प्रचार से दूर हिन्दी के मौन साधक पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी हिन्दी के प्रतिष्ठित निबन्धकार, कवि, सम्पादक तथा साहित्य मर्मज्ञ थे। साहित्य-सृजन की प्रेरणा आपको विरासत में मिली थी, जिसके कारण आपने विद्यार्थी जीवन से ही लिखना प्रारम्भ कर दिया था। ललित निबन्धों के लेखन के लिए आपको प्रभूत यश प्राप्त हुआ। एक गम्भीर विचारक, शिष्ट हास्य-व्यंग्यकार और कुशल आलोचक के रूप में आप हिन्दी-साहित्य में विख्यात हैं।
जीवन-परिचय-श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म सन् 1894 ई० में मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के खैरागढ़ नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता श्री उमराव बख्शी तथा बाबा पुन्नालाल बख्शी साहित्य-प्रेमी और कवि थे। इनकी माताजी को भी साहित्य से प्रेम था। अतः परिवार के साहित्यिक वातावरण का प्रभाव इनके मन पर भी गहरा पड़ा और ये विद्यार्थी जीवन से ही कविताएँ लिखने लगे। बी०ए० उत्तीर्ण करने के बाद बख्शी जी ने साहित्य-सेवा को अपना लक्ष्य बनाया तथा कहानियाँ और कविताएँ लिखने लगे। द्विवेदी जी बख्शी जी की रचनाओं और योग्यताओं से इतने अधिक प्रभावित थे कि अपने बाद उन्होंने ‘सरस्वती’ की बागडोर बख्शी जी को ही सौंपी। द्विवेदी जी के बाद 1920 से 1927 ई० तक इन्होंने कुशलतापूर्वक ‘सरस्वती’ के सम्पादन का कार्य किया। ये नम्र स्वभाव के व्यक्ति थे और ख्याति से दूर रहते थे। खैरागढ़ के हाईस्कूल में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् इन्होंने पुनः ‘सरस्वती’ का सम्पादन-भार सँभाला। सन् 1971 ई० में 77 वर्ष की आयु में निरन्तर साहित्य-सेवा करते हुए आप गोलोकवासी हो गये।
कृतियाँ-बख्शी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने निबन्ध, काव्य, कहानी, आलोचना, नाटक आदि पर अपनी लेखनी चलायी। निबन्ध और आलोचना के क्षेत्र में तो ये प्रसिद्ध हैं ही, अपने ललित निबन्धों के कारण भी ये विशेष रूप से स्मरण किये जाते हैं। इनकी रचनाओं का विवरण अग्रलिखित है
⦁ निबन्ध-संग्रह-‘पंचपात्र’, ‘पद्मवन’, ‘तीर्थरेणु’, ‘प्रबन्ध-पारिजात’, ‘कुछ बिखरे पन्ने, ‘मकरन्द बिन्दु’, ‘यात्री’, ‘तुम्हारे लिए’, ‘तीर्थ-सलिल’ आदि। इनके निबन्ध जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य के विषयों पर लिखे गये हैं। |
⦁ काव्य-संग्रह-‘शतदल’ और ‘अश्रुदल’ इनके दो काव्य-संग्रह हैं। इनकी कविताएँ प्रकृति और प्रेमविषयक हैं।
⦁ कहानी-संग्रह-‘झलमला’ और ‘अञ्जलि’, इनके दो कहानी-संग्रह हैं। इन कहानियों में मानव-जीवन की विषमताओं का चित्रण है।
⦁ आलोचना-‘हिन्दी-साहित्य विमर्श’, ‘विश्व-साहित्य’, ‘हिन्दी उपन्यास साहित्य’, ‘हिन्दी कहानी साहित्य, साहित्य शिक्षा’ आदि इनकी श्रेष्ठ आलोचनात्मक पुस्तकें हैं।
⦁ अनूदित रचनाएँ–जर्मनी के मॉरिस मेटरलिंक के दो नाटकों का ‘प्रायश्चित्त’ और ‘उन्मुक्ति का बन्धन’ शीर्षक से अनुवाद।
⦁ सम्पादन-‘सरस्वती’ और ‘छाया’। इन्होंने सरस्वती के सम्पादन से विशेष यश अर्जित किया।
साहित्य में स्थान-बख्शी जी भावुक कवि, श्रेष्ठ निबन्धकार, निष्पक्ष आलोचक, कुशल पत्रकार एवं कहानीकार हैं। आलोचना और निबन्ध के क्षेत्र में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। विश्व-साहित्य में इनकी गहरी पैठ है। अपने ललित निबन्धों के लिए ये सदैव स्मरण किये जाएँगे। विचारों की मौलिकता और शैली की नूतनता के कारण हिन्दी-साहित्य में शुक्ल युग के निबन्धकारों में इनके निबन्धों को विशिष्ट स्थान है।