बन्धित) आय खाते का
(उपार्जित आय का लेखा किया गया)

अन्तिम खातों में लेखा उपार्जित आय की राशि को लाभ-हानि खाते के धनी  पक्ष में सम्बन्धित आय में जोड़कर दिखाते हैं या धनी पक्ष की ओर ‘ पृथक् से लिख देते हैं तथा आर्थिक चिट्ठे में इसे सम्पत्ति पक्ष की ओर लिखते हैं।

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