विनिमय-विपत्र का अनादरण या तिरस्कृत होना जब किसी विपत्र का स्वीकर्ता बिल की भुगतान तिथि पर विपत्र का भुगतान करने से इन्कार अथवा उसे स्वीकार करने में असमर्थता प्रकट करता है, तो उसे ‘विनिमय-विपत्र की अप्रतिष्ठा’, ‘अनादरण’ या ‘तिरस्कृत होना’ कहते हैं।
विनिमय-विपत्र का अनादरण या तिरस्कृत निम्नलिखित परिस्थितियों में हो सकता है-
⦁ जब विनिमय-विपत्र को बैंक से बट्टे पर भुना लिया जाता है।
⦁ जब संग्रह के लिए विनिमय-विपत्र को बैंक में जमा करा दिया जाता है।
⦁ जब विनिमय-विपत्र लेखक के पास रखा हुआ होता है।
⦁ जब भुगतान तिथि से पूर्व विनिमय-विपत्र का बेचान कर दिया गया हो।
विनिमय-विपत्र के अनादरण या तिरस्कृत के सम्बन्ध में जर्नल लेखे
1. लेखक या आहर्ता की पुस्तकों में लेखे
(i) विनिमय-विपत्र लेखक के पास होने पर
स्वीकर्ता का व्यक्तिगत खाता ऋणी
प्राप्य विपत्र खाते का
(विनिमय-विपत्र तिरस्कृत हुआ)
(ii) विनिमय-विपत्र को बैंक से बट्टे पर भुनाने पर
स्वीकर्ता का व्यक्तिगत खाता ऋणी
बैंक खाते का
(विनिमय-विपत्र तिरस्कृत हुआ)
(iii) विनिमय-विपत्र बेचानपात्र के पास होने पर
स्वीकर्ता का व्यक्तिगत खाता ऋणी
लेनदार के खाते का
(विनिमय-विपत्र तिरस्कृत हुआ)
(iv) विनिमय-विपत्र संग्रह के लिए बैंक के पास होने पर
स्वीकर्ता का व्यक्तिगत खाता ऋणी
बैंक में संग्रह के लिए विपत्रे खाते का
(विनिमय-विपत्र तिरस्कृत हुआ)
2. स्वीकर्ता या आहर्ती की पुस्तकों में लेखे
बिल का अनादरण उपरोक्त किसी भी परिस्थिति में हो, प्रत्येक दशा में निम्नांकित लेखा किया जाता है-
देय विपत्र खाता ऋणी
लेनदार/लेखक के व्यक्तिगत खाते का
(विनिमय-विपत्र तिरस्कृत हुआ)